
Menu sab mil jaye je kahe eh tu..!!

फूलों ने कभी तोड़ने का दर्द कहा है,
कांटों ने ही हमेशा दुश्मनी निभाई है;
मोहब्बत भी फना का ही एक और नाम है,
यह रूसवा तो हुई है, पर इसने हमेशा वफादारी निभाई है।
ऐ चांद तेरे आने का सबब सबको मालूम नहीं,
कुछ लोग दिया जलाते हैं, और कुछ दिल जलाते हैं;
या वो अच्छी हैं या बुरी, हसरतें तो अपनी हैं,
मगर लोग अक्सर दाग तुझ पर लगाते हैं।
ऐ मेरे दोस्त तू समन्दर बन जा,
क्या खोया क्या पाया इसकी चाहत न कर;
तेरे अंदर ही एक मुकम्मल जहां है,
तू बाहर से किसी और की आस न कर।
मुमकिन है कि मंजिलें मुझसे दूर बहुत हैं,
पर रास्ते पर चलना मेरी फितरत बन गयी है;
उजाले समेटने में कोई वाहवाही नहीं,
अन्धेरों में रोशनी करना मेरी आदत बन गयी है।
ऐसे चलो कि चल के फिर गिरना न पड़े,
इतना उठो कि उठ के फिर झुकना न पड़े;
लेकिन गिरना, उठना तेरे बस में नहीं ऐ दोस्त,
इसलिए उसका हाथ पकड़ के चलो कि फिर रोना न पड़े।
मां के हाथों की बरकत का अंदाजा इस से हो गया,
थी एक वक्त की रोटी हर रोज,
और तीस वर्ष तक गुजारा हो गया;
आज रोटी तो है हर वक्त की, लेकिन वो वक्त कहीं पर खो गया।
ऐ जिंदगी, ये तेरे सवाल की तारीफ नहीं,
यह मेरे जवाब का हुनर कि जिंदगी की उलझने सुलझती चली गयीं;
मैं तो बस अपने दिल की कह रहा था,
और कहानियां बनती चली गयीं।
न थी जिंदगी से शिकायत,
न वक्त से कुछ गिला था;
जो मुझको नहीं मिला,
वो खुद मेरा ही सिला था;
मदद-ओ-मशवरे कम नहीं थे मददगारों के,
पर अफसोस जो तकदीर ने दिया था वह दर्द ही मुझे मिला था।
ऐ वतन कर्ज तो तेरा मैं जब उतारूं, जब मेरे पास कुछ अपना भी हो; तेरी मिट्टी, तेरा पानी, तेरी हवा, तेरी धूप, तेरी छांव, तेरी रोटी और नाम तेरा, फिर भी बस एक कतरा ही बन पाउं तेरा, तो मैं समझूं और तुझको मैं अपना पुकारूं।
जिंदगी जीने का अंदाज तो आया मगर अफसोस,
वो मुकम्मल एहसास नहीं आया;
वो हुनर तो आया मगर,
ऐ बदनसीबी वो मुकाम कभी नहीं आया।
यूं गलतफहमियां पाला न करो,कभी आईने में खुद को निहारा भी करो; ये जो चेहरा है वो सब कुछ बयां कर देता है; कभी इसको जुबां पर उतारा भी करो।
आशुतोष श्रीवास्तव
Swere uth likhda haan shayari
Tere khayalan ton bgair koi khayal ni
Mohobbat ch edda hi sabhnu lagda e?
Jive menu lagda har ek pal saal ni
Fer din ch kyi vaar zikar tera aunda e
Tenu parwah nhi meri eh khayal aunda e
Nindra udd gyian khulli akhan ch supne tere
Kde nikal supneya cho sahmne vi taan aaya kar
Kinne hi saal ho gye hun intezaar ch tere 🍂
ਸਵੇਰੇ ਉੱਠ ਲਿਖਦਾ ਹਾਂ ਸ਼ਾਇਰੀ
ਤੇਰੇ ਖਿਆਲਾ ਤੋਂ ਬਗੈਰ ਕੋਈ ਖਿਆਲ ਨੀ
ਮਹੁੱਬਤ ‘ਚ ਇਦਾਂ ਹੀ ਸਭਨੂੰ ਲੱਗਦਾ ਏ ?
ਜਿਵੇਂ ਮੈਨੂੰ ਲੱਗਦਾ ਹਰ ਇੱਕ ਪਲ ਸਾਲ ਨੀ
ਫੇਰ ਦਿਨ ‘ਚ ਕਈ ਵਾਰ ਜ਼ਿਕਰ ਤੇਰਾ ਆਉਂਦਾ ਏ
ਤੈਨੂੰ ਪ੍ਰਵਾਹ ਨਹੀਂ ਮੇਰੀ ਇਹ ਖਿਆਲ ਆਉਂਦਾ ਏ
ਨਿੰਦਰਾ ਉੱਡ ਗਈਆਂ ਖੁੱਲੀ ਅੱਖਾਂ ‘ਚ ਸੁਪਨੇ ਤੇਰੇ
ਕਦੇ ਨਿਕਲ ਸੁਪਨਿਆਂ ਚੋਂ ਸਾਹਮਣੇ ਵੀ ਤਾਂ ਆਇਆ ਕਰ
ਕਿੰਨੇ ਹੀ ਸਾਲ ਹੋ ਗਏ ਹੁਣ ਇੰਤਜਾਰ ‘ਚ ਤੇਰੇ🍂