Muskurahat ke peechhe ka raaz tum ho,
jo padhti hu roz woh nwaaz tum ho,
gungunati hu jo main khud likh kar,
uske peechhe ki jaan meri awaaz tum ho…..
Muskurahat ke peechhe ka raaz tum ho,
jo padhti hu roz woh nwaaz tum ho,
gungunati hu jo main khud likh kar,
uske peechhe ki jaan meri awaaz tum ho…..
सुना है लोग तुझे आँखें भरकर देखते हैं , है मन में क्या उनके ये तो सवाल कर ।
माना लोगों की फितरत अब अच्छी नहीं , अपनी इज्जत का तू तो ज़रा ख्याल कर ।।
बादस्तूर चलती रही नाराजगी जिंदगी में , वक्त बेवक्त काफिर सा न मेरा हाल कर ।
मेरी आदतों में शूमार है तेरी मोहब्बत का सबब , खुदा का शुक्र मना बेवजह न मलाल कर ।।
बागी मिजाज़ रहा दिल का चाहतों के गुबार में , जिससे कभी मोहब्बत थी उससे अब नफरत भी बेमिसाल कर ।
क्या हुआ जो दुआ भी कुबूल न हुई , हासिल कर अपने दर्द को कुछ तो अब बवाल कर ।।
अब ना होगा तेरा साथ जिंदगी भर , रहेगा बस यही एक मलाल जिंदगी भर ।
मेरी हसरतें तेरी खुशियों में कहीं गुम हो गई , हम तलाशते रह गए जीने की वजह जिंदगी भर ।।
हाशिए पर है अब मेरे ख्वाबों की हकीकत , ख्याल भी तेरा रहा ताउम्र जिंदगी भर ।
पूछता रहा सवाल कि क्यों खुद से रूठे हैं , असर तेरी मोहब्बत का जख्म बना रहा जिंदगी भर ।।