कितना फासला था हमारे दरमियान,
उन्हें हमारा मिलना ज़रूरी नहीं था,
हमें हमारा बिछड़ना मंज़ूर नहीं था……🖤
कितना फासला था हमारे दरमियान,
उन्हें हमारा मिलना ज़रूरी नहीं था,
हमें हमारा बिछड़ना मंज़ूर नहीं था……🖤
मचलते ख़्वाब दिल की दीवारें तोड़ जाएंगे,
कुछ होंठो को हंसा कर कुछ को तड़पता छोड़ जाएंगे...
तेज़ आधियों में आशियाना बनाने की कोशिश जारी है,
ताजुर्बा है, वहीं ख़्वाब मंज़िल के साथ नजर आएंगे...
“सोचता हूँ, के कमी रह गई शायद कुछ या
जितना था वो काफी ना था,
नहीं समझ पाया तो समझा दिया होता
या जितना समझ पाया वो काफी ना था,
शिकायत थी तुम्हारी के तुम जताते नहीं
प्यार है तो कभी जमाने को बताते क्यों नहीं,
अरे मुह्हबत की क्या मैं नुमाईश करता
मेरे आँखों में जितना तुम्हें नजर आया,
क्या वो काफी नहीं था I
सोचता हूँ के क्या कमी रह गई,
क्या जितना था वो काफी नहीं था
“सोचता हूँ कभी पन्नों पर उतार लूँ उन्हें I
उनके मुँह से निकले सारे अल्फाजों को याद कर लूँ कभी I
ऐसी क्या मज़बूरी होगी उनकी की हम याद नहीं आते I
सोचता हूँ तोहफा भेज कर अपनी याद दिला दूँ कभी I
सोचता हूँ कभी पन्नों पर उतार लूँ उन्हें I