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Shayari | Latest Shayari on Hindi, Punjabi and English

Gam di raat || sad punjabi shayari

Sad punjabi shayari || gam shayari || sad shayari



Money can’t buy || English quotes

“It’s good to have money and the things that money can buy, but it’s good, too, to check up once in a while and make sure that you haven’t lost the things that money can’t buy.”

बेटियाँ /बेटी पर कविता || betiya || hindi poetry on daughters

रिश्तों की एक खूबसूरत एहसास होती हैं बेटियाँ
घर की रौनक, उदासियों में खिलखिलाहट
अंधियारे में उजियारा होती हैं बेटियाँ..
जीवन डगर की बेशकीमती सौगात होती हैं ये बेटियाँ।
 
निश्छल मन के भावों से ओतप्रोत
चिलचिलाती धूप में भी शीतल छांव होती हैं बेटियाँ
उम्र के हर पड़ाव में, हर सुख-दुख में,
माता-पिता की परछाई होती हैं ये बेटियाँ।
 
जग कहे पराया धन बेटी को
पर इंद्रधनुष के सात रंगों की तरह
कभी मां, कभी बहन..
ना जाने कितने रिश्तों में बंध जाती हैं ये बेटियाँ।
 
जब हर रिश्ते साथ छोड़ जाते हैं
तब पूर्ण समर्पण से अडिग साथ खड़ी रहती हैं ये  बेटियाँ
मां की ममता में पली,पिता के गर्व में लिपटी
स्वर्ग से उतरी परी होती हैं ये बेटियाँ।
 
परिवार को एक डोर में पिरोकर रखती हैं ये बेटियाँ
कम नहीं ये किसी से..
यूं समझ लो – बेमिसाल होती हैं बेटियाँ
रिश्तों की एक खूबसूरत एहसास होती हैं बेटियाँ।।

कहते थे साथ ना छोड़ेंगे हम || kehte the sath na shodenge hum || hindi sad shayari

कहते थे साथ ना छोड़ेंगे हम,
आज वो रिश्ते यूँ रुसवा हो गए |

मेरी होंठो पे हंसी देखेंगे हर दम,
कहने वाले आज बेगाने हो गए|

आँखों में खुशियों की चमक देने वाले,
आज उदासी का आलम दे गए |

छोटी – सी बात का तल्ख क्यूँ इतना,
प्यार के वादे का हर जुमला झूठे हो गए |

इश्क में जला करते थे जो दिन – रात,
अब वो परवाने नफ़रत में जल गए |

हो जाती सुलह माफ़ी दिल में रखने से,
वो तो अपनी जिद के पैमाने हो गए|

हार में ही होती है, मुहब्बत की जीत
जीतने की जुस्तजू में वो जुदा हो गए |

दिल धड़कता था जिसके लिए हर पल,
वो दिल अब खौफजदा हो गए|

पहुंच जाते थे मेरी खामोशी में जो मुझ तक,
वही आज लफ्जों में अलविदा कह गए||

इंतज़ार || intezAar || hindi love poetry

कुछ हलचल सी है सीने में
सुकून कुछ खोया – सा है
जाने कैसी है ये अनुभूति
दिल कुछ रोया – सा है
कुछ आहट सी आयी है
और दिल कुछ धड़का – सा है।

हाथ – पाँव में हो रही कंपन-सी
बेचैनी ये जानी पहचानी – सी है
सांसे भी है कुछ थमी – सी
कितने वक्त गुज़र गये इन्तजार में
मेरी आहें भी हैं कुछ जमी – सी।

पलकें अब मूँदने लगी हैं
साँसें अब क्षीण पड़ रही हैं
अब तो आ जाओ इन लम्हों में
जाने कब लौटोगे?
आने का वादा था और ना भी था तो,
तुम्हारा इन्तज़ार तो था..

सारी हदें तोड़ कर आ जाओ
दुनिया की रस्मों को छोड़ कर आ जाओ
चंद लम्हों के लिए ही,
अब तो आ जाओ
मेरे लिए.. सिर्फ मेरे लिए |

बुरा नहीं हूँ मैं। || bura nahi hu mein || sad but true || hindi poetry

हाँ, मैं तीखा बोलता हूँ
सच बोलता हूँ
कड़वा बोलता हूँ
लेकिन, बुरा नहीं हूं मैं।
दिखावे की मीठी बोली नहीं बोलता
पीठ पीछे किसी की शिकायत नहीं करता
मन में दबाकर कोई बैर भाव नहीं रखता
कुंठित विचार नहीं पालता
हाँ, बुरा नहीं हूं मैं।
किसी का बुरा नहीं चाहता
किसी पर छुपकर वार नहीं करता
कभी ह्रदय छलनी हो जाए तो
छुपकर अकेले रो लेता
सबकी मदद दिल से करता
हाँ, बुरा नहीं हूं मैं।
अपनी जिम्मेदारियों से बैर नहीं मुझे
कर्म ही मेरी पहचान है
छलावे के रिश्ते बनाना नहीं आता मुझे
बुरे वक्त में साथ छोड़ना नहीं सीखा मैंने
हाँ, बुरा नहीं हूं मैं।
मौकापरस्त दुनिया ने दिल दुखाया मेरा
फिर भी चुप रहा मैं..
आवाज उठाई कभी जो मैंने
बुरा मान लिया जमाने ने
वक्त नहीं अब मेरे पास इन से उलझने का
हाँ, मैं मौन हूं..
लेकिन,
बुरा नहीं हूं मैं।।

याद है ना तुम्हें || hindi poetry

याद है ना तुम्हें..
पहली दफा,
जब कलम मेरी बोली थी
तुम पर शब्दों की कुछ लड़ियां
मैंने पिरोई थी।

तुम्हारे गुजरे पलों में बेशक मैं नहीं थी
तुम्हारे संग भविष्य की अपेक्षा भी नहीं थी
हां,वर्तमान के कुछ चंद क्षण
साझा करने की ख्वाहिश जरुर थी।

याद है ना तुम्हें..
पहली दफा,
जब कलम मेरी बोली थी
तुम पर शब्दों की कुछ लड़ियां
मैंने पिरोई थी।

देखो, आज फिर उंगलियों ने मेरी
कलम उठाई है
कुछ अनसुनी भावनाओं को संग अपने
समेट लाई है
माना ,मेरे शब्दों ने आहत किया तुम्हें
लेकिन क्या,असल भाव को पहचाना तुमने?

याद है ना तुम्हें..
पहली दफा,
जब कलम मेरी बोली थी
तुम पर शब्दों की कुछ लड़ियां
मैंने पिरोई थी।

उलझ गए तुम निरर्थक शब्दों में
पढ़ा नहीं जो लिखा है कोमल हृदय में
चल दिए छोड़ उसे, तुम अपनी अना में
बंधे थे हम तुम, जिस अनदेखे रिश्ते की डोर में

याद है ना तुम्हें..
पहली दफा,
जब कलम मेरी बोली थी
तुम पर शब्दों की कुछ लड़ियां
मैंने पिरोई थी।

बीत गए कई बारिश के मौसम
क्या धुले नहीं, जमे धूल मन के?
है अर्जी मेरी चले आओ तुम
मेरे भीतर के तम को रोशनी दिखाओ तुम..

याद है ना तुम्हें..
पहली दफा,
जब कलम मेरी बोली थी
तुम पर शब्दों की कुछ लड़ियां
मैंने पिरोई थी।