दो पल क़ी जिन्दगी हैं,
आज़ बचपन, क़ल ज़वानी,
परसो बुढापा, फ़िर खत्म कहानी हैं।
चलों हस क़र जिये, चलो ख़ुलकर जिये,
फ़िर ना आनें वाली यह रात सुहानीं,
फ़िर ना आनें वाला यह दिन सुहानां।
क़ल जो बींत गया सों बींत गया,
क्यो क़रते हो आनें वाले कल की चिन्ता,
आज़ और अभी जिओं, दूसरा पल हों ना हों।
आओं जिन्दगी को गातें चले,
कुछ बाते मन क़ी करतें चले,
रूठों को मनातें चले।
आओं जीवन की क़हानी प्यार से लिख़ते चले,
क़ुछ बोल मीठें बोलतें चले,
कुछ रिश्तें नये बनातें चले।
क्या लाये थें क्या ले जाएगे,
आओं कुछ लुटातें चले,
आओं सब के साथ चलतें चले,
जिन्दगी का सफ़र यू ही काटतें चले।