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Bharosa paala hai || hindi poetry
मैंने मेरे मन में
एक भरोसा पाला
उसे कभी क़ैद नहीं किया
वह जब-जब उड़ा फिर लौट आया
चिड़िया जैसे नन्हे पंख उगे
धरती के गुरुत्व के विरुद्ध पहली उड़ान
पहला लक्षण था आज़ादी की चाहना का
भरोसे के भीतर एक और भरोसा जन्मा
और ये सिलसिला चलता रहा
अब इनकी संख्या इतनी है
कि निराश होने के लिए
मुझे अपने हर भरोसे के पंख मरोड़कर
उन्हें अपाहिज बनाना होगा!
करना होगा क़ैद
जो मैं कर नहीं पाऊँगी
हैरानी! मैं ऐसा सोच भी पाई
अपनी इस सोच पर बीती रात घंटों सोचा
ख़ुद पर लानतें फेंकीं
कोसा ख़ुद को
मन ग्लानि से भर उठा
आँखों के कोने भीगते गए
और फिर इकठ्ठा किया अपना सारा प्यार
उनके पंखों को सहलाया
हर एक भरोसे को पुचकारा
उनके सतरंगे पंखों को
आज़ादी के एहसास से भरते देखा
सुबह तक वे एक लंबी उड़ान पर निकल चुके थे
उनकी अनुपस्थिति में
मैं निराश!
पर जान पा रही थी कि शाम तक वे लौट आएँगे
यह वह भरोसा है
जिसके पंख अभी उगने बाक़ी हैं
जो अभी ही है जन्मा!
Title: Bharosa paala hai || hindi poetry
Dil nu thoda kaabu ch rakh
ਇੱਕ ਗੱਲ ਦੱਸਾ ਬਾਬੇ ਦਿਲ ਨੂੰ ਥੋੜ੍ਹਾ ਕਾਬੂ ਚ ਰੱਖ
ਕਿਉਕਿ ਇਹ ਆਸ਼ਕੀ ਕਈ ਕਿਸਮਾਂ ਦੀ ਏ,
ਆ ਜਿਹੜਾ ਜਣੇ ਖਣੇ ਦੀਆ ਅੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਤੈਨੂੰ ਪਿਆਰ ਦਿਖਦਾ ਹੈ ਨਾ,
ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਇਹ ਪਿਆਰ ਨੀ ਇਹਤਾਂ ਭੁੱਖ ਜਿਸਮਾਂ ਦੀ ਏ