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Rahat mili menu ❤️ || true love shayari || Punjabi status images

Punjabi shayari || true love shayari || Punjabi status ||Tu taan zariya e meri ibadat da
Na puch na sukun vala haal sajjna..!!
Rahat mili menu Jo mohobbat hoyi
Tere andar bethe khuda naal sajjna..!!
Tu taan zariya e meri ibadat da
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Title: Rahat mili menu ❤️ || true love shayari || Punjabi status images

Best Punjabi - Hindi Love Poems, Sad Poems, Shayari and English Status


अकबर का साला || akbar story

अकबर का साला हमेशा से ही बीरबल की जगह लेना चाहता था। अकबर जानते थे कि बीरबल की जगह ले सके ऐसा बुद्धिमान इस संसार में कोई नहीं है। फिर भी जोरू के भाई को वह सीधी ‘ना’ नहीं बोल सकते थे। ऐसा कर के वह अपनी लाडली बेगम की बेरुखी मोल नहीं लेना चाहते थे। इसीलिए उन्होने अपने साले साहब को एक कोयले से भरी बोरी दे दी और कहा कि-

जाओ और इसे हमारे राज्य के सबसे मक्कार और लालची सेठ – सेठ दमड़ीलाल को बेचकर दिखाओ , अगर तुम यह काम कर गए तो तुम्हें बीरबल की जगह वज़ीर बना दूंगा।

अकबर की इस अजीब शर्त को सुन कर साला अचंभे में पड़ गया। वह कोयले की बोरी ले कर चला तो गया। पर उसे पता था कि वह सेठ किसी की बातो में नहीं आने वाला ऊपर से वह उल्टा उसे ही चूना लगा देगा। हुआ भी यही सेठ दमड़ीलाल ने कोयले की बोरी के बदले एक ढेला भी देने से इनकार कर दिया।
साला अपना सा मुंह लेकर महल वापस लौट आया और अपनी हार स्वीकार कर ली.
अब अकबर ने वही काम बीरबल को करने को कहा।
बीरबल कुछ सोचे और फिर बोले कि सेठ दमड़ीलाल जैसे मक्कार और लालची सेठ को यह कोयले की बोरी क्या मैं सिर्फ कोयले का एक टुकड़ा ही दस हज़ार रूपये में बेच आऊंगा। यह बोल कर वह तुरंत वहाँ से रवाना हो गए।
सबसे पहले उसने एक दरज़ी के पास जा कर एक मखमली कुर्ता सिलवाया। हीरे-मोती वाली मालाएँ गले में डाली। महंगी जूती पहनी और कोयले को बारीक सुरमे जैसा पिसवा लिया।

फिर उसने पिसे कोयले को एक सुरमे की छोटी चमकदार डिब्बी में भर लिया। इसके बाद बीरबल ने अपना भेष बदल लिया और एक मेहमानघर में रुक कर इश्तिहार दे दिया कि बगदाद से बड़े शेख आए हैं। जो करिश्माई सुरमा बेचते हैं। जिसे आँखों में लगाने से मरे हुए पूर्वज दिख जाते हैं और यदि उन्होंने कहीं कोई धन गाड़ा है तो उसका पता बताते हैं। यह बात शहर में आग की तरह फ़ैली।

सेठ दमड़ीलाल को भी ये बात पता चली। उसने सोचा ज़रूर उसके पूर्वजों ने कहीं न कहीं धन गाड़ा होगा। उसने तुरंत शेख बने बीरबल से सम्पर्क किया और सुरमे की डिब्बी खरीदने की पेशकश की। शेख ने डिब्बी के 20 हज़ार रुपये मांगे और मोल-भाव करते-करते 10 हज़ार में बात तय हुई।
पर सेठ भी होशियार था, उसने कहा मैं अभी तुरंत ये सुरमा लगाऊंगा और अगर मुझे मेरे पूर्वज नहीं दिखे तो मैं पैसे वापस ले लूँगा।
बीरबल बोला, “बिलकुल आप ऐसा कर सकते हैं, चलिए शहर के चौराहे पर चलिए और वहां इसे जांच लीजिये।”
सुरमे का चमत्कार देखने के लिए भीड़ इकठ्ठा हो गयी।

तब बीरबल ने ऊँची आवाज़ में कहा, “ये सेठ अभी ये चमत्कारी सुरमा लगायेंगे और अगर ये उन्ही की औलाद हैं जिन्हें ये अपना माँ-बाप समझते हैं तो इन्हें इनके पूर्वज दिखाई देंगे और गड़े धन के बारे में बताएँगे। लेकिन अगर आपके माँ-बाप में से किसी ने भी बेईमानी की होगी और आप उनकी असल औलाद नहीं होंगे तो आपको कुछ भी नहीं दिखेगा।
और ऐसा कहते ही बीरबल ने सेठ की आँखों में सुरमा लगा दिया।

फिर क्या था, सिर खुजाते हुए सेठ ने आँखें खोली। अब दिखना तो कुछ था नहीं, पर सेठ करे भी तो क्या करे!
अपनी इज्ज़त बचाने के लिए सेठ ने दस हज़ार बीरबल के हाथ थमा दिये। और मुंह फुलाते हुए आगे बढ़ गए।
बीरबल फ़ौरन अकबर के पास पहुंचे और रुपये थमाते हुए सारी कहानी सुना दी।

अकबर का साला बिना कुछ कहे अपने घर लौट गया। और अकबर-बीरबल एक दूसरे को देख कर मंद-मंद मुसकाने लगे। इस किस्से के बाद फिर कभी अकबर के साले ने बीरबल का स्थान नहीं मांगा।

Title: अकबर का साला || akbar story


Original Poem bullah ki jaane me kaun || Bulleh Shah

Na me moman vich maseetan na me vich kufar diyaan reetan
na me pakaan vich paleetan, na me moosa na faraon
bullah ki jaane me kaun

Na me ander bed katebaan, na vich bhangaan na sharaaban
na vich rindaa mast khraaban, na vich jagan na vich saun
bullah ki jaane me kaun

na vich shaadi na gamnaaki, na me vich paleeti paki
na me aabi na me khaki, na me aatish na me paun
bullah ki jaane me kaun

na me arbi na lahauri, na me hindi shehar nagauri
na hindu na turak pashori, na me rehnda vich nadaun
bullah ki jaane me kaun

na me bhet majahab da payea, na me aadam hava jamayea
na me aapna naam dharayea, na vich baithan na vich bhaun
bullah ki jaane me kaun

awal aakhar aap nu jaana, na koi dooja hor pachhana
maithon hor na koi siyaana, bullah shah khadha hai kaun
bullah ki jaane me kaun

ਨਾ ਮੈਂ ਮੋਮਨ ਵਿਚ ਮਸੀਤਾਂ, ਨਾ ਮੈਂ ਵਿਚ ਕੁਫ਼ਰ ਦੀਆਂ ਰੀਤਾਂ,
ਨਾ ਮੈਂ ਪਾਕਾਂ ਵਿਚ ਪਲੀਤਾਂ, ਨਾ ਮੈਂ ਮੂਸਾ ਨਾ ਫਰਔਨ ।
ਬੁੱਲ੍ਹਾ ਕੀ ਜਾਣਾ ਮੈਂ ਕੌਣ ।

ਨਾ ਮੈਂ ਅੰਦਰ ਬੇਦ ਕਿਤਾਬਾਂ, ਨਾ ਵਿਚ ਭੰਗਾਂ ਨਾ ਸ਼ਰਾਬਾਂ,
ਨਾ ਵਿਚ ਰਿੰਦਾਂ ਮਸਤ ਖਰਾਬਾਂ, ਨਾ ਵਿਚ ਜਾਗਣ ਨਾ ਵਿਚ ਸੌਣ ।
ਬੁੱਲ੍ਹਾ ਕੀ ਜਾਣਾ ਮੈਂ ਕੌਣ ।

ਨਾ ਵਿਚ ਸ਼ਾਦੀ ਨਾ ਗ਼ਮਨਾਕੀ, ਨਾ ਮੈਂ ਵਿਚ ਪਲੀਤੀ ਪਾਕੀ,
ਨਾ ਮੈਂ ਆਬੀ ਨਾ ਮੈਂ ਖ਼ਾਕੀ, ਨਾ ਮੈਂ ਆਤਿਸ਼ ਨਾ ਮੈਂ ਪੌਣ ।
ਬੁੱਲ੍ਹਾ ਕੀ ਜਾਣਾ ਮੈਂ ਕੌਣ ।

ਨਾ ਮੈਂ ਅਰਬੀ ਨਾ ਲਾਹੌਰੀ, ਨਾ ਮੈਂ ਹਿੰਦੀ ਸ਼ਹਿਰ ਨਗੌਰੀ,
ਨਾ ਹਿੰਦੂ ਨਾ ਤੁਰਕ ਪਸ਼ੌਰੀ, ਨਾ ਮੈਂ ਰਹਿੰਦਾ ਵਿਚ ਨਦੌਣ ।
ਬੁੱਲ੍ਹਾ ਕੀ ਜਾਣਾ ਮੈਂ ਕੌਣ ।

ਨਾ ਮੈਂ ਭੇਤ ਮਜ਼ਹਬ ਦਾ ਪਾਇਆ, ਨਾ ਮੈਂ ਆਦਮ ਹਵਾ ਜਾਇਆ,
ਨਾ ਮੈਂ ਆਪਣਾ ਨਾਮ ਧਰਾਇਆ, ਨਾ ਵਿਚ ਬੈਠਣ ਨਾ ਵਿਚ ਭੌਣ ।
ਬੁੱਲ੍ਹਾ ਕੀ ਜਾਣਾ ਮੈਂ ਕੌਣ ।

ਅੱਵਲ ਆਖਰ ਆਪ ਨੂੰ ਜਾਣਾਂ, ਨਾ ਕੋਈ ਦੂਜਾ ਹੋਰ ਪਛਾਣਾਂ,
ਮੈਥੋਂ ਹੋਰ ਨਾ ਕੋਈ ਸਿਆਣਾ, ਬੁਲ੍ਹਾ ਸ਼ਾਹ ਖੜ੍ਹਾ ਹੈ ਕੌਣ ।
ਬੁੱਲ੍ਹਾ ਕੀ ਜਾਣਾ ਮੈਂ ਕੌਣ ।

Title: Original Poem bullah ki jaane me kaun || Bulleh Shah