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Hindi kavita || बहती नदी – सी || hindi poetry

थी मै,शांत चित्त बहती नदी – सी
तलहटी में था कुछ जमा हुआ
कुछ बर्फ – सा ,कुछ पत्थर – सा।
शायद कुछ मरा हुआ..
कुछ अधमरा सा।
छोड़ दिया था मैंने
हर आशा व निराशा।
होंठो में मुस्कान लिए
जीवन के जंग में उलझी
कभी सुलगी,कभी सुलझी..
बस बहना सीख लिया था मैंने।
जो लगी थी चोट कभी
जो टूटा था हृदय कभी
उन दरारों को सबसे छुपा लिया था
कर्तव्यों की आड़ में।
फिर एक दिन..
हवा के झोंके के संग
ना जाने कहीं से आया
एक मनभावन चंचल तितली
था वो जरा प्यासा सा
मनमोहक प्यारा सा।
खुशबूओं और पुष्पों
की दुनिया छोड़
सारी असमानताओं और
बंधनों को तोड़
सहमी – बहती नदी को
खुलकर बहना सीखा गया,
अपने प्रेम की गरमी से
बर्फ क्या पत्थर भी पिघला गया।
पाकर विश्वास कोमल भावों से जोड़े नाते का
सारी दबी अपेक्षाएं हो गई फिर जीवंत
लेकिन क्या पता था –
होगा इसका भी एक दिन अंत !
तितली को आयी अपनों की याद
मुड़ चला बगिया की ओर
सह ना सकी ये देख नदी
ये बिछड़न ये एकाकीपन
रोयी , गिड़गिड़ाई ..की मिन्नतें
दर्द दुबारा ये सह न पाऊंगी
सिसक सिसक कर उसे बतलाई।
नहीं सुनना था उसे,
नहीं सुन पाया वो।
नहीं रुकना था उसे,
नहीं रुक पाया वो।
तेज उफान आया नदी में,
क्रोध और अवसाद
छाया मन में,
फिर छला था
नेह जता कर किसी ने।
आवाज देती..लहरें,
उठती और गिरती
किनारों से टकराती,
हो गई घायल।
बीत गए असंख्य क्षण
उसकी वापसी की आस में
लेकिन सामने था, तो सिर्फ शून्य।
हो गई नदी फिर से मौन..
छा गई निरवता।
लेकिन अबकी बार,
नहीं जमा कुछ तलहटी में
कुछ बर्फ सा,
कुछ पत्थर सा।
बस रह गया भीतर
रक्तिम हृदय..
और लाल रक्त।
जो रिस रिस कर
घुलता जा रहा है
मिलता जा रहा है
अपने ही बेरंग पानी में…।।

Title: Hindi kavita || बहती नदी – सी || hindi poetry

Best Punjabi - Hindi Love Poems, Sad Poems, Shayari and English Status


Zindagi ki ladaai || true story of life

कॉलेज तक हम पर ना पढ़ाई की जिम्मेदारी रहती है ,
और उसके बाद घर की जिम्मेदारी आ जाती है ।
अपने सपनो को रख कर एक तरफ ,
अपनो के सपनो को पूरा करने की जिम्मेदारी आती है ।

क्या करे कोई अगर लाखो की भीड़ में एक शख्स अच्छा लगे ,
तो उसे भी ठुकराना पड़ता है ।
प्यार व्यार सब अच्छा नही यही बताकर दिल को अपने मनाना पड़ता है ,
कभी पढ़ाई की तो कभी घर की जिम्मेदारी से दिल उदास भी हो तो 
सामने रह कर सबके चेहरे से तो मुस्कुराना पड़ता है ।

हर किसी को परेशानी अपनी खुद ही पता होती है ,
वरना दूसरो को खुश चेहरा ही दिखता है ।
खुद के अलावा किसी को क्या पता की कोन रोज यहां 
कितनी मुश्किलों में उलझता सा है ,

छोटा मोटा काम करके घर का खर्चा निकालना होता है ।
कभी कभी नौबत ऐसी आती है की दस या पंद्रह हजार में ,
महीना सारा संभालना पड़ता है । 
यहां से वहा से ले लेकर बच्चो की ख्वाईशे भी पूरी करनी पड़ती है ,
कोई साथ नही देता यार यहां जिंदगी की ये लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ती है ।

Title: Zindagi ki ladaai || true story of life


Teri Rejh || mohobat shayari punjabi

Horan vangu jhothe vadhe nhi hone methon,
Tu haami te bhar dila,
Teri kalli-kalli rejh pugaun jaan vaar k…

ਤੇਰਾ ਰੋਹਿਤ…✍🏻

Title: Teri Rejh || mohobat shayari punjabi