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Divakar Agrahari

एक समान्य विधार्थी

बचपन

मां की कहानी थी परीयों का फसाना था, …

गाँव के हर कोने मे अपना ठिकाना था |

वो तो उम्रो ने छीन लिया चेहरे की मुस्कुराहट

वरना वो बचपन कितना सुहाना था |

जिंदगी

गर रही हो जिंदगी बेरंग सी, अंदाज बदल दीजिये.|

हर बार लहजे को नही कभी, अल्फाज बदल दीजिये|

चाहते हो यदि जायका जिंदगी का करो

म्शक्कत इतनी सिद्दत से, की हालत बदल दीजिये |

कामयाबी

जिंदगी एक सफर है, चलते रहो,…….

कुछ खावोगे कुछ पाओगे,

हर लम्हे मे कुछ नया सीख जाओगे,

संघर्षो से ही बढ़ी है दुनिया,

मेहनत से ही बहुत कुछ कर जाओगे

छोड़ के सारी महफ़िल तुम नित्य कर्म करते रहो…

जिंदगी एक सफर है, चलते रहो

चलते रहो…..

Divakar Agrahari

एक समान्य विधार्थी