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Ik ishthaar chhaapa hai akhbaar me || life shayari
इक इश्तहार छपा है अखबार में,
खुली सांसे भी बिकने लगी बाज़ार में,
रूह भी निचोड़ ली उसकी,
काट दी ज़बान बेगुनाह की,
मसला कुछ ज़रूरी नहीं,
बस थोड़ी बहस चलती है सरकार में...
Title: Ik ishthaar chhaapa hai akhbaar me || life shayari
Chhod kar purane kisse sab
छोड़ कर पुराने किस्से सब,
चलो कोई नई बात करते है,
अधूरी रह गई थी कहानी जो ,
भूल कर उसे कोई नई शुरूवात करते है,