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Teri yaad ondi e sajjna||missing shayari

Teri yaad ondi e sjjna..
jdo asi chnda vll dekhde aan..
Tu mehsus hon lgda e..
Jdo sard di thand vll dekhe aan..
Khol k tera intzar krn lgde aan..
Jdon buhe bnd vll dekhde aan..
Fr holi jhi soch k muskura denne aan..
jdo apni psnd vll dekhde aan..

ਤੇਰੀ ਯਾਦ ਆਉਂਦੀ ਏ ਸੱਜਣਾ ਜਦੋਂ ਅਸੀਂ ਚੰਦ ਵੱਲ ਦੇਖਦੇ ਆਂ
ਤੂੰ ਮਹਿਸੂਸ ਹੋਣ ਲੱਗਦਾ ਏ ਜਦੋ ਸਰਦ ਦੀ ਠੰਡ ਵੱਲ ਦੇਖਦੇ ਆਂ
ਖੋਲ ਕੇ ਤੇਰਾ ਇੰਤਜ਼ਾਰ ਕਰਨ ਲਗਦੇ ਆਂ ਜਦੋਂ ਬੂਹੇ ਬੰਦ ਵੱਲ ਦੇਖਦੇ ਆਂ..
ਫਿਰ ਹੌਲੀ ਜਹੀ ਸੋਚ ਕੇ ਮੁਸਕੁਰਾ ਦੇਂਨੇ ਆਂ ਜਦੋਂ ਆਪਣੀ ਪਸੰਦ ਵੱਲ ਦੇਖਦੇ ਆਂ..

Title: Teri yaad ondi e sajjna||missing shayari

Tags:

Best Punjabi - Hindi Love Poems, Sad Poems, Shayari and English Status


Dost bin kuch nahi || yaari shayari

Aaj kal me kyu presan sa ho gya hu..!!

Pta nahi kyu chidchida sa bhi ho gya hu..

Din bhi yuhi gujar rhe hai.. Pta nahi kha kho gya hu..!!

Dost bhi hote hue me kyu akela sa padh gya hu..!!

Na toh bhook or raaton ki neend Lena bhi bhool gya hu..!!

Kabhi khi tumse dur na ho jau,” isliye Aaj kal ush khuda se pray bhi krne lg gya hu..!!

Tumse bichadne ka gham hi hain yaaron.. Joh ab ek Zinda laash sa ban gya hu..!!

BY THE GREAT SYKO..!!

Title: Dost bin kuch nahi || yaari shayari


कवि और धनवान आदमी : अकबर-बीरबल की कहानी

एक दिन एक कवि किसी धनी आदमी से मिलने गया और उसे कई सुंदर कविताएं इस उम्मीद के साथ सुनाईं कि शायद वह धनवान खुश होकर कुछ ईनाम जरूर देगा। लेकिन वह धनवान भी महाकंजूस था, बोला, “तुम्हारी कविताएं सुनकर दिल खुश हो गया। तुम कल फिर आना, मैं तुम्हें खुश कर दूंगा।”

‘कल शायद अच्छा ईनाम मिलेगा।’ ऐसी कल्पना करता हुआ वह कवि घर पहुंचा और सो गया। अगले दिन वह फिर उस धनवान की हवेली में जा पहुंचा। धनवान बोला, “सुनो कवि महाशय, जैसे तुमने मुझे अपनी कविताएं सुनाकर खुश किया था, उसी तरह मैं भी तुमको बुलाकर खुश हूं। तुमने मुझे कल कुछ भी नहीं दिया, इसलिए मैं भी कुछ नहीं दे रहा, हिसाब बराबर हो गया।”

कवि बेहद निराश हो गया। उसने अपनी आप बीती एक मित्र को कह सुनाई और उस मित्र ने बीरबल को बता दिया। सुनकर बीरबल बोला, “अब जैसा मैं कहता हूं, वैसा करो। तुम उस धनवान से मित्रता करके उसे खाने पर अपने घर बुलाओ। हां, अपने कवि मित्र को भी बुलाना मत भूलना। मैं तो खैर वहां मैंजूद रहूंगा ही।”

कुछ दिनों बाद बीरबल की योजनानुसार कवि के मित्र के घर दोपहर को भोज का कार्यक्रम तय हो गया। नियत समय पर वह धनवान भी आ पहुंचा। उस समय बीरबल, कवि और कुछ अन्य मित्र बातचीत में मशगूल थे। समय गुजरता जा रहा था लेकिन खाने-पीने का कहीं कोई नामोनिशान न था। वे लोग पहले की तरह बातचीत में व्यस्त थे। धनवान की बेचैनी बढ़ती जा रही थी, जब उससे रहा न गया तो बोल ही पड़ा, “भोजन का समय तो कब का हो चुका ? क्या हम यहां खाने पर नहीं आए हैं ?”

“खाना, कैसा खाना ?” बीरबल ने पूछा।

धनवान को अब गुस्सा आ गया, “क्या मतलब है तुम्हारा ? क्या तुमने मुझे यहां खाने पर नहीं बुलाया है ?”

खाने का कोई निमंत्रण नहीं था। यह तो आपको खुश करने के लिए खाने पर आने को कहा गया था।” जवाब बीरबल ने दिया। धनवान का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया, क्रोधित स्वर में बोला, “यह सब क्या है? इस तरह किसी इज्जतदार आदमी को बेइज्जत करना ठीक है क्या ? तुमने मुझसे धोखा किया है।”

अब बीरबल हंसता हुआ बोला, “यदि मैं कहूं कि इसमें कुछ भी गलत नहीं तो…। तुमने इस कवि से यही कहकर धोखा किया था ना कि कल आना, सो मैंने भी कुछ ऐसा ही किया। तुम जैसे लोगों के साथ ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए।”

धनवान को अब अपनी गलती का आभास हुआ और उसने कवि को अच्छा ईनाम देकर वहां से विदा ली।

वहां मौजूद सभी बीरबल को प्रशंसा भरी नजरों से देखने लगे।

Title: कवि और धनवान आदमी : अकबर-बीरबल की कहानी