Kade ikalla beh muskawe..!!
Dil nu lagge marz pyar de
Dass kon samjhawe..!!
खत्म कर चुका खुद को अंदर से
बस बाहर से जालना बाकी है
भीड़ लगी है मजार पर गैरो की ,
बस अपनों का आना बाकी है
जीते जी सबको हसाया बहोत है ,
बस जाते – जाते सबको रुलाया बाकी है ।
याद करके उसे ,रोये बहोत है
जाते जाते उसे रुलाना बाकी है
खवाब देखे थे साथ के उसके कुछ
जाते हुये उन्हे दफनाना बाकी है ।
यू ना रुखसत करो विरानियत से
अभी मेरी अर्थी को सजाना बाकी है ,
यू तो गुजरा हु बहोत बार अंधेरों से
बीएस आखिरी दफा दिल्ल को जलाना बाकी है ।
सेहमी हुई सी आंखें उनकी, जैसा कुछ कहना चाहती हैं..
बिना बोले भी जुबान उनकी, जैसी बहुत कुछ बताती है..
जब तक उनके चेहरे पर आई वो बात पढ़ने की कोशिश करता हूं..
ना जाने क्या हो जाता है उसे, नजरें फेर कर चली जाती है..