
jo tu gairo ke sath
guzaar rahi hai, un raato me hu
idhar udhar mudhkar na dekh mujhe
mai to hawa ban kar abhi bhi
teri saanso me hu
जाते जाते एक उम्दा तालीम दे गया, वो मुसाफिर, खुदकी तलाश में घर से निकल गया, वो मुसाफिर, सोचा साथ जाऊं मैं भी, पर जाऊंगा कहां, जा चुका होगा मीलों दूर, उसे पाऊंगा कहां, इसी सोच में रात हुई, नींद का झोंका आ गया, सुबह आंखे खुली तो सोचा, क्या वो मौका आज आ गया ? के चला जाऊं सबसे इतना दूर के कुछ ना हो, गहरी नींद में बेड़ियां मिले पर सचमुच ना हो, सच हो तो बस आसमां में परिंदो सी उड़ान हो, चाहूंगा हर सितमगर का बड़ा सा मकान हो, वहां आवाज़ देकर झोली फैलाएगा वो मुसाफिर, तुम्हे देख भीगी पलकें उठाएगा वो मुसाफिर, मोहब्बत से एक रोटी खिलाकर देखना तुम, शोहरत से दामन भर जाएगा वो मुसाफिर...
kabhi bin bole samajh li thi hamne har takleef uski
aaj ham karte hai byaa gam apna to bhi wo samajh nahi paate
कभी बिन बोले समझ ली थी हमने हर तकलीफ उसकी,
आज हम करते हैं बयां गम अपना तो भी वो समझ नहीं पाते।