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sazaa dete toh bhi seh lete || Mohobbat shayari
Yaara, saza deta toh bhi seh lete
Dil ki 2 baate hum bhi keh lete
Magar tu toh sath chhod diya
Agar yhi mohobbat hoti to tere bina hum bhi reh lete! 🥀
Sochta tha humne bhi || Hopes shayari
Mooh pe ungali rakho
मुंह पे उंगली रखो तमाशा मत करो।
है चुप रहने की दवा मना मत करो।।
राम लाल जी बोले अपनी बीवी से
बीवी बड़ी भयंकर थी
जटा खोलें शिव शंकर थी
नेत्रों से ऐसी फूटी ज्वाला
“पीछे हटो ” कहकर
धक्का दे डाला।
शब्द बाणों के तो अपने विवाह दिवस से ही
राम लाल जी थे आदी
धक्का खाकर आज पता चला
क्या होती है शादी।
थोड़ी सी टूटी कमर
थोड़ी सी निकली आह
यह वही पत्नी थी
जिसको पाने के लिए मांगी थी दुआ
दुआ का प्रसाद क्या दे गया भगवान
पूजा की थी 5 साल
लेकर इस लड़की का नाम।
लेकिन अब लड़की बन गयी देवी
सो देवी पूजा उतारने को तैयार
जब भी कुछ बोले राम लाल जी
सीखा देती बोलने का शिष्टाचार।
किन्तु आज मामला हो गया था गर्म
भूल गए थे राम लाल जी पति धर्म
तो धर्म था पत्नी को ले जाना फिल्म दिखाने
और लाल जी घर चले आये गुन-गुनाते गाने।
तो इस तरह पत्नी के सपनों को खाक में मिलाकर
ढाई घंटे तक मेकअप की तपस्या करवाकर
आते ही बोल पड़े जानू आज क्या है खाने में
भूल गए सुबह वादा हुआ था फिल्म देखने जाने में।
फिल्म के साथ, बाहर खाने का भी था विचार
पत्नी ने तो कर भी दिया आस-पड़ोस में प्रचार
लेकिन पति देव आये पूरे दो घंटे लेट
गुस्सा तो आया कि कर दें दो-तीन थप्पड़ भेंट
किन्तु पत्नी थी क्षमाशील और दयावान
दो-तीन अपशब्द और एक धक्के से चलाया काम।
लेकिन पत्नी की इस हायतौबा ने
राम लाल जी का दिल कर दिया घायल
क्यों कि वो दो घंटे की देर इसलिए
खरीदने लगे थे पत्नी के लिए पायल
वही पायल जो दो दिन पहले पत्नी को
खूब पसंद थी आयी
और आज राम लाल जी की
रुकी सैलरी अचानक से आयी
ख़ुशी से लाल जी चले गए बाजार
आज पत्नी को पायल देनी उपहार
और बताना चाहते थे कितना है
दिल में पत्नी के लिए प्यार
किन्तु उससे पहले पत्नी ने बता दिया।
Bharosa paala hai || hindi poetry
मैंने मेरे मन में
एक भरोसा पाला
उसे कभी क़ैद नहीं किया
वह जब-जब उड़ा फिर लौट आया
चिड़िया जैसे नन्हे पंख उगे
धरती के गुरुत्व के विरुद्ध पहली उड़ान
पहला लक्षण था आज़ादी की चाहना का
भरोसे के भीतर एक और भरोसा जन्मा
और ये सिलसिला चलता रहा
अब इनकी संख्या इतनी है
कि निराश होने के लिए
मुझे अपने हर भरोसे के पंख मरोड़कर
उन्हें अपाहिज बनाना होगा!
करना होगा क़ैद
जो मैं कर नहीं पाऊँगी
हैरानी! मैं ऐसा सोच भी पाई
अपनी इस सोच पर बीती रात घंटों सोचा
ख़ुद पर लानतें फेंकीं
कोसा ख़ुद को
मन ग्लानि से भर उठा
आँखों के कोने भीगते गए
और फिर इकठ्ठा किया अपना सारा प्यार
उनके पंखों को सहलाया
हर एक भरोसे को पुचकारा
उनके सतरंगे पंखों को
आज़ादी के एहसास से भरते देखा
सुबह तक वे एक लंबी उड़ान पर निकल चुके थे
उनकी अनुपस्थिति में
मैं निराश!
पर जान पा रही थी कि शाम तक वे लौट आएँगे
यह वह भरोसा है
जिसके पंख अभी उगने बाक़ी हैं
जो अभी ही है जन्मा!


