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MUKKADAR | KISMAT SHAYARI

ki likhiyaa kise mukkadar c
hathan diyaan chaar lakiraan da
me dard nu kaba keh baitha
te rabb naa rakh baitha peedha da
देखा है दुनिया का दस्तूर उसने
देखा है दुनिया का दस्तूर उसने,
वो किसी की भी सुनता नहीं है...
लगा देता है अदालत चलती राहों में,
उसके दुश्मन भी चुनता वहीं है...
सही है ?
क्या दुनिया से नज़रें मिला कर चलना,
जीना है आज तो रास्ता बस यही है...
छोड़ आया था दोस्तों का काफिला पीछे, मुड़ कर देखा तो सारे दुश्मन वहीं है...
