है कोई हकीकत या कोई हसरत है
आखिर किसके खातिर रातों की ये इबादत है
हकीम की हैरानगी पर लोग दुआ क्यू करने लगे
पीर कहते है ये आसार ऐ मोहब्बत है
Well done is better than well said
है कोई हकीकत या कोई हसरत है
आखिर किसके खातिर रातों की ये इबादत है
हकीम की हैरानगी पर लोग दुआ क्यू करने लगे
पीर कहते है ये आसार ऐ मोहब्बत है
ना कोई गुनाह किया , ना कोई मुकदमा हुआ..!
ना अदालत सजाई गई, ना कोई दलिले हुई..!
किस किस से मांगे हम गवाही वफ़ा कि !
उसने छोड़ा भरे बाज़ार हमे, ये ज़माना जानता है!