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Shayari | Latest Shayari on Hindi, Punjabi and English

Always be Yourself || English quotes

“Always be yourself. At the end of the day, that’s all you’ve really got; when you strip everything down, that’s all you’ve got, so always be yourself.”

Tu kar ishq mere naal ik vaar|| Punjabi shayari

Tenu kuj nhi denge eh lok
Menu pta e bhut kuj kehnde ne lok
Tu kar ishq mere naal ik vaar
Fer tenu pta laggu kinne jhuthe ne lok💯

ਤੈਨੂੰ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਦੇਣਗੇ ਇਹ ਲੋਕ
ਮੈਨੂੰ ਪਤਾ ਏ ਬਹੁਤ ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਲੋਕ
ਤੂੰ ਕਰ ਇਸ਼ਕ ਮੇਰੇ ਨਾਲ ਇਕ ਵਾਰ
ਫੇਰ ਤੈਨੂੰ ਪਤਾ ਲੱਗੂ ਕਿੰਨੇ ਝੂਠੇ ਨੇ ਲੋਂਕ💯

Chura lu tumhe tumse ||love hindi shayari

Aayo tumhe chura lun tumse,
Gar khata hai to saza khud mukarar karlu
Gar shak hai to soona har manzir karlu
Kar do koi gunah to le loo apne sar
Gar hath thamo to khushiyon se mukaddar bhar du….🥰

आओ तुम्हें चुरा लूं तुमसे,
गर ख़ता है तो सज़ा खुद मुकर्रर कर लूं,
गर शक है तो सूना हर मंज़र कर लूं,
कर दो कोई गुनाह तो ले लूं अपने सिर
गर हाथ थामो तो खुशियों से मुकद्दर भर दूं….🥰

Hunar to hai || two line hindi shayari

Hunar to hai duniya ko moohtod jawab dene ka
Bas muskurane ki jhuthi adakaari nhi aati…🙃

हुनर तो है दुनिया को मुंहतोड़ जवाब देने का
बस मुस्कुराने की झूठी अदाकारी नहीं आती…🙃

mAut se nind churai ja sakti hai || hindi shayari

Dil ke andar aag lagaai jaa sakti hai
Dilwalo se jaan chhudai jaa sakti hai

Us ne Hans kar meri jaanib dekh liya hai
Yaani us se baat badhayi jaa sakti hai

Samandar paar to baatien ho jaati hai
Kya maazi Mai call milaayi jaa sakti hai

Nayi muhabbat mahangi padti hai to dekho
Koi puraani theek karaayi jaa sakti hai

Darwaaze par dastak de kar dekh liya hai
Darwaaze se teg lagaai jaa sakti hai

Zindagi se Khuwaab humaien kuch mil sakte hai
Jaise mout se neend churaai jaa sakti hai

Mohobbat dard || hindi shayari

मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने
ज़माने अब तो ख़ुश हो ज़हर ये भी पी लिया मैं ने

अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ ख़ल्वत में
कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैं ने

उन्हें अपना नहीं सकता मगर इतना भी क्या कम है
कि कुछ मुद्दत हसीं ख़्वाबों में खो कर जी लिया मैं ने

बस अब तो दामन-ए-दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदो
बहुत दुख सह लिए मैं ने बहुत दिन जी लिया मैं ने

Log rooth jate hain || sad but true || two line hindi shayari

Ke zindagi ab tujhse shikayat nahi
Tazurbe ne bataya hai, shikayaton ke baad log rooth jate hain..💯

कि ज़िंदगी अब तुझसे शिकायत नहीं
तजुर्बे ने बताया है , शिकायतो के बाद लोग रूठ जाते है..💯

Hindi poetry || zindagi

चल रहा महाभारत का रण, जल रहा धरित्री का सुहाग,
फट कुरुक्षेत्र में खेल रही, नर के भीतर की कुटिल आग।
वाजियों-गजों की लोथों में, गिर रहे मनुज के छिन्न अंग,
बह रहा चतुष्पद और द्विपद का रुधिर मिश्र हो एक संग।

गत्वर, गैरेय,सुघर भूधर से, लिए रक्त-रंजित शरीर,
थे जूझ रहे कौंतेय-कर्ण, क्षण-क्षण करते गर्जन गंभीर।
दोनों रण-कुशल धनुर्धर नर, दोनों सम बल, दोनों समर्थ,
दोनों पर दोनों की अमोघ, थी विशिख वृष्टि हो रही व्यर्थ।

इतने में शर के लिए कर्ण ने, देखा ज्यों अपना निषंग,
तरकस में से फुंकार उठा, कोई प्रचंड विषधर भुजंग।
कहता कि कर्ण ! मैं अश्वसेन, विश्रुत भुजंगों का स्वामी हूँ,
जन्म से पार्थ का शत्रु परम, तेरा बहुविधि हितकामी हूँ।

बस एक बार कर कृपा धनुष पर, चढ़ शख्य तक जाने दे,
इस महाशत्रु को अभी तुरत, स्पंदन में मुझे सुलाने दे।
कर वमन गरल जीवन-भर का, संचित प्रतिशोध, उतारूँगा,
तू मुझे सहारा दे, बढ़कर, मैं अभी पार्थ को मारूँगा।

राधेय ज़रा हँसकर बोला, रे कुटिल ! बात क्या कहता है?
जय का समस्त साधन नर का, अपनी बाहों में रहता है।
उसपर भी साँपों से मिलकर मैं मनुज, मनुज से युद्ध करूँ?
जीवन-भर जो निष्ठा पाली, उससे आचरण विरुद्ध करूँ?
तेरी सहायता से जय तो, मैं अनायास पा जाऊँगा,
आनेवाली मानवता को, लेकिन क्या मुख दिखलाऊँगा?
संसार कहेगा, जीवन का, सब सुकृत कर्ण ने क्षार किया,
प्रतिभट के वध के लिए, सर्प का पापी ने साहाय्य लिया।

रे अश्वसेन ! तेरे अनेक वंशज हैं छिपे नरों में भी,
सीमित वन में ही नहीं, बहुत बसते पुरग्राम-घरों में भी।
ये नर-भुजंग मानवता का, पथ कठिन बहुत कर देते हैं,
प्रतिबल के वध के लिए नीच, साहाय्य सर्प का लेते हैं।
ऐसा न हो कि इन साँपों में, मेरा भी उज्ज्वल नाम चढ़े,
पाकर मेरा आदर्श और कुछ, नरता का यह पाप बढ़े।
अर्जुन है मेरा शत्रु, किन्तु वह सर्प नहीं, नर ही तो है,
संघर्ष, सनातन नहीं, शत्रुता, इस जीवन-भर ही तो है।

अगला जीवन किसलिए भला, तब हो द्वेषांध बिगाड़ूँ मैं,
साँपों की जाकर शरण, सर्प बन, क्यों मनुष्य को मारूँ मैं?
जा भाग, मनुज का सहज शत्रु, मित्रता न मेरी पा सकता,
मैं किसी हेतु भी यह कलंक, अपने पर नहीं लगा सकता