वो ग़ज़ल लिखते है,
और हम सुनते है।
वो सबपे लिखते है,
और हम नासमझ खुद पे समझते है।
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वो ग़ज़ल लिखते है,
और हम सुनते है।
वो सबपे लिखते है,
और हम नासमझ खुद पे समझते है।
आहट नहीं थी, सुर्ख़ हवाओं में वक्त ना लगा,
वक्त कम था, वो लम्हा गुजरने में वक्त ना लगा,
मैं वक्त का तकाज़ा ले कर बैठा था
चंद खुशियों के इंतजार में,
मेरा घर टूट के बिखरने में वक्त न लगा...