Jitt ke pyar mein tera sajjna
Eh dil tere ton haar deyan..!!
Zind nu la ke lekhe ishq de
Dil kare tere ton vaar deyan..!!
ਜਿੱਤ ਕੇ ਪਿਆਰ ਮੈਂ ਤੇਰਾ ਸੱਜਣਾ
ਇਹ ਦਿਲ ਤੇਰੇ ਤੋਂ ਹਾਰ ਦਿਆਂ..!!
ਜ਼ਿੰਦ ਨੂੰ ਲਾ ਕੇ ਲੇਖੇ ਇਸ਼ਕ ਦੇ
ਦਿਲ ਕਰੇ ਤੇਰੇ ਤੋਂ ਵਾਰ ਦਿਆਂ..!!
Jitt ke pyar mein tera sajjna
Eh dil tere ton haar deyan..!!
Zind nu la ke lekhe ishq de
Dil kare tere ton vaar deyan..!!
ਜਿੱਤ ਕੇ ਪਿਆਰ ਮੈਂ ਤੇਰਾ ਸੱਜਣਾ
ਇਹ ਦਿਲ ਤੇਰੇ ਤੋਂ ਹਾਰ ਦਿਆਂ..!!
ਜ਼ਿੰਦ ਨੂੰ ਲਾ ਕੇ ਲੇਖੇ ਇਸ਼ਕ ਦੇ
ਦਿਲ ਕਰੇ ਤੇਰੇ ਤੋਂ ਵਾਰ ਦਿਆਂ..!!
फूलों ने कभी तोड़ने का दर्द कहा है,
कांटों ने ही हमेशा दुश्मनी निभाई है;
मोहब्बत भी फना का ही एक और नाम है,
यह रूसवा तो हुई है, पर इसने हमेशा वफादारी निभाई है।
ऐ चांद तेरे आने का सबब सबको मालूम नहीं,
कुछ लोग दिया जलाते हैं, और कुछ दिल जलाते हैं;
या वो अच्छी हैं या बुरी, हसरतें तो अपनी हैं,
मगर लोग अक्सर दाग तुझ पर लगाते हैं।
ऐ मेरे दोस्त तू समन्दर बन जा,
क्या खोया क्या पाया इसकी चाहत न कर;
तेरे अंदर ही एक मुकम्मल जहां है,
तू बाहर से किसी और की आस न कर।
मुमकिन है कि मंजिलें मुझसे दूर बहुत हैं,
पर रास्ते पर चलना मेरी फितरत बन गयी है;
उजाले समेटने में कोई वाहवाही नहीं,
अन्धेरों में रोशनी करना मेरी आदत बन गयी है।
ऐसे चलो कि चल के फिर गिरना न पड़े,
इतना उठो कि उठ के फिर झुकना न पड़े;
लेकिन गिरना, उठना तेरे बस में नहीं ऐ दोस्त,
इसलिए उसका हाथ पकड़ के चलो कि फिर रोना न पड़े।
मां के हाथों की बरकत का अंदाजा इस से हो गया,
थी एक वक्त की रोटी हर रोज,
और तीस वर्ष तक गुजारा हो गया;
आज रोटी तो है हर वक्त की, लेकिन वो वक्त कहीं पर खो गया।
ऐ जिंदगी, ये तेरे सवाल की तारीफ नहीं,
यह मेरे जवाब का हुनर कि जिंदगी की उलझने सुलझती चली गयीं;
मैं तो बस अपने दिल की कह रहा था,
और कहानियां बनती चली गयीं।
न थी जिंदगी से शिकायत,
न वक्त से कुछ गिला था;
जो मुझको नहीं मिला,
वो खुद मेरा ही सिला था;
मदद-ओ-मशवरे कम नहीं थे मददगारों के,
पर अफसोस जो तकदीर ने दिया था वह दर्द ही मुझे मिला था।
ऐ वतन कर्ज तो तेरा मैं जब उतारूं, जब मेरे पास कुछ अपना भी हो; तेरी मिट्टी, तेरा पानी, तेरी हवा, तेरी धूप, तेरी छांव, तेरी रोटी और नाम तेरा, फिर भी बस एक कतरा ही बन पाउं तेरा, तो मैं समझूं और तुझको मैं अपना पुकारूं।
जिंदगी जीने का अंदाज तो आया मगर अफसोस,
वो मुकम्मल एहसास नहीं आया;
वो हुनर तो आया मगर,
ऐ बदनसीबी वो मुकाम कभी नहीं आया।
यूं गलतफहमियां पाला न करो,कभी आईने में खुद को निहारा भी करो; ये जो चेहरा है वो सब कुछ बयां कर देता है; कभी इसको जुबां पर उतारा भी करो।
आशुतोष श्रीवास्तव