बिन मंजिल का मुसाफिर उसे दर ब_दर भटकना पड़ा
तपती सहराव में नंगे पांव चला ही चलना पड़ा
ता_उम्र उसने खुदा का शुक्र ही अदा किया उसने
मोहब्बत का मरीज__दुआ में मौत मांगा पड़ा
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बिन मंजिल का मुसाफिर उसे दर ब_दर भटकना पड़ा
तपती सहराव में नंगे पांव चला ही चलना पड़ा
ता_उम्र उसने खुदा का शुक्र ही अदा किया उसने
मोहब्बत का मरीज__दुआ में मौत मांगा पड़ा
तुझे देखने की ख्वाहिश ले के घर से तो निकल पड़ता हूँ…
यही सोच के कि तू आज मिलेगी जरूर…
पर इस दिल को क्या पता है… कि तू उसे भूल चुकी हैं…
यूँ तो तेरा हर बार का मुस्कुराना इन
हवाओं और फिज़ाओ में बसा हैं…
ये हवा जब भी तुझे छूकर गुजरती है…
ना चाहते हुए भी तू याद आ ही जाती है।
Ruswaai ja narazgi jinni marzi howe
Sache pyar te kade jittt nahi pa sakdi..!!
ਰੁਸਵਾਈ ਜਾਂ ਨਰਾਜ਼ਗੀ ਜਿੰਨੀ ਮਰਜ਼ੀ ਹੋਵੇ
ਸੱਚੇ ਪਿਆਰ ਤੇ ਕਦੇ ਜਿੱਤ ਨਹੀਂ ਪਾ ਸਕਦੀ..!!