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 जंगल की सैर

जग की हलचल तज उस ओर
जहाँ बसा है जंगल घोर
आओ आज वहां घूमेंगे
खुशियों में भरकर झूमेंगे
घने घने वन बने जहाँ पर
तरु समूह हैं तने जहाँ पर
जहाँ झाड़ियाँ खड़ी हुई हैं
पग पग बेलें पड़ी हुई हैं.
 
पथ है जहाँ बनाना मुश्किल
आदि अंत कुल पाना मुश्किल
जिसके भीतर जाना मुश्किल
जाकर के फिर आना मुश्किल
 
जंगल यह पशुओं का घर है
राजा जिनका शेर बबर है
कभी कभी जब वह दहाड़ता
आसमान के कान फाड़ता
 
इधर खड़ा है देखो चीता
झरने के तट पानी पीता
इसके तन पर काली धारी
यह है हिंसक मांसाहारी
 
देखों इधर तेंदुआ आता
बिल्ली का वंशज कहलाता
बिल्ली इसकी नानी लगती
किंतु देखते ही है भगती
 
हाथी सूंड उठाते हैं ये
ढेरों खाना खाते हैं ये
मस्त चाल से जाते हैं ये
वन में रौंद मचाते हैं ये
 
झाड़ी के अंदर खामोश
देखों बैठा है खरगोश
टूंग टूंग खाता है घास
कभी नहीं आता है पास
 
उधर हिरन भागे जाते है
चंचल ये मृग कहलाते हैं
पतली पतली इनकी टाँगें
कभी चौकड़ी कभी छंलागे
 
सुंदर इनके नयन सलौने
प्यारे लगते इनके छौने
सीधे सादे भोले भाले
जो भी चाहे इनको पाले
 

Title:  जंगल की सैर

Best Punjabi - Hindi Love Poems, Sad Poems, Shayari and English Status


Duniye de rang || Shayari Punjabi

Koi sikha deve mainu v
is duniye de riwaaz nu
ki kive bhul jaida kise nu
apna matlab kadh k

ਕੋਈ ਸਿਖਾ ਦੇਵੇ ਮੈਨੂੰ ਵੀ
ਇਸ ਦੁਨੀਆ ਦੇ ਰਿਵਾਜ਼ ਨੂੰ
ਕਿ ਕਿਵੇਂ ਭੁੱਲ ਜਾਈਦਾ ਕਿਸੇ ਨੂੰ
ਆਪਣਾ ਮਤਲਬ ਕੱਢ ਕੇ

Title: Duniye de rang || Shayari Punjabi


अर्धांगिनी पर कविता

जो दुख में भी साथ देती है
जो मुश्किल हालत में साथ होती है
जो ना छोड़ती है साथ कभी
उसे ही अर्धांगिनी कहते है।
 
जो खुदका घर छोड़ देती है
पति के घर को अपना समझती है
जो रिश्तों को बखूबी निभाती है
उसे ही अर्धांगिनी कहते है।
 
जो आंख बंद कर पति पर विश्वास दिखाती है
तुम हर जंग जीतोगे भरोसा दिलाती है
जो सफलता की हकदार कहलाती है
उसे ही अर्धांगिनी कहते है।
जो हर वचनों को निभाती है
जो सारा जनम पति की बनकर रहती है
जो हाथ पकड़कर चलती है
उसे ही अर्धांगिनी कहते है।
 
जो कभी पत्नि बन जाती है
तो कभी बहू बन जाती है
जो दिलाती है हक पिता बनने का
उसे ही अर्धांगिनी कहते हैं।

Title: अर्धांगिनी पर कविता