लिखना था कि
खुश हैं तेरे बगैर भी यहां हम,
मगर कमबख्त…
आंसू हैं कि कलम से
पहले ही चल दिए।
लिखना था कि
खुश हैं तेरे बगैर भी यहां हम,
मगर कमबख्त…
आंसू हैं कि कलम से
पहले ही चल दिए।
ਕਿਦਾਂ ਇੰਤਜ਼ਾਰ ਕਰਦਾ ਐਂ ਤੂੰ
ਬੇਵਫਾ ਤੇ ਕਾਤੋਂ ਮਰਦਾਂ ਐਂ ਤੂੰ
ਭੁਲਾ ਦਿਆਂ ਹੋਣਾ ਓਹਣੇ ਤੈਨੂੰ ਤੂੰ ਵੀ ਭੁਲਾ ਦੇ
ਏਹ ਇਸ਼ਕ ਮਿਨਾਰਾਂ ਤੇ ਕਾਤੋ ਚੜਦਾ ਐਂ ਤੂੰ
ਹਰ ਇੱਕ ਲਫ਼ਜ਼ ਓਹਦੇ ਝੁਠੇ ਸੀ
ਤੂੰ ਹਰੇਕ ਤੇ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਨਾ ਕਰਿਆ ਕਰ
ਦਰਦਾਂ ਨੂੰ ਨਿਸ਼ਾਨੀ ਵਾਂਗੂੰ ਦੇ ਗਏ
ਇਸ਼ਕ ਕੀਤਾ ਹੈ ਤਾਂ ਦਰਦਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਜ਼ਰੀਆ ਕਰ
ਇਸ਼ਕ ਕਾਤੋ ਕਿਤਾ ਜੇ ਇਹਣਾ ਡਰਦਾ ਐਂ ਤੂੰ
ਦਰਦਾਂ ਤੋਂ ਬਚਿਆ ਹੁੰਦਾ ਜੇ
ਇੱਸ਼ਕ ਮਿਨਾਰਾਂ ਤੇ ਨਾਂ ਚੜ੍ਹਿਆ ਹੁੰਦਾ ਤੂੰ
—ਗੁਰੂ ਗਾਬਾ
जीवन में वह था एक कुसुम,
थे उस पर नित्य निछावर तुम,
वह सूख गया तो सूख गया;
मधुवन की छाती को देखो,
सूखीं कितनी इसकी कलियाँ,
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ जो
मुरझाईं फिर कहाँ खिलीं;
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुवन शोर मचाता है;
जो बीत गई सो बात गई!
जीवन में मधु का प्याला था,
तुमने तन-मन दे डाला था,
वह टूट गया तो टूट गया;
मदिरालय का आँगन देखो,
कितने प्याले हिल जाते हैं,
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं,
जो गिरते हैं कब उठते हैं;
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है!
जो बीत गई सो बात गई!
मृदु मिट्टी के हैं बने हुए,
मधुघट फूटा ही करते हैं,
लघु जीवन लेकर आए हैं,
प्याले टूटा ही करते हैं,
फिर भी मदिरालय के अंदर
मधु के घट हैं, मधुप्याले हैं,
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं;
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट-प्यालों पर,
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है, चिल्लाता है!
जो बीत गई सो बात गई!