ਬਿਤਿਆ ਕਲ ਆਜ ਤੇ ਹਾਵੀ
ਦਿਲ ਦੀ ਗੱਲ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਨਾ ਬਤਾਵੀ
ਸੱਪਾਂ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਜੇਹਰ ਲੋਕਾਂ ਚ
ਏਣਾ ਤੋਂ ਹਰ ਰਾਜ ਲੁਕਾਵੀ
Beetiya kal aaj te havi
Dil di gall kise nu na batavi
Sapa to jiyada jehar loka ch
Ena to har raaj lukavi
—ਗੁਰੂ ਗਾਬਾ
ਬਿਤਿਆ ਕਲ ਆਜ ਤੇ ਹਾਵੀ
ਦਿਲ ਦੀ ਗੱਲ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਨਾ ਬਤਾਵੀ
ਸੱਪਾਂ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਜੇਹਰ ਲੋਕਾਂ ਚ
ਏਣਾ ਤੋਂ ਹਰ ਰਾਜ ਲੁਕਾਵੀ
Beetiya kal aaj te havi
Dil di gall kise nu na batavi
Sapa to jiyada jehar loka ch
Ena to har raaj lukavi
—ਗੁਰੂ ਗਾਬਾ
विक्रम बेताल की प्रारंभिक कहानी कुछ इस प्रकार है। बहुत समय पहले की बात है। उज्जयनी नाम के राज्य में राजा विक्रामादित्य राज किया करते थे। राजा विक्रामादित्य की न्यायप्रियता, कर्तव्यनिष्ठता और दानशीलता के चर्चे पूरे देश में मशहूर थे। यही कारण था कि दूर-दूर से लोग उनके दरबार में न्याय मांगने आया करते थे। राजा हर दिन अपने दरबार में लोगों की तकलीफों को सुनते और उनका निवारण किया करते थे।
एक दिन की बात है। राजदरबार लगा हुआ था। तभी एक भिक्षु विक्रमादित्य के दरबार में आता है और एक फल राजा को देकर चला जाता है। राजा उस फल को कोषाध्यक्ष को दे देता है। उस दिन के बाद से हर रोज वह भिक्षु राजा के दरबार में आने लगा। उसका रोज का काम यही था कि वह राजा को फल देता और चुपचाप चला जाता। राजा भी प्रत्येक दिन भिक्षु द्वारा दिया गया फल कोषाध्यक्ष को थमा देता। ऐसे करते-करते करीब 10 साल बीत गए।
एक दिन जब भिक्षु फिर राजा के दरबार में आकर फल देता है, तो इस बार राजा फल कोषाध्यक्ष को न देकर वहां मौजूद एक पालतू बंदर के बच्चे को दे देते हैं। यह बंदर किसी सुरक्षाकर्मी का था, जो छूट कर अचानक राजा के पास आ जाता है।
बंदर जब उस फल को खाने के लिए तोड़ता है, तो उस फल के बीच से एक बहुमूल्य रत्न निकलता है। उस रत्न की चमक को देख राज दरबार में मौजूद सभी लोग हैरत में पड़ जाते हैं। राजा भी यह नजारा देख आश्चर्य में पड़ जाता है। राजा कोषाध्यक्ष को इससे पूर्व भिक्षु द्वारा दिए गए सभी फलों के बारे में पूछता है।
राजा के पूछने पर कोषाध्यक्ष बताता है कि महाराज मैंने उन सभी फलों को राज कोष में सुरक्षित रखवा दिया है। मैं उन सभी फलों को अभी लेकर आता हूं। कुछ देर बाद कोषाध्यक्ष राजा को आकर बताता है कि सभी फल सड़-गल गए हैं। उनके स्थान पर बहुमूल्य रत्न बचे हुए हैं। यह सुनकर राजा बहुत खुश होता है और कोषाध्यक्ष को सारे रत्न सौंप देता है।
अगली बार जब भिक्षु फल लेकर दोबारा विक्रमादित्य के दरबार पहुंचता है, तो राजा कहते हैं, “भिक्षु मैं आपका फल तब तक ग्रहण नहीं करूंगा, जब तक आप यह नहीं बताते कि हर दिन आप इतनी बहुमूल्य भेंट मुझे क्यों अर्पित करते हैं?
राजा की यह बात सुन भिक्षु उन्हें एकांत स्थान पर चलने को कहता है। एकांत में ले जाकर भिक्षु राजा को बताता है कि मुझे मंत्र साधना करनी हैं और उस साधना के लिए मुझे एक वीर पुरुष की जरूरत है। चूंकि, मुझे तुमसे वीर दूसरा कोई नहीं मिल सकता, इसलिए यह बहुमूल्य उपहार तुम्हें दे जाता हूं।
भिक्षु की बात सुन राजा विक्रमादित्य उसकी सहायता करने का वचन देते हैं। तब भिक्षु राजा को बताता है कि अगली अमावस्या की रात को उसे पास के श्मशान आना होगा, जहां वह मंत्र साधना की तैयारी करेगा। इतना कहकर भिक्षु वहां से चला जाता है।
अमावस्या का दिन आते ही राजा को भिक्षु की बात याद आती है और वह वचन के अनुसार श्मशान पहुंच जाते हैं। राजा को देख भिक्षु बहुत प्रसन्न होता है। भिक्षु कहता है, “हे राजन, तुम यहां आए मैं बहुत खुश हुआ कि तुम्हें तुम्हारा वचन याद रहा। अब यहां से पूर्व की दिशा में जाओ। वहां एक महाश्मशान मिलेगा। उस महाश्मशान में एक शीशम का एक विशाल वृक्ष है। उस वृक्ष पर एक मुर्दा लटका हुआ है। उस मुर्दे को तुम्हें मेरे पास लेकर आना है। भिक्षु की बात सुनकर राजा सीधे उस मुर्दे को लाने चल देता है।
महाश्मशान में पहुंचने के बाद राजा को एक विशाल शीशम के पेड़ पर एक मुर्दा लटका हुआ दिखाई देता है। राजा अपनी तलवार खींचता है और पेड़ से बंधी डोर को काट देता है। डोर कटते ही मुर्दा जमीन पर आ गिरता है और जोर से चीखने की आवाज आती है।
दर्दभरी चीख सुन राजा को लगता है कि शायद यह मुर्दा नहीं, बल्कि कोई जिंदा इंसान है। थोड़ी देर बाद जब मुर्दा तेजी से हंसने लगता है और फिर पेड़ पर जाकर लटक जाता है, तो विक्रम समझ जाता है कि इस मुर्दे पर बेताल चढ़ा है। काफी कोशिश के बाद विक्रम बेताल को पेड़ से उतार अपने कंधे पर टांग लेते हैं।
इस पर बेताल विक्रम से कहता है, “विक्रम मैं तेरे साहस को मान गया। तू बड़ा ही पराक्रमी है। मैं तेरे साथ चलता हूं, लेकिन मेरी एक शर्त है कि पूरे रास्ते में तू कुछ भी नहीं बोलेगा।” विक्रम सिर हिलाकर हां में बेताल की बात मान लेता है।
इसके बाद बेताल विक्रम से कहता है कि रास्ता लंबा है, इसलिए इस रास्ते को रोमांचक बनाने के लिए मैं तुझे एक कहानी सुनाता हूं। तो यह थी विस्तार से राजा विक्रम, योगी और बेताल की आरंभिक कहानी। यही से शुरू होता है बेताल पच्चीसी की 25 कहानियों का सफर, जो बेताल एक-एक करके विक्रम को सुनाता है। कहानियों के विक्रम-बेताल के इस भाग में आपको बेताल पच्चीसी की सभी कहानियां एक साथ पढ़ने को मिलेंगी।
ਤੇਰੇ ਕਦਮਾਂ ਦੀ ਆਹਟ ,
ਮੇਰੀ ਧਡ਼ਕਣ ਨਾਲ ਜੁੜੀ ਐ ।
ਵੇਖੀ ਬੂਹਾ ਖਡ਼ਕਿਆਂ,
ਕੋਈ ਰੀਂਝ ਅਧੂਰੀ ਮੁਡ਼ੀ ਐ।
ਤੇਰੇ ਕੋਲ ਪਹੁੰਚ ਜਾਵੇਗੀ,
ਤੇਰੀ ਯਾਦ ਅੱਜ ਕੱਲ੍ਹ ਮੇਰੇ ਕੋਲੋਂ ਤੁਰੀ ਐ।
ਫਖਰ ਬਣੀ ਮੁਹੱਬਤ ਲਈ,
ਬੇਸ਼ੱਕ ਜਾਣਦੀ ਜ਼ਮਾਨੇ ਹੱਥ ਛੁਰੀ ਐ।
ਬੇਫਿਕਰਾਂ ਜਿਹਾ ਸੱਜਣ ਮੇਰਾਂ,
ਜਿਹਦੇ ਫਿਕਰਾਂ ਚ ਜਿੰਦ ਮੇਰੀ ਝੁਰੀ ਐ।
ਪੱਥਰ ਬਣਦਾ ਦਿਨ ਬਦਿਨ,
ਗੀਤ ਜਿਹਦੇ ਲਈ ਮੋਮ ਵਾਗਰਾਂ ਖੁਰੀ ਐ..ਹਰਸ✍️