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Sabar ki yeh zindagi
सबर की ये जिंदगी जाने केबी मुक्क्मल फल दिलाएगी
खाक हुये खवाबों पर कब नई कली आएगी ,
मसरूफ़ रहे हम सदा किताबों मे
क्या पता था जिंदगी का अशली सबक तो ठोकर शिखएगी ।
जो नोका जा रही ह दरीया के साथ
वो क्या ही वापिस किनारा दिखाएगी
अगर यू ही चलती रही खोवाबों की हकीकत से जंग
तो यकीनन जल्दी ही इंतकाल की खबर आएगी ।
Me mukammal hoke bhi adhoora || dard shayari
मैं मुकम्मल होके भी अधूरा ही रहा हु ,
तमाम आजमइशों के बाद भी अकेला ही रहा हु ।
मैं हर बार करता रहा जिसकी हसी की दुआ
बदले मे इसके हर बार रोता रहा हूँ ।
हर बार बेवजह रूठता है कोई मुझसे
लाख कोशिशों के बाद भी खुद को खोटा रहा हूँ ।
मेरी कोशीशे मिटा रही है तमाम जख्मो को मेरे ,
दूसरी तरफ जज़बातो की आड़ मे एनहे खुरेद रहा हूँ ।