dujheyaa wang gallan dil ch chhipayiaa na
taa hi taa gairaa diyaa chaala samj kade aayiaa na
ਦੂਜਿਆ ਵਾਂਗ ਗੱਲਾਂ ਕਦੀ ਦਿਲ ਚ ਛਿਪਾਈਆ ਨਾ..
ਤਾਂ ਹੀ ਤਾਂ ਗੈਰਾਂ ਦੀਆ ਚਾਲਾ ਸਮਝ ਕਦੇ ਆਈਆ ਨਾ..
dujheyaa wang gallan dil ch chhipayiaa na
taa hi taa gairaa diyaa chaala samj kade aayiaa na
ਦੂਜਿਆ ਵਾਂਗ ਗੱਲਾਂ ਕਦੀ ਦਿਲ ਚ ਛਿਪਾਈਆ ਨਾ..
ਤਾਂ ਹੀ ਤਾਂ ਗੈਰਾਂ ਦੀਆ ਚਾਲਾ ਸਮਝ ਕਦੇ ਆਈਆ ਨਾ..
Meri kamiyon ko kosne ka koi haq nahi hai tujko…
Tum mil jao mukamal, mit jayengi ye pal mein..
बादशाह अकबर और बीरबल शिकार पर गए हुए थे। उनके साथ कुछ सैनिक तथा सेवक भी थे। शिकार से लौटते समय एक गांव से गुजरते हुए बादशाह अकबर ने उस गांव के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई। उन्होंने इस बारे में बीरबल से कहा तो उसने जवाब दिया—”हुजूर, मैं तो इस गांव के बारे में कुछ नहीं जानता, किंतु इसी गांव के किसी बाशिन्दे से पूछकर बताता हूं।”
बीरबल ने एक आदमी को बुलाकर पूछा—”क्यों भई, इस गांव में सब ठीक-ठाक तो है न?”
उस आदमी ने बादशाह को पहचान लिया और बोला—”हुजूर आपके राज में कोई कमी कैसे हो सकती है।”
“तुम्हारा नाम क्या है?” बादशाह ने पूछा।
“गंगा”
“तुम्हारे पिता का नाम?”
“जमुना”
“और मां का नाम सरस्वती है?”
“हुजूर, नर्मदा।”
यह सुनकर बीरबल ने चुटकी ली और बोला—”हुजूर तुरन्त पीछे हट जाइए। यदि आपके पास नाव हो तभी आगे बढ़ें वरना नदियों के इस गांव में तो डूब जाने का खतरा है।”
यह सुनकर बादशाह अकबर हंसे बगैर न रह सके।