Best Short Poem on Life in Hindi || hindi poetry on zindagi
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कभी लगता है इस जिन्दगी में खुशियां बेशुमार है,
तो कभी लगने लगता है जिन्दगी ही बेकार है।
कभी लगता है लोगो में बहुत प्यार है,
तो कभी लगता है रिश्तों में सिर्फ दरार है ।
कभी लगता है हम भी जिन्दगी जीने के लिए बेकरार है ,
तो कभी कभी लगता है सिर्फ हमे मौत का इंतजार है ।
कभी लगता है हमको भी उनसे प्यार है,
तो कभी लगता है सिर्फ प्यार का बुखार है।
कभी लगता है शायद उनको भी हमसे इजहार है,
फिर लगता है हम दोनों में तो सिर्फ तकरार है ।
कभी लगता है सब अपने ही यार है,
फिर लगता है इनमें भी छिपे गद्दार है ।
कभी लगता है कितना प्यारा संसार है ,
तो कभी लगता है ये संसार बस संसार है ।
“सोचता हूँ, के कमी रह गई शायद कुछ या
जितना था वो काफी ना था,
नहीं समझ पाया तो समझा दिया होता
या जितना समझ पाया वो काफी ना था,
शिकायत थी तुम्हारी के तुम जताते नहीं
प्यार है तो कभी जमाने को बताते क्यों नहीं,
अरे मुह्हबत की क्या मैं नुमाईश करता
मेरे आँखों में जितना तुम्हें नजर आया,
क्या वो काफी नहीं था I
सोचता हूँ के क्या कमी रह गई,
क्या जितना था वो काफी नहीं था
“सोचता हूँ कभी पन्नों पर उतार लूँ उन्हें I
उनके मुँह से निकले सारे अल्फाजों को याद कर लूँ कभी I
ऐसी क्या मज़बूरी होगी उनकी की हम याद नहीं आते I
सोचता हूँ तोहफा भेज कर अपनी याद दिला दूँ कभी I
सोचता हूँ कभी पन्नों पर उतार लूँ उन्हें I
देखा तो तुझे जब पहली बार मैंने,
अपनी आंखों पर न किया था एतबार मैंने,
क्या होता है कोई इतना भी खूबसूरत,
यही पूछा था खुदा से बार-बार मैंने।
तेरे नीले नीले नैनो ने किया था काला जादू मुझ पर,
यूं ही तो नहीं खो दिया था करार मैंने।
कायदा इश्क जब से पड़ा है,
इल्म बस इतना बचा है मुझ में,
फकत नाम तेरा मैं लिख लेता हूं, पढ़ लेता हूं।
आग बरसे चारों तरफ इस जमाने के लिए,
मेरी आंखों की नमी में हो पनाह किसी को छिपाने के लिए।
वो है खुदगर्ज बड़ी मैं जानता हूं,
लौट आएगी फिर से खुद को बचाने के लिए।
मिजाज हो गए तल्ख जब मतलब निकल गया,
ना हुई दुआ कबूल तो मजहब बदल गया।
वो जो कहते थे कि मेरी चाहत कि खुदा तुम हो,
कभी बदली उनकी चाहत कभी खुदा बदल गया।
चल मान लिया कोई तुझसे प्यारी नहीं होगी,
पर शर्त लगा लो तुम से भी वफादारी नहीं होगी।
तेरी बेवफाई ने मेरा इलाज कर दिया है,
पक्का अब हमें फिर से इश्क की बीमारी नहीं होगी।
प्यार जब भी हुआ तुमसे ही हुआ,
कोशिश बहुत की मैंने किसी और को चाहने की।
एक तो तेरा इश्क था ही और एक मैंने आ पकड़ा,
अब कोई कोशिश भी ना करना मुझ को बचाने की।
यह जो आज हम उजड़े उजड़े फिरते हैं,
हसरतें बहुत थी हमें भी दुनिया बसाने की।
मुझे आज भी तुमसे कोई गिला नहीं है,
दस्तूर ही कहां बचा है मोहब्बत निभाने का।
इस शहर में मुर्दों की तादाद बहुत है,
कौन कहता है कि ये आबाद बहुत है,
जुल्मों के खिलाफ यहां कोई नहीं बोलता,
बाद में करते सभी बात बहुत हैं।
मेरे छोटे से इस दिल में जज्बात बहुत हैं,
नींद नहीं है आंखों में ख्वाबों की बरसात बहुत है।
राह नहीं, मंजिल नहीं, पैर नहीं कुछ भी नहीं,
मुझे चलने के लिए तेरा साथ बहुत है।
दूर होकर भी तू मेरे पास बहुत है,
सगा तो नहीं मेरी पर तू खास बहुत है।
जिनकी टूट चुकी उनको छोड़ो बस,
हमें तो आज भी उनसे आस बहुत है।
राजनीति की दुनिया में खेल बहुत है,
कोई जीता है, कोई हारा है।
सत्ता की भूख और वाद-विवाद,
मन में जलती चिंगारी है।
राजनेताओं की रंगीन छलावा,
जनता को वहमों में बँधाता है।
कुछ वादे खाली और कुछ झूले धूले,
आम आदमी को खोखला बनाता है।
वाद-विवाद के आगे सच्चाई छिपती,
लोकतंत्र की मूल्यों पर भारी है।
शोर और तामझाम में खो गई है,
सम्मान, सद्भाव और आदर्शि है।
नीतिबद्धता और समर्पण की कमी,
राजनीति को कर रही है मिट्टी।
सच्ची सेवा की बजाए प्रतिष्ठा,
हौसले को तोड़ रही है मिट्टी।
चाहे जितना बदले युगों का सफ़र,
राजनीति का रंग हर बार वही।
प्रशासनिक शक्ति की लालसा में,
जनता भूल जाती है खुद को वही।
प्रकृति की बातें सुनाए जाएं, उसकी गाथा कहानी सुनाए जाएं। उठते सूरज की लाली देखो, प्राकृतिक सौंदर्य में खो जाएं।
वृक्षों की छाया को चढ़कर, धरती के गुणगान कर दें। जल की लहरों के रंगों को, रसियों की आवाज़ बना दें।
बारिश की बूँदों का मेल मिलाप, आकर्षण भरी मधुर ध्वनि। हरा-भरा वन आपको बुलाए, अपार प्राकृतिक खजानी।
पर्वतों की ऊँचाइयों से, नदी की धार करे बहती। महकती हवाओं की लहरों में, खुद को आप गंभीर करें।
प्रकृति की रचनाओं को देखो, सुंदरता में जीवन का रंग है। आओ इसे समझें, इसे प्यार करें, प्रेम से हमेशा संग रहें, संग हैं।
ਖੌਫਨਾਕ ਇਹ ਮੰਜ਼ਿਰ ਫੈਲਿਆ
ਖੌਫਨਾਕ ਇਹ ਰਾਸਤੇ
ਚਹੁੰ ਪਾਸਿਓਂ ਤੋਂ ਆ ਰਹੀਆਂ
ਹਜਾਰੋਂ ਦਰਦ ਭਰੀਆਂ ਆਵਾਜ਼ਾਂ
ਬੱਦਲਾਂ ਦਾ ਰੰਗ ਵੀ ਕਿਸੇ ਕਾਲੇ ਸਾਏ ਵਾਂਗੂ ਲੱਗ ਰਿਹਾ
ਜਿਵੇਂ ਨੀਲੀ ਅਸਮਾਨ ਦੀ ਚਾਦਰ ਨੂੰ ਕੋਈ ਕਾਲੀ ਛਾਂ ਨਾਲ ਢੱਕ ਰਿਹਾ
ਗੜਗੜਾਹਟ ਐਸੀ ਭਿਆਨਕ
ਜੋ ਇੰਨਾ ਕਾਲੇ ਬੱਦਲਾਂ ਤੋਂ ਆ ਰਹੀ
ਕੰਬ ਰਿਹਾ ਹਰ ਕੋਈ
ਜਿਸਦੇ ਵੀ ਕਨਾਂ ਵਿੱਚ ਜਾ ਰਹੀ
ਖੜਾਕਾ ਐਸਾ ਬਿਜਲੀ ਦਾ ਜੋ ਧਰਤੀ ਤੇ ਡਿੱਗ ਰਿਹਾ
ਜਿਵੇਂ ਕਰ ਰਹੀ ਹੋਵੇ ਸਵਾਗਤ
ਕਿਸੇ ਦੈਂਤ ਦੇ ਆਣ ਦਾ
ਦਰਿਆਵਾਂ ਦਾ ਪਾਣੀ ਐਸੀਆਂ ਉੱਚੀਆਂ ਛਾਲਾਂ ਮਾਰ ਰਿਹਾ
ਇੰਜ ਲੱਗੇ ਜਿਵੇਂ ਕੋਈ ਭਿਆਨਕ ਰਾਕਸ਼ਸ ਹੈ ਆ ਰਿਹਾ
ਸਮੁੰਦ੍ਰ ਨੇ ਵੀ ਆਪਣਾ ਰੁਦ੍ਰ ਰੂਪ ਧਾਰ ਲਿਆ
ਰਾਕਸ਼ਸ ਵੀ ਆਪਣੀ ਪੂਰੀ ਵਾਹ ਨਾਲ
ਸਮੁੰਦ੍ਰ ਦੀਆਂ ਹੱਦਾਂ ਤੋੜ ਰਿਹਾ
ਪਲ ਭਰ ਵਿੱਚ ਹੋ ਰਿਹਾ ਸਫਾਇਆ ਇਸ ਤਰਾਂ
ਜਿਵੇਂ ਨਾਮੋ ਨਿਸ਼ਾਨ ਨਾ ਰਿਹਾ ਹੋਵੇ
ਉੱਚੀਆਂ ਇਮਾਰਤ ਦੇ ਵਜ਼ੂਦ ਦਾ
ਐਸੀ ਪਰਲੋ ਜੋ ਕੁੱਛ ਰੋਂਦ ਰਹੀ
ਮਾਨੋ ਧਰਤੀ ਉਪਰੋਂ ਕੋਈ ਭਾਰ ਘਟਾ ਰਹੀ
ਹੁਣ ਨਾਂ ਕੋਈ ਸਿਆਣਪ ਨਾ ਚਲਾਕੀ ਕੰਮ ਆ ਰਹੀ
ਰੁੜ ਰਹੇ ਨੇ ਕਈ ਜੀਅ ਪਾਣੀ ਚੇ
ਇੱਕ ਮਿੱਟੀ ਦਾ ਬਾਵਾ ਬਣ ਕੇ
ਮਿੱਟੀ ਦਾ ਬਾਵਾ ਬਣ ਕੇ
khula asmaan dekha
Dher saare sitaro ke sath
Ek sundar sa Chand dekha …
To ishi baat pe 2 line..
A sitare tu kis baat pr guroor krta h …
A sitare tu kis baat pr guroor krta h …
Tu jis Chand ke hone pe guroor krta h usme bhi daag hai …
Or kya kha mere pass kuch nhi …..
Arre bhul mt….
Mere pass bhi ek sundar sa Chand hai ….
Mera Chand deedar krata nhi …apni sundarta dikhata nhi ….
Verna uske samne Tera Chand kyaa…fikha pura jahan ( duniya) hai …
Mere pass bhi ek sundar sa Chand hai…