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ek-din-muje

Title: ek-din-muje

Best Punjabi - Hindi Love Poems, Sad Poems, Shayari and English Status


Hindi kavita || बहती नदी – सी || hindi poetry

थी मै,शांत चित्त बहती नदी – सी
तलहटी में था कुछ जमा हुआ
कुछ बर्फ – सा ,कुछ पत्थर – सा।
शायद कुछ मरा हुआ..
कुछ अधमरा सा।
छोड़ दिया था मैंने
हर आशा व निराशा।
होंठो में मुस्कान लिए
जीवन के जंग में उलझी
कभी सुलगी,कभी सुलझी..
बस बहना सीख लिया था मैंने।
जो लगी थी चोट कभी
जो टूटा था हृदय कभी
उन दरारों को सबसे छुपा लिया था
कर्तव्यों की आड़ में।
फिर एक दिन..
हवा के झोंके के संग
ना जाने कहीं से आया
एक मनभावन चंचल तितली
था वो जरा प्यासा सा
मनमोहक प्यारा सा।
खुशबूओं और पुष्पों
की दुनिया छोड़
सारी असमानताओं और
बंधनों को तोड़
सहमी – बहती नदी को
खुलकर बहना सीखा गया,
अपने प्रेम की गरमी से
बर्फ क्या पत्थर भी पिघला गया।
पाकर विश्वास कोमल भावों से जोड़े नाते का
सारी दबी अपेक्षाएं हो गई फिर जीवंत
लेकिन क्या पता था –
होगा इसका भी एक दिन अंत !
तितली को आयी अपनों की याद
मुड़ चला बगिया की ओर
सह ना सकी ये देख नदी
ये बिछड़न ये एकाकीपन
रोयी , गिड़गिड़ाई ..की मिन्नतें
दर्द दुबारा ये सह न पाऊंगी
सिसक सिसक कर उसे बतलाई।
नहीं सुनना था उसे,
नहीं सुन पाया वो।
नहीं रुकना था उसे,
नहीं रुक पाया वो।
तेज उफान आया नदी में,
क्रोध और अवसाद
छाया मन में,
फिर छला था
नेह जता कर किसी ने।
आवाज देती..लहरें,
उठती और गिरती
किनारों से टकराती,
हो गई घायल।
बीत गए असंख्य क्षण
उसकी वापसी की आस में
लेकिन सामने था, तो सिर्फ शून्य।
हो गई नदी फिर से मौन..
छा गई निरवता।
लेकिन अबकी बार,
नहीं जमा कुछ तलहटी में
कुछ बर्फ सा,
कुछ पत्थर सा।
बस रह गया भीतर
रक्तिम हृदय..
और लाल रक्त।
जो रिस रिस कर
घुलता जा रहा है
मिलता जा रहा है
अपने ही बेरंग पानी में…।।

Title: Hindi kavita || बहती नदी – सी || hindi poetry


बुरा नहीं हूँ मैं। || bura nahi hu mein || sad but true || hindi poetry

हाँ, मैं तीखा बोलता हूँ
सच बोलता हूँ
कड़वा बोलता हूँ
लेकिन, बुरा नहीं हूं मैं।
दिखावे की मीठी बोली नहीं बोलता
पीठ पीछे किसी की शिकायत नहीं करता
मन में दबाकर कोई बैर भाव नहीं रखता
कुंठित विचार नहीं पालता
हाँ, बुरा नहीं हूं मैं।
किसी का बुरा नहीं चाहता
किसी पर छुपकर वार नहीं करता
कभी ह्रदय छलनी हो जाए तो
छुपकर अकेले रो लेता
सबकी मदद दिल से करता
हाँ, बुरा नहीं हूं मैं।
अपनी जिम्मेदारियों से बैर नहीं मुझे
कर्म ही मेरी पहचान है
छलावे के रिश्ते बनाना नहीं आता मुझे
बुरे वक्त में साथ छोड़ना नहीं सीखा मैंने
हाँ, बुरा नहीं हूं मैं।
मौकापरस्त दुनिया ने दिल दुखाया मेरा
फिर भी चुप रहा मैं..
आवाज उठाई कभी जो मैंने
बुरा मान लिया जमाने ने
वक्त नहीं अब मेरे पास इन से उलझने का
हाँ, मैं मौन हूं..
लेकिन,
बुरा नहीं हूं मैं।।

Title: बुरा नहीं हूँ मैं। || bura nahi hu mein || sad but true || hindi poetry