वफ़ा की बाते तुम क्यू किया करती थीं
जूठे वादे तुम क्यू निभाया करती थीं
अब तो सजा – ए – जख्म इतने मिल रहे है मुर्सद
की अब तो दिल भी कह रहा है वो मोहब्ब्त ही तुमसे क्यू किया करती थी ।।
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वफ़ा की बाते तुम क्यू किया करती थीं
जूठे वादे तुम क्यू निभाया करती थीं
अब तो सजा – ए – जख्म इतने मिल रहे है मुर्सद
की अब तो दिल भी कह रहा है वो मोहब्ब्त ही तुमसे क्यू किया करती थी ।।
हो विष्णु तुम धरा के,
हल सुदर्शन तुम्हारा !!
बिना शेष-शैया के ही,
होता दर्शन तुम्हारा !!
पत्थर को पूजने वाले,
क्या समझेंगे मोल तेरा !!
माँ भारती के ज्येष्ठ सुत,
तुमको नमन हमारा !!!
तरुण चौधरी