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Bahar se dikh rahe || Hindi 2 Liners

बाहर से दिख ने में कुछ पता नहीं चलता।

पानी के अंदर में धारा का प्रवाह बहता।

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वोट देते हैं लोगों, लेकिन विजेता नेता।  

नेता बनते है महान, सिर्फ आम ही रहे जाते हैं जनता।

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कवि बुद्धिजीवी और बुद्धिमान दोनों ही होते।

बहुत सारे बुद्धिजीवी बुद्धिमान नहीं हैं और बहुत बुद्धिमान भी बुद्धिजीवी हो नहीं पाते।

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कोविशिल्ड और कोवैक्सीन में सिर्फ नाम का अंतर।

सब इंसान एक हैं, अलग हैं व्यवहार।

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बारिश हो रही है, होने दो।

इंसान दुखी है, रोने दो।

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जिंदगी का मतलब हर वक्त पर दर्द को सम्हालना।

दवा और मलहम नियति की हात का खिलौना।

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दिल की बात रखो दिल में।

दूसरे जानकर मजा लेंगे और दिल जलेगी आग में।

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भूख जिसे चोरी करना सिखाया, वो बेकसूर है।

असली चोर तो वो है, जो ज्यादा खा के भी लालच करता है।

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कुत्ते के साथ मुँह मत लगाना।

गंदे के मुँह मत देखना।

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घने बादल हमेशा बारिश नहीं लाते।

कभी कभी ख़ुशी में भी गम नहीं जाते।

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अगर औरत की साथ प्यार हो तो वो रोमांस है।

लेकिन कोई मर्द का साथ प्यार हो ना ओफ्फेंस है।

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सब दोस्ती प्यार नहीं बनते।

सब रिश्ते रिश्तेदार भी नहीं लाते।

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पागलखाने में पागल नहीं रहते।

पागलपन सब के दिमाग में, मानसिक इसे ही कहते।

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पूजा जितना भी करो, मंत्र हज़ार बार पढ़ो, भगवान खुश नहीं।

लोकतंत्र की पुजारी ही असली पुजारी, सच यही।

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चादर में सोए रहो या बिस्तर पर, नींद होनी चाहिए।

दिल से प्यार करो या दिमाग से, आस्था होनी चाहिए।

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पहाड़ से नदी निकलती है और मिलती है सागर में।

पत्थर गतिरोधक, नदी जीवन की गति और समुद्र नियति है। 

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Title: Bahar se dikh rahe || Hindi 2 Liners

Best Punjabi - Hindi Love Poems, Sad Poems, Shayari and English Status


Sometime’s time will reject || english quotes

True lines || sometimes time will reject you...To meet the right time for you....
sometimes time will reject you…To meet the right time for you….




Likhta me kisaan ke liye || किसान कविता

लिखता मैं किसान के लिए
मैं लिखता इंसान के लिए
नहीं लिखता धनवान के लिए
नहीं लिखता मैं भगवान के लिए
लिखता खेत खलियान के लिए
लिखता मैं किसान के लिए
नहीं लिखता उद्योगों के लिए
नहीं लिखता ऊँचे मकान के लिए
लिखता हूँ सड़कों के लिए
लिखता मैं इंसान के लिए
क़लम मेरी बदलाव बड़े नहीं लाई
नहीं उम्मीद इसकी मुझे
खेत खलियान में बीज ये बो दे
सड़क का एक गढ्ढा भर देती
ये काफ़ी इंसान के लिए
लिखता हूँ किसान के लिए
लिखता मैं इंसान के लिए
आशा नहीं मुझे जगत पढ़े
पर जगत का एक पथिक पढ़े
फिर लाए क्रांति इस समाज के लिए
इसलिए लिखता मैं दबे-कुचलों के लिए
पिछड़े भारत से ज़्यादा
भूखे भारत से डरता हूँ
फिर हरित क्रांति पर लिखता हूँ
फिर किसान पर लिखता हूँ
क्योंकि
लिखता मैं किसान के लिए
लिखता मै इंसान के लिए

                तरुण चौधरी

Title: Likhta me kisaan ke liye || किसान कविता