Poetry
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Likhta me kisaan ke liye || किसान कविता
लिखता मैं किसान के लिए
मैं लिखता इंसान के लिए
नहीं लिखता धनवान के लिए
नहीं लिखता मैं भगवान के लिए
लिखता खेत खलियान के लिए
लिखता मैं किसान के लिए
नहीं लिखता उद्योगों के लिए
नहीं लिखता ऊँचे मकान के लिए
लिखता हूँ सड़कों के लिए
लिखता मैं इंसान के लिए
क़लम मेरी बदलाव बड़े नहीं लाई
नहीं उम्मीद इसकी मुझे
खेत खलियान में बीज ये बो दे
सड़क का एक गढ्ढा भर देती
ये काफ़ी इंसान के लिए
लिखता हूँ किसान के लिए
लिखता मैं इंसान के लिए
आशा नहीं मुझे जगत पढ़े
पर जगत का एक पथिक पढ़े
फिर लाए क्रांति इस समाज के लिए
इसलिए लिखता मैं दबे-कुचलों के लिए
पिछड़े भारत से ज़्यादा
भूखे भारत से डरता हूँ
फिर हरित क्रांति पर लिखता हूँ
फिर किसान पर लिखता हूँ
क्योंकि
लिखता मैं किसान के लिए
लिखता मै इंसान के लिए
तरुण चौधरी
Kadhi dhoop me || किसान कविता
कड़ी धूप हो या हो शीतकाल,
हल चलाकर न होता बेहाल.
रिमझिम करता होगा सवेरा,
इसी आस में न रोकता चाल.
खेती बाड़ी में जुटाता ईमान,
महान पुरूष हैं, है वो किसान.
छोटे-छोटे से बीज बोता,
वही एक बड़ा खेत होता.
जिसकी दरकार होती उसे,
बोकर उसे वह तभी सोता.
खेतो का कण-कण हैं जिसकी जान,
महान पुरूष है, है वो किसान.
तरुण चौधरी
tarse jeevan || किसान कविता
बूँद बूँद को तरसे जीवन,
बूँद से तड़पा हर किसान
बूँद नही हैं कही यहाँ पर
गद्दी चढ़े बैठे हैवान.
बूँद मिली तो हो वरदान
बूँद से तरसा हैं किसान
बूँद नही तो इस बादल में
देश का डूबा है अभिमान
बूँद से प्यासा हर किसान
बूँद सरकारों का फरमान
बूँद की राजनीति पर देखों
डूब रहा है हर इंसान.
तरुण चौधरी
जो बीत गई सो बात गयी
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में वह था एक कुसुम
थे उसपर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुवन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुर्झाई कितनी वल्लरियाँ
जो मुर्झाई फिर कहाँ खिली
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुवन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आँगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठतें हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई
मृदु मिटटी के हैं बने हुए
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई
ये कैसा रिस्ता है हमारा…. || rishta shayari dard
न हम साथ चल प् रहे हैं
न ही हम दूर हो प् रहे हैं
और न ही खवाबो को छोड़ प् रहे हैं
न ही हकीकत में बदल पा रहे है
सबकुछ होते हुए भी
हमारे बीच खाली सा लगता है
न जाने क्यों ये रिस्ता हमारा
बिखड़ा सा लगता है
दोनों एकदूसरे के एकदम अपोजिट हैं
कुछ भी सिमिलर नहीं है तुम्हारे बीच
हम चाहते कुछ और हैं होता कुछ र है
न जाने ये ज़िंदगी कहा ले जा रही है हमे
मैं तुमसे बहुत कुछ कहना चाहती हु
पर कह नहीं प् रही हु
हम दूर हैं तो क्या हुआ…..
दूरी हमारे प्यार की काबिलियत थोड़ी बया करेगी
बयां करेगी हमारी तड़प एक दूसरे
से इतना दूर रहने के बाद भी
बहुत ही तकदीर से मिला है तू
इतनी आसानी से नहीं जाने दूंगी
भले ही मिलो दूर रहेंगे
लेकिन एक दूसरे से मिलकर रहेंगे
थोड़ा हँसेंगे थोड़ा रोयेंगे लड़ेंगे झगड़ेंगे
लेकिन एक दूसरे से दूर कभी नहीं होएंगे
दूरिया अक्सर गलत फेमिया बना देती ही दो दिलो में
वो गलत फेमिया अक्सर लड़ाई का रूप ले लेती है
पर लड़ाई कहाँ नहीं होती किस रिस्ते में नहीं होती
सब जगह होती है और उन लड़ाईयों को
सुलझाया जाता हैन उलझाया नहीं
ये सफर आसान नहीं लेकिन मंजिल खूबसूरत है।
और जो चल पड़े हैं संग हर मंजिल को पा लेना है
सुनो वादा करो की मंजिल आने से पहले रुख नहीं मोड़ोगे
इस चेहरे की मुस्कान की वजह तुम हो ,
जिंदगी को खुशहाल बनाने की वजह तुम हो
तुम्हे अंदाज़ा भी नहीं की तुम अगर पीछे हटे
तो क्या लेकर हटोगे अपने जिस्म के अलावा
जब दो दिल जुड़ते हैं तो बहुत कुछ जुड़ जाता है
सिर्फ दिल ही नहीं मैं यही हु और हमेशा रहूँगा
बस तुम साथ निभाना। ….