AAYE THE MEHFIL MAIN BAS LE KAR KUCH ASHAAR HUM
WAQT-E-RUKHSAT HOUSLA BADH GAYA NAWAAZISH SE LOGON KI
آئے تھے محفل میں بس لے کر کچھ اشعار ہم
وقتِ رخصت حوصلہ بڑھ گیا نوازش سے لوگوں
AAYE THE MEHFIL MAIN BAS LE KAR KUCH ASHAAR HUM
WAQT-E-RUKHSAT HOUSLA BADH GAYA NAWAAZISH SE LOGON KI
آئے تھے محفل میں بس لے کر کچھ اشعار ہم
وقتِ رخصت حوصلہ بڑھ گیا نوازش سے لوگوں
चलो किसी पुराने दौर की बात करते हैं,
कुछ अपनी सी और कुछ अपनों कि बात करते हैं…
बात उस वक्त की है जब मेरी मां मुझे दुलारा करती थी,
नज़रों से दुनिया की बचा कर मुझे संवारा करती थी,
गलती पर मेरी अकेले डांट कर पापा से छुपाया करती थी,
और पापा के मुझे डांटने पर पापा से बचाया करती थी…
मुझे कुछ होता तो वो भी कहाँ सोया करती थी,
देखा है मैंने,
वो रात भर बैठकर मेरे बाल संवारा करती थी,
घर से दूर आकर वो वक्त याद आता है,
दिन भर की थकान के बाद अब रात के खाने में, कहां मां के हाथ का स्वाद आता है,
मखमल की चादर भी अब नहीं रास आती है,
माँ की गोद में जब सिर हो उससे अच्छी नींद और कहाँ आती है…
Kaisi nainsafi hai ye
Vo galat hokar bhi sahi hum sahi hokar bhi nhi💯
कैसी नाइंसाफी है ये
वो गलत होकर भी सही हम सही होकर भी नही💯