I will adore you, until no part of you is left unappreaciated…❤
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ਏ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਤਾਂ ਠੋਕਰਾਂ ਦੀ ਗੁਲਾਮ ਐ
ਖਾ ਖਾ ਠੋਕਰਾਂ, ਠੇਢੇ ਲਵਾਉਣਾ ਹੁਣ ਆਮ ਐ
ਜਿੱਥੇ ਪਿਆਰ ਦਾ ਹੁੰਦਾ ਕਤਲੇਆਮ ਐ
ਤੇ ਬੇਵਫਾਈ ਦਾ ਮਿਲਦਾ ਇਨਾਮ ਹੈ
ਏ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਤਾਂ ਠੋਕਰਾਂ ਦੀ ਗੁਲਾਮ ਐ
ਨਿੱਕੀ ਨੱਕੀ ਗੱਲ ਤੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਮਨਾਂ ‘ਚ ਇੰਤਕਾਮ ਐ
ਬੰਦਾ ਬੰਦੇ ਦੀ ਚੜ ਵੇਖ ਸੜਦਾ
ਭਾਂਵੇ ਅੱਗੇ ਵੱਜਦੇ ਸਲਾਮ ਐ
ਜਿੱਥੇ ਖੁਦਾ ਮੰਦਿਰਾਂ ਚ ਰੁਲਦਾ ਤੇ ਪੈਸਾ ਰਾਮ ਹੈ
ਏ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਉਸ ਦੁਨਿਆ ਦੀ ਗੁਲਾਮ ਐ
ਪਿਆਰ ‘ਚ ਵੱਜਦੀ ਸੱਟ, ਤੇ ਹੱਥਾਂ ਚ ਜਾਮ ਐ
ਭਰ ਕਿਤਾਬਾਂ ਆਰਫ਼ਾਨਾ ਕਲਾਮ, ਬਣਿਆ ਪਿਆਰ ਦਾ ਅਮਾਮ ਐ
ਇਹ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵੀ ਕਾਹਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ
ਜੋ ਠੋਕਰਾਂ ਦੀ ਗੁਲਾਮ ਏ
ਪਰ ਗਗਨ ਦੀ ਕਲਮ ਯਾਰ ਦੀ ਗੁਲਾਮ ਐ
ਲਿਖਦੀ ਉਹਨੂੰ ਇਕ ਪੇਗਾਮ ਐ
ਕਿ ਤੈਨੂੰ ਹੱਥ ਜੋੜ ਪਰਨਾਮ ਹੈ
ਤੈਨੂੰ ਦਿਲੋਂ ਦੁਆ ਸਲਾਮ ਹੈ
ਏਹਿਓ ਸਾਡੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦਾ ਮੁਕਾਮ ਹੈ………
Punjabi Poetry, Sad Punjabi Poetry:
e zindagi tan thokran di gulam ae
kha kha thokran, thede lawauna hun aam ae
jithe pyar da hunda katleam ae
te bewafai da milda inam hai
e zindagi tan thokran di gulam ae
niki niki gal te lokan de mnaa ch intkam ae
banda bande di chadh vekh sarda
bhawe aghe vajhde salam ae
jithe khuda mandiraan ch rulda te paisa ram hai
e zindagi us duniyaa di gulam ae
pyar ch vajhdi satt, te hathan ch jaam ae
bhar kitabaan aarfana klaam, baneya pyar da amam ae
eh zindagi vi kahdi zindagi
jo thokraan di gulaam ae
par “Gagan” di kalam yaar di gulam ae
likhdi ohnu ik pegam ae
k tainu hath jodh parnaam hai
tainu dilo duaa, salaam hai
ehio sadhi zindagi da mukam hai ….
Tags: dard punjabi poetry, sad shayari, dil di kavita
अकबर बीरबल की हाज़िर जवाबी के बडे कायल थे। एक दिन दरबार में खुश होकर उन्होंने बीरबल को कुछ पुरस्कार देने की घोषणा की। लेकिन बहुत दिन गुजरने के बाद भी बीरबल को पुरस्कार की प्राप्त नहीं हुई। बीरबल बडी ही उलझन में थे कि महाराज को याद दिलायें तो कैसे?
एक दिन महारजा अकबर यमुना नदी के किनारे शाम की सैर पर निकले। बीरबल उनके साथ था। अकबर ने वहाँ एक ऊँट को घुमते देखा। अकबर ने बीरबल से पूछा, “बीरबल बताओ, ऊँट की गर्दन मुडी क्यों होती है”?
बीरबल ने सोचा महाराज को उनका वादा याद दिलाने का यह सही समय है। उन्होंने जवाब दिया – “महाराज यह ऊँट किसी से वादा करके भूल गया है, जिसके कारण ऊँट की गर्दन मुड गयी है। महाराज, कहते हैं कि जो भी अपना वादा भूल जाता है तो भगवान उनकी गर्दन ऊँट की तरह मोड देता है। यह एक तरह की सजा है।”
तभी अकबर को ध्यान आता है कि वो भी तो बीरबल से किया अपना एक वादा भूल गये हैं। उन्होंने बीरबल से जल्दी से महल में चलने के लिये कहा। और महल में पहुँचते ही सबसे पहले बीरबल को पुरस्कार की धनराशी उसे सौंप दी, और बोले मेरी गर्दन तो ऊँट की तरह नहीं मुडेगी बीरबल। और यह कहकर अकबर अपनी हँसी नहीं रोक पाए।
और इस तरह बीरबल ने अपनी चतुराई से बिना माँगे अपना पुरस्कार राजा से प्राप्त किया।