
Phoolon ka gucha jo yun raase mein akela chhoota hai,
Lagta hau aaj fir kisi heer ne raanjhe ko dhokhha diya hai,
Lagta hai aaj fir kisi sahiba ne apne mirze ko loota hai…
महर-ओ- वफ़ा की शमआ जलाते तो बात थी
इंसानियत का पास निभाते तो बात थी
जम्हूरियत की शान बढ़ाते तो बात थी
फ़िरक़ा परस्तियों को मिटाते तो बात थी
जिससे कि दूर होतीं कुदूरत की ज़ुल्मतें
ऐसा कोई चराग़ जलाते तो बात थी
जम्हूरियत का जश्न मुबारक तो है मगर
जम्हूरियत की जान बचाते तो बात थी
ज़रदार से यह हाथ मिलाना बजा मगर
नादार को गले से लगाते तो बात थी
बर्बाद होने का तो कोई ग़म नहीं मगर
अपना बनाके मुझको मिटाते तो बात थी
हिंदुस्तान की क़सम ऐ रेख़्ता हूँ ख़ुश
पर मुंसिफ़ी की बात बताते तो बात थी
dil e rogi
te kyaal ne gulaam
jo me likhda
gagan di apni naa awaaz.
ਦਿਲ ਏ ਰੋਗੀ
ਤੇ ਖਿਆਲ ਨੇ ਗੁਲਾਮ
ਜੋ ਮੇ ਲਿਖਦਾ
ਓ ਗਗਨ ਦੀ ਆਪਣੀ ਨਾ ਆਵਾਜ਼