जिन्दगी कहा शुरु कहा खत्म हो जाती हे
जो रोज दिखती वो दिख्ना कम् हो जाती हैं
जिस मा बिना न होती थी बछ्पन की सुबह
उसे वृद्धाश्रम देख आखे नम हो जाति हे
Enjoy Every Movement of life!
जिन्दगी कहा शुरु कहा खत्म हो जाती हे
जो रोज दिखती वो दिख्ना कम् हो जाती हैं
जिस मा बिना न होती थी बछ्पन की सुबह
उसे वृद्धाश्रम देख आखे नम हो जाति हे
आंखें अगर कमजोर होती तो शायद दिल ना लगाते..
जब देख ही नहीं पाते, तो उनसे यूंही थोड़ी ना मिल जाते..
ना उनके चेहरे का दीदार होता, ना आँखों में डूब जाते..
ना आज गमों में होते, ना खुद को मुश्किल में पाते..
