महर-ओ- वफ़ा की शमआ जलाते तो बात थी
इंसानियत का पास निभाते तो बात थी
जम्हूरियत की शान बढ़ाते तो बात थी
फ़िरक़ा परस्तियों को मिटाते तो बात थी
जिससे कि दूर होतीं कुदूरत की ज़ुल्मतें
ऐसा कोई चराग़ जलाते तो बात थी
जम्हूरियत का जश्न मुबारक तो है मगर
जम्हूरियत की जान बचाते तो बात थी
ज़रदार से यह हाथ मिलाना बजा मगर
नादार को गले से लगाते तो बात थी
बर्बाद होने का तो कोई ग़म नहीं मगर
अपना बनाके मुझको मिटाते तो बात थी
हिंदुस्तान की क़सम ऐ रेख़्ता हूँ ख़ुश
पर मुंसिफ़ी की बात बताते तो बात थी
chadhdi kala bakshi waheguru
har khushiyaa bhari sawer howe
hor ni kujh mangda rabba
bas sir te teri mehar howe
ਚੜਦੀ ਕਲਾਂ ਬਖਸ਼ੀ ਵਾਹਿਗੁਰੂ
ਹਰ ਖੁਸ਼ੀਆ ਭਰੀ ਸਵੇਰ ਹੋਵੇ
ਹੋਰ ਨੀ ਕੁੱਝ ਮੰਗਦਾ ਰੱਬਾ
ਬਸ ਸਿਰ ਤੇ ਤੇਰੀ ਮੇਹਰ ਹੋਵੇ
🙏🏻ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ ਕੀ ਫ਼ਤਿਹ 🙏🏻