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Punjabi stories

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ईश्वर अच्छा ही करता है : अकबर-बीरबल की कहानी

बीरबल एक ईमानदार तथा धर्म-प्रिय व्यक्ति था। वह प्रतिदिन ईश्वर की आराधना बिना-नागा किया करता था। इससे उसे नैतिक व मानसिक बल प्राप्त होता था। वह अक्सर कहा करता था कि “ईश्वर जो कुछ भी करता है मनुष्य के भले के लिए ही करता है, कभी-कभी हमें ऐसा लगता है कि ईश्वर हम पर कृपादृष्टि नहीं रखता, लेकिन ऐसा होता नहीं। कभी-कभी तो उसके वरदान को भी लोग शाप समझने की भूल कर बैठते हैं। वह हमको थोड़ी पीड़ा इसलिए देता है ताकि बड़ी पीड़ा से बच सकें।”

एक दरबारी को बीरबल की ऐसी बातें पसंद न आती थीं। एक दिन वही दरबारी दरबार में बीरबल को संबोधित करता हुआ बोला, ‘‘देखो, ईश्वर ने मेरे साथ क्या किया। कल शाम को जब मैं जानवरों के लिए चारा काट रहा था तो अचानक मेरी छोटी उंगली कट गई। क्या अब भी तुम यही कहोगे कि ईश्वर ने मेरे लिए यह अच्छा किया है ?’’

कुछ देर चुप रहने के बाद बोला बीरबल, ‘‘मेरा अब भी यही विश्वास है क्योंकि ईश्वर जो कुछ भी करता है मनुष्य के भले के लिए ही करता है।’’

सुनकर वह दरबारी नाराज हो गया कि मेरी तो उंगली कट गई और बीरबल को इसमें भी अच्छाई नजर आ रही है। मेरी पीड़ा तो जैसे कुछ भी नहीं। कुछ अन्य दरबारियों ने भी उसके सुर में सुर मिलाया।

तभी बीच में हस्तक्षेप करते हुए बादशाह अकबर बोले, ‘‘बीरबल हम भी अल्लाह पर भरोसा रखते हैं, लेकिन यहां तुम्हारी बात से सहमत नहीं। इस दरबारी के मामले में ऐसी कोई बात नहीं दिखाई देती जिसके लिए उसकी तारीफ की जाए।’’

बीरबल मुस्कराता हुआ बोला, ’’ठीक है जहांपनाह, समय ही बताएगा अब।’’

तीन महीने बीत चुके थे। वह दरबारी, जिसकी उंगली कट गई थी, घने जंगल में शिकार खेलने निकला हुआ था। एक हिरन का पीछा करते वह भटककर आदिवासियों के हाथों में जा पड़ा। वे आदिवासी अपने देवता को प्रसन्न करने के लिए मानव बलि में विश्वास रखते थे। अतः वे उस दरबारी को पकड़कर मंदिर में ले गए, बलि चढ़ाने के लिए। लेकिन जब पुजारी ने उसके शरीर का निरीक्षण किया तो हाथ की एक उंगली कम पाई।

‘‘नहीं, इस आदमी की बलि नहीं दी जा सकती।’’ मंदिर का पुजारी बोला, ‘‘यदि नौ उंगलियों वाले इस आदमी को बलि चढ़ा दिया गया तो हमारे देवता बजाय प्रसन्न होने के क्रोधित हो जाएंगे, अधूरी बलि उन्हें पसंद नहीं। हमें महामारियों, बाढ़ या सूखे का प्रकोप झेलना पड़ सकता है। इसलिए इसे छोड़ देना ही ठीक होगा।’’

और उस दरबारी को मुक्त कर दिया गया।

अगले दिन वह दरबारी दरबार में बीरबल के पास आकर रोने लगा।

तभी बादशाह भी दरबार में आ पहुंचे और उस दरबारी को बीरबल के सामने रोता देखकर हैरान रह गए।

‘‘तुम्हें क्या हुआ, रो क्यों रहे हो ?’’ अकबर ने सवाल किया।

जवाब में उस दरबारी ने अपनी आपबीती विस्तार से कह सुनाई। वह बोला, ‘‘अब मुझे विश्वास हो गया है कि ईश्वर जो कुछ भी करता है, मनुष्य के भले के लिए ही करता है। यदि मेरी उंगली न कटी होती तो निश्चित ही आदिवासी मेरी बलि चढ़ा देते। इसीलिए मैं रो रहा हूं, लेकिन ये आंसू खुशी के हैं। मैं खुश हूं क्योंकि मैं जिन्दा हूं। बीरबल के ईश्वर पर विश्वास को संदेह की दृष्टि से देखना मेरी भूल थी।’’

अकबर ने मंद-मंद मुस्कराते हुए दरबारियों की ओर देखा, जो सिर झुकाए चुपचाप खड़े थे। अकबर को गर्व महसूस हो रहा था कि बीरबल जैसा बुद्धिमान उसके दरबारियों में से एक है।

कवि और धनवान आदमी : अकबर-बीरबल की कहानी

एक दिन एक कवि किसी धनी आदमी से मिलने गया और उसे कई सुंदर कविताएं इस उम्मीद के साथ सुनाईं कि शायद वह धनवान खुश होकर कुछ ईनाम जरूर देगा। लेकिन वह धनवान भी महाकंजूस था, बोला, “तुम्हारी कविताएं सुनकर दिल खुश हो गया। तुम कल फिर आना, मैं तुम्हें खुश कर दूंगा।”

‘कल शायद अच्छा ईनाम मिलेगा।’ ऐसी कल्पना करता हुआ वह कवि घर पहुंचा और सो गया। अगले दिन वह फिर उस धनवान की हवेली में जा पहुंचा। धनवान बोला, “सुनो कवि महाशय, जैसे तुमने मुझे अपनी कविताएं सुनाकर खुश किया था, उसी तरह मैं भी तुमको बुलाकर खुश हूं। तुमने मुझे कल कुछ भी नहीं दिया, इसलिए मैं भी कुछ नहीं दे रहा, हिसाब बराबर हो गया।”

कवि बेहद निराश हो गया। उसने अपनी आप बीती एक मित्र को कह सुनाई और उस मित्र ने बीरबल को बता दिया। सुनकर बीरबल बोला, “अब जैसा मैं कहता हूं, वैसा करो। तुम उस धनवान से मित्रता करके उसे खाने पर अपने घर बुलाओ। हां, अपने कवि मित्र को भी बुलाना मत भूलना। मैं तो खैर वहां मैंजूद रहूंगा ही।”

कुछ दिनों बाद बीरबल की योजनानुसार कवि के मित्र के घर दोपहर को भोज का कार्यक्रम तय हो गया। नियत समय पर वह धनवान भी आ पहुंचा। उस समय बीरबल, कवि और कुछ अन्य मित्र बातचीत में मशगूल थे। समय गुजरता जा रहा था लेकिन खाने-पीने का कहीं कोई नामोनिशान न था। वे लोग पहले की तरह बातचीत में व्यस्त थे। धनवान की बेचैनी बढ़ती जा रही थी, जब उससे रहा न गया तो बोल ही पड़ा, “भोजन का समय तो कब का हो चुका ? क्या हम यहां खाने पर नहीं आए हैं ?”

“खाना, कैसा खाना ?” बीरबल ने पूछा।

धनवान को अब गुस्सा आ गया, “क्या मतलब है तुम्हारा ? क्या तुमने मुझे यहां खाने पर नहीं बुलाया है ?”

खाने का कोई निमंत्रण नहीं था। यह तो आपको खुश करने के लिए खाने पर आने को कहा गया था।” जवाब बीरबल ने दिया। धनवान का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया, क्रोधित स्वर में बोला, “यह सब क्या है? इस तरह किसी इज्जतदार आदमी को बेइज्जत करना ठीक है क्या ? तुमने मुझसे धोखा किया है।”

अब बीरबल हंसता हुआ बोला, “यदि मैं कहूं कि इसमें कुछ भी गलत नहीं तो…। तुमने इस कवि से यही कहकर धोखा किया था ना कि कल आना, सो मैंने भी कुछ ऐसा ही किया। तुम जैसे लोगों के साथ ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए।”

धनवान को अब अपनी गलती का आभास हुआ और उसने कवि को अच्छा ईनाम देकर वहां से विदा ली।

वहां मौजूद सभी बीरबल को प्रशंसा भरी नजरों से देखने लगे।

विक्रम बेताल की प्रारंभिक कहानी || vikram betaal story

विक्रम बेताल की प्रारंभिक कहानी कुछ इस प्रकार है। बहुत समय पहले की बात है। उज्जयनी नाम के राज्य में राजा विक्रामादित्य राज किया करते थे। राजा विक्रामादित्य की न्यायप्रियता, कर्तव्यनिष्ठता और दानशीलता के चर्चे पूरे देश में मशहूर थे। यही कारण था कि दूर-दूर से लोग उनके दरबार में न्याय मांगने आया करते थे। राजा हर दिन अपने दरबार में लोगों की तकलीफों को सुनते और उनका निवारण किया करते थे।

एक दिन की बात है। राजदरबार लगा हुआ था। तभी एक भिक्षु विक्रमादित्य के दरबार में आता है और एक फल राजा को देकर चला जाता है। राजा उस फल को कोषाध्यक्ष को दे देता है। उस दिन के बाद से हर रोज वह भिक्षु राजा के दरबार में आने लगा। उसका रोज का काम यही था कि वह राजा को फल देता और चुपचाप चला जाता। राजा भी प्रत्येक दिन भिक्षु द्वारा दिया गया फल कोषाध्यक्ष को थमा देता। ऐसे करते-करते करीब 10 साल बीत गए।

एक दिन जब भिक्षु फिर राजा के दरबार में आकर फल देता है, तो इस बार राजा फल कोषाध्यक्ष को न देकर वहां मौजूद एक पालतू बंदर के बच्चे को दे देते हैं। यह बंदर किसी सुरक्षाकर्मी का था, जो छूट कर अचानक राजा के पास आ जाता है।

बंदर जब उस फल को खाने के लिए तोड़ता है, तो उस फल के बीच से एक बहुमूल्य रत्न निकलता है। उस रत्न की चमक को देख राज दरबार में मौजूद सभी लोग हैरत में पड़ जाते हैं। राजा भी यह नजारा देख आश्चर्य में पड़ जाता है। राजा कोषाध्यक्ष को इससे पूर्व भिक्षु द्वारा दिए गए सभी फलों के बारे में पूछता है।

राजा के पूछने पर कोषाध्यक्ष बताता है कि महाराज मैंने उन सभी फलों को राज कोष में सुरक्षित रखवा दिया है। मैं उन सभी फलों को अभी लेकर आता हूं। कुछ देर बाद कोषाध्यक्ष राजा को आकर बताता है कि सभी फल सड़-गल गए हैं। उनके स्थान पर बहुमूल्य रत्न बचे हुए हैं। यह सुनकर राजा बहुत खुश होता है और कोषाध्यक्ष को सारे रत्न सौंप देता है।

अगली बार जब भिक्षु फल लेकर दोबारा विक्रमादित्य के दरबार पहुंचता है, तो राजा कहते हैं, “भिक्षु मैं आपका फल तब तक ग्रहण नहीं करूंगा, जब तक आप यह नहीं बताते कि हर दिन आप इतनी बहुमूल्य भेंट मुझे क्यों अर्पित करते हैं?

राजा की यह बात सुन भिक्षु उन्हें एकांत स्थान पर चलने को कहता है। एकांत में ले जाकर भिक्षु राजा को बताता है कि मुझे मंत्र साधना करनी हैं और उस साधना के लिए मुझे एक वीर पुरुष की जरूरत है। चूंकि, मुझे तुमसे वीर दूसरा कोई नहीं मिल सकता, इसलिए यह बहुमूल्य उपहार तुम्हें दे जाता हूं।

भिक्षु की बात सुन राजा विक्रमादित्य उसकी सहायता करने का वचन देते हैं। तब भिक्षु राजा को बताता है कि अगली अमावस्या की रात को उसे पास के श्मशान आना होगा, जहां वह मंत्र साधना की तैयारी करेगा। इतना कहकर भिक्षु वहां से चला जाता है।

अमावस्या का दिन आते ही राजा को भिक्षु की बात याद आती है और वह वचन के अनुसार श्मशान पहुंच जाते हैं। राजा को देख भिक्षु बहुत प्रसन्न होता है। भिक्षु कहता है, “हे राजन, तुम यहां आए मैं बहुत खुश हुआ कि तुम्हें तुम्हारा वचन याद रहा। अब यहां से पूर्व की दिशा में जाओ। वहां एक महाश्मशान मिलेगा। उस महाश्मशान में एक शीशम का एक विशाल वृक्ष है। उस वृक्ष पर एक मुर्दा लटका हुआ है। उस मुर्दे को तुम्हें मेरे पास लेकर आना है। भिक्षु की बात सुनकर राजा सीधे उस मुर्दे को लाने चल देता है।

महाश्मशान में पहुंचने के बाद राजा को एक विशाल शीशम के पेड़ पर एक मुर्दा लटका हुआ दिखाई देता है। राजा अपनी तलवार खींचता है और पेड़ से बंधी डोर को काट देता है। डोर कटते ही मुर्दा जमीन पर आ गिरता है और जोर से चीखने की आवाज आती है।

दर्दभरी चीख सुन राजा को लगता है कि शायद यह मुर्दा नहीं, बल्कि कोई जिंदा इंसान है। थोड़ी देर बाद जब मुर्दा तेजी से हंसने लगता है और फिर पेड़ पर जाकर लटक जाता है, तो विक्रम समझ जाता है कि इस मुर्दे पर बेताल चढ़ा है। काफी कोशिश के बाद विक्रम बेताल को पेड़ से उतार अपने कंधे पर टांग लेते हैं।

इस पर बेताल विक्रम से कहता है, “विक्रम मैं तेरे साहस को मान गया। तू बड़ा ही पराक्रमी है। मैं तेरे साथ चलता हूं, लेकिन मेरी एक शर्त है कि पूरे रास्ते में तू कुछ भी नहीं बोलेगा।” विक्रम सिर हिलाकर हां में बेताल की बात मान लेता है।

इसके बाद बेताल विक्रम से कहता है कि रास्ता लंबा है, इसलिए इस रास्ते को रोमांचक बनाने के लिए मैं तुझे एक कहानी सुनाता हूं। तो यह थी विस्तार से राजा विक्रम, योगी और बेताल की आरंभिक कहानी। यही से शुरू होता है बेताल पच्चीसी की 25 कहानियों का सफर, जो बेताल एक-एक करके विक्रम को सुनाता है। कहानियों के विक्रम-बेताल के इस भाग में आपको बेताल पच्चीसी की सभी कहानियां एक साथ पढ़ने को मिलेंगी।

अकबर-बीरबल और जादुई गधे || hindi story

एक समय की बात है, बादशाह अकबर ने अपने बेगम के जन्मदिन के लिए बहुत ही खूबसूरत और बेशकीमती हार बनवाया था। जब जन्मदिन आया, तो बादशाह अकबर ने वह हार अपनी बेगम को तोहफे में दे दिया, जो उनकी बेगम को बहुत पसंद आया। अगली रात बेगम साहिबा ने वह हार गले से उतारकर एक संदूक में रख दिया। जब इस बात को कई दिन गुजर गए, तो एक दिन बेगम साहिबा ने हार पहने के लिए संदूक खोला, लेकिन हार कहीं नहीं मिला। इससे वह बहुत उदास हो गईं और इस बारे में बादशाह अकबर को बताया। इस बारे में पता चलते ही बादशाह अकबर ने अपने सैनिकों को हार ढूंढने का आदेश दिया, लेकिन हार कहीं नहीं मिला। इससे अकबर को यकीन हो गया कि बेगम का हार चोरी हो गया है।

फिर अकबर ने बीरबल को महल में आने के लिए बुलावा भेजा। जब बीरबल आया, तो अकबर ने सारी बात बताई और हार को खोज निकालने की जिम्मेदारी उसे सौंप दी। बीरबल ने समय व्यर्थ किए बिना ही राजमहल में काम करने वाले सभी लोगों को दरबार में आने के लिए संदेश भिजवाया। थोड़े ही देर में दरबार लग गया। दरबार में अकबर और बेगम सहित सभी काम करने वाले हाजिर थे, लेकिन बीरबल दरबार में नहीं था। सभी बीरबल का इंतजार कर ही रहे थे कि तभी बीरबल एक गधा लेकर राज दरबार में पहुंच जाता है। देर से दरबार में आने के लिए बीरबल बादशाह अकबर से माफी मांगता है। सभी सोचने लगते हैं कि बीरबल गधे को लेकर राज दरबार में क्यों आया है। फिर बीरबल बताता है कि यह गधा उसका दोस्त है और उसके पास जादुई शक्ति है। यह शाही हार चुराने वाले का नाम बता सकता है।

इसके बाद बीरबल जादुई गधे को सबसे नजदीक वाले कमरे में ले जाकर बांध देता है और कहता है कि सभी एक-एक करके कमरे में जाएं और गधे की पूंछ पकड़कर चिल्लाए “जहांपनाह मैंने चोरी नहीं की है।” साथ ही बीरबल कहता है कि आप सभी की आवाज दरबार तक आनी चाहिए। सभी के पूंछ पकड़कर चिल्लाने के बाद आखिर में गधा बताएगा कि चोरी किसने की है।

इसके बाद सभी कमरे के बाहर एक लाइन में खड़े हो गए और एक-एक करके सभी ने कमरे में जाना शुरू कर दिया। जो भी कमरे के अंदर जाता, तो पूंछ पकड़ कर चिल्लाना शुरू कर देता “जहांपनाह मैंने चोरी नहीं की है।” जब सभी का नंबर आ जाता है, तो अंत में बीरबल कमरे में जाता है और कुछ देर बाद कमरे से बाहर आ जाता है।

फिर बीरबल सभी काम करने वालों के पास जाकर उन्हें दोनों हाथ सामने करने को बोलता है और एक-एक करके सभी के हाथ सूंघने लगता है। बीरबल की इस हरकत को देखकर सभी हैरान हो जाते हैं। ऐसे ही सूंघते-सूंघते एक काम करने वाले का हाथ पकड़कर बीरबल जोर से बोलता है, “जहांपनाह इसने चोरी की है।” ये सुनकर अकबर बीरबल से कहते हैं, “तुम इतने यकीन के साथ कैसे कह सकते हो कि चोरी इस सेवक ने ही की है। क्या तुम्हें जादुई गधे ने इसका नाम बताया है।”

तब बीरबल बोलता है, “जहांपनाह यह गधा जादुई नहीं है। यह बाकी गधों की तरह साधारण ही है। बस मैंने इस गधे की पूंछ पर एक खास तरह का इत्र लगाया है। सभी सेवकों ने गधे की पूंछ को पकड़ा, बस इस चोर को छोड़कर। इसलिए, इसके हाथ से इत्र की खुशबू नहीं आ रही है।”

फिर चोर को पकड़ लिया गया और उससे चोरी के सभी सामान के साथ ही बेगम का हार भी बरामद कर लिया गया। बीरबल की इस अक्लमंदी की सभी ने सराहना की और बेगम ने खुश होकर बादशाह अकबर से उसे उपहार भी दिलवाया।

Maa baap da pyaar shayari

Sacha pyar karna hai taa apne maa baap nu karo
ohna de pyar vich koi bewafai nahi hundi

ਸੱਚਾ ਪਿਆਰ ਕਰਨਾ ਹੈ ਤਾਂ ਆਪਣੇ ਮਾਂ ਬਾਪ ਨੂੰ ਕਰੋ

ਉਹਨੇ ਦੇ ਪਿਆਰ ਵਿਚ ਕੋਈ ਬੇਵਫਾਈ ਨਹੀ ਹੁੰਦੀ ।?

Yaar chak lainge || Punjabi shayari yaar

Tera tutteyaa taa tainu naa sahara milna
chal mainu mere yaar jeonda rakh lain ge
tainu nazraa ch giri naa kise ne chakna
je me PK dig pyaa yaar chak lainge

“#ਤੇਰਾ ਟੁੱਟਿਆ 💔ਤਾ ਤੈਨੂੰ ਨਾ ਸਹਾਰਾ ਮਿਲਣਾ

#ਚੱਲ ਮੈਨੂੰ ਮੇਰੇ ਯਾਰ ਜਿਉਦਾ ਰੱਖ ਲੈਣ ਗੇ

#ਤੈਨੂੰ👀 ਨਜਰਾ ਚ ਗਿਰੀ ਨਾ ਕਿਸੇ ਨੇ ਚੱਕਣਾ

#ਜੇ ਮੈ PK ਡਿੱਗ🙇 ਪਿਆ ਯਾਰ ਚੱਕ ਲੈਣ ਗੇ”

Tutteyaa khaab || punjabi thoughts || shayari

 ਟੁਟਿਆ ਖ਼ੁਆਬ

ਪਿਆਰ ਸੁਨਣ ਵਿੱਚ ਕਿਨਾਂ ਵਧਿਆ ਲਗਦਾ ਤੇ ਇਸ਼ਕ ਵਿੱਚ ਟੁੱਟੇ ਆਸ਼ਕ ਦਿਆਂ ਕਹਾਣੀਆਂ ਵੀ ਕਿੰਨੀ ਵਧੀਆ ਲੱਗਦੀ ਹੈ। ਪਰ ਅਸਲ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਚ ਜਦੋਂ ਦਿਲ ਟੁਟਦਾ ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਤੇ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਟੁਟਦਾ ਓਦੋਂ ਪਤਾ ਲਗਦਾ ਕਿ ਇਸ਼ਕ ਕਿਹਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਤੇ ਮਹੋਬਤ ਕਰਨ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਕਿਦਾਂ ਦੀ ਹੂੰਦੀ। ਸਜਣ ਦੇ ਦੂਰ ਹੋਣ ਤੇ ਇਦਾਂ ਲਗਦਾ ਜਿਵੇਂ ਸਾਡਾ ਸੱਭ ਕੁੱਝ ਲੁਟ ਗਿਆ ਹੋਵੇ ਫਿਲਮਾਂ ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਪਿਆਰ ਵਿੱਚ ਟੁਟਿਆ ਹੋਇਆ ਦੇਖਦੇ ਹਾਂ ਤਾਂ ਲਗਦਾ ਐ ਕਿ ਏਹ ਤਾਂ ਪਾਗ਼ਲ ਹੈ ਜੋਂ ਇੱਕ ਕੁੜੀ ਲਈ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰੇਸ਼ਾਨ ਹੈ। ਪਰ ਮੇਰੀ ਮਨੋਂ ਜਦੋਂ ਦਿਲ ਟੁਟਦਾ ਐਂ ਨਾ ਓਹਦੋਂ ਭੁੱਖ ਬੱਸ ਯਾਰ ਦੀ ਦਿਦ ਦੀ ਹੂੰਦੀ ਸੱਬ ਕੁਝ ਬੇਕਾਰ ਜਿਹਾਂ ਲਗਦਾ ਤੇ ਜਿੰਨਾ ਵਿ ਫਿਜ਼ੂਲ ਜਿਹਾਂ ਲਗਦਾ। ਬੜਾ ਅਜ਼ੀਬ ਜਿਹਾ ਹੂੰਦਾ ਹੈ ਏਹ ਇਹਸਾਸ ਜੋ ਕਦੇ ਜਾਨ ਤੋਂ ਵੱਧ ਹੂੰਦਾ ਓਹਦੀਆਂ ਹੀ ਯਾਦਾਂ ਹੋਲੀ ਹੋਲੀ ਫੇਰ ਜਾਨ ਲੇਂਦੀ ਐਂ। ਫਿਰ ਲਗਦਾ ਐ ਕਿ ਸ਼ਾਇਦ…..

                  ਸ਼ਾਇਦ ਓਹਨੂੰ ਪਿਆਰ ਨਾਂ
ਕਰਦੇ ਤਾਂ ਇਦਾਂ ਟੁੱਟਦੇ ਨਾ
ਜੇ ਨਾਂ ਚਲਦੇ ਇਸ਼ਕ ਦੇ ਰਾਹ ਤੇ
ਸ਼ਾਇਦ ਇਦਾਂ ਮਹੋਬਤ ਦੇ ਨਾਂ ਤੇ ਲੁਟਦੇ ਨਾ

                  ਬੱਸ ਇੱਕੋ ਹੀ ਖੁਆਇਸ਼ ਸੀ
ਇਸ਼ਕ ਓਹਦਾ ਮੇਰਾ ਮੁਕੰਮਲ ਹੋ ਜਾਵੇ
ਓਹ ਮੇਰੇ ਵਿਚ ਤੇ ਮੈਂ ਓਹਦੇ ਵਿਚ ਖੋ ਜਾਵੇ
ਕਾਸ਼ ਕੇ ਏਹ ਖੁਆਇਸ਼ ਨਾਂ ਹੂੰਦੀ ਤਾਂ ਇਦਾਂ ਏਹ ਸ਼ਾਹ ਸੁਖਦੇ ਨਾ
ਜੇ ਨਾ ਕਰਦੇ ਮਹੋਬਤ ਸ਼ਾਇਦ ਇਦਾਂ ਮਹੋਬਤ ਦੇ ਨਾਂ ਤੇ ਲੁਟਦੇ ਨਾ

ਹਰ ਵੇਲੇ ਬੱਸ ਚੇਹਰਾ ਯਾਰ ਦਾ ਅਖਾਂ ਅਗੇ ਰਹਿੰਦਾ ਤੇ ਖ਼ਿਆਲ ਓਹਦਾ ਦਿਮਾਗ ਚ ਓਹਦੀਆਂ ਗਲਾਂ ਤੇ ਓਹਦੇ ਨਾਲ ਬਿਤਾਏ ਪਲ ਇੰਜ ਲਗਦੈ ਜਿਵੇਂ ਕਿਨੇਂ ਚਿਰਾਂ ਦੀ ਗੱਲ ਹੋਵੇ। ਕਿਨਾਂ ਹੁਨਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਆਸ਼ਕ ਚ ਚੇਹਰੇ ਤੇ ਹਾਸਾ ਤੇ ਅੰਦਰੋ ਰੋਣਾ ਕੋਈ ਸ਼ੋਖ਼ੀ ਗਲ਼ ਨੀਂ ਹੁੰਦੀਂ। ਮੈਂ ਤਾਂ ਇੰਨ੍ਹਾਂ ਜਜ਼ਬਾਤਾਂ ਤੋਂ ਬੇਖ਼ਬਰ ਸੀ ਪਰ ਜਦੋਂ ਖਬਰ ਹੋਈ ਉਦੋਂ ਤੱਕ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਦੇਰ ਹੋਗੀ ਸੀ। ਹੁਣ ਬੱਸ ਓਹਦਾ ਇੰਤਜ਼ਾਰ ਸੀ ਇੰਤਜ਼ਾਰ ਤੋਂ ਬਗੈਰ ਸਾਡੇ ਕੋਲ ਕੋਈ ਹੋਰ ਤਰੀਕਾ ਨਹੀਂ ਸੀ। ਅਖਾਂ ਵਿਚ ਹੰਜੂ ਰਹਿੰਦੇ ਤੇ ਤਸਵੀਰਾਂ ਓਸਦੀ ਬੱਸ ਵੇਖ ਕੇ ਹੁਣ ਮੱਨ ਨੂੰ ਸਮਝਾਉਣਾ ਪੈਂਦਾ ਅਸੀਂ ਇਸ਼ਕ ਵਿੱਚ ਹਾਰੇ ਹਾਂ ਏਹ ਤਾਂ ਬੱਸ ਮੈਂ ਤੇ ਰੱਬ ਤੋਂ ਬਗੈਰ ਕੋਈ ਹੋਰ ਨਹੀਂ ਜਾਂਣਦਾ ਨਾ ਹੀ ਮੇਰਾ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਦੱਸਣ ਦਾ ਚਿੱਤ ਕਰਦਾ। ਕਿਨੇਂ ਸੋਹਣੇ ਪਲ਼ ਹੂੰਦੇ ਹਨ ਜੋਂ ਸਜਣ ਦੇ ਨਾਲ ਬਿਤਾਏ ਕਿੰਨੀ ਮਿੱਠੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਗਲ਼ ਸਜਣ ਜਦੋਂ ਨਾ ਛਡਕੇ ਜਾਨ ਦੀ ਸੋਹਾਂ ਖਾਂਦਾ ਹੈ। ਇੱਕ ਪਲ ਲਈ ਤਾਂ ਇੰਜ ਲੱਗਦਾ ਜਿਵੇਂ ਸ਼ਬ ਸੱਚ ਹੋਵੇ ਪਰ ਜੇ ਕਾਸ਼ ਕੇ ਏਹ ਸੋਹਾਂ ਸਚੀ ਹੂੰਦੀ ਤਾਂ ਫੇਰ ਅਸੀਂ ਕਦੇ ਇਦਾਂ ਰੁਲਦੇ ਨਾ ਜੇ ਸਚੀ ਹੂੰਦੀ ਓਹਦੀ ਹਰ ਇੱਕ ਗੱਲ ਸਾਰੀ ਤਾਂ ਆਲਮ ਏਹ ਜੁਦਾਈ ਦਾ ਕਦੇ ਹੂੰਦਾ ਨਾ। ਸਜਣ ਦੇ ਛੱਡਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਚਿੱਤ ਕਰਦਾ ਕੀ ਓਸਨੂੰ ਭੁਲਾ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ ਪਰ ਕੀ ਕਰਿਏ ਜੇ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਏਨੀ ਛੇਤੀ ਭੁਲਾਣਾ ਸੌਖਾ ਹੂੰਦਾ ਤਾਂ ਕਦੋਂ ਦਾ ਭੁਲਾ ਦਿਆਂ ਹੂੰਦਾ। ਓਹਨੂੰ ਭੁਲਾਣ ਤੋਂ ਵਧਿਆ ਇੱਕੋ ਹੀ ਤਰੀਕਾ ਹੂੰਦਾ ਉਡੀਕ………….

               ਅਸੀਂ ਉਡੀਕ ਯਾਰ ਦੀ ਕਰਦੇ ਰਹਾਂਗੇ
ਅਸੀਂ ਲਗਦਾ ਹੋਲ਼ੀ ਹੋਲ਼ੀ ਇੰਜ ਹੀ ਮਰਦੇ ਰਹਾਂਗੇ
ਓਹਦੀਆਂ ਯਾਦਾਂ ਤੇ ਓਹਨੂੰ ਭੁਲਾਣਾ ਔਖਾ
ਮੈਨੂੰ ਲਗਦਾ ਅਸੀਂ ਇੰਜ਼ ਹੀ ਉਡੀਕ ਚ ਹੀ ਮਰਾਂਗੇ

                       ਖ਼ੁਆਬ ਅਧੂਰੇ ਰਹਿ ਗਏ
ਜੋਂ ਨਾਲ਼ ਬੈਅ ਕੇ ਕਦੇ ਦੇਖੇਂ ਸੀ
ਓਹਨੂੰ ਕਦਰ ਨਹੀਂ ਪਿਆਰ ਦੀ
ਅਸੀਂ ਓਹਦੇ ਲਈ ਹਰ ਥਾਂ ਤੇ ਮਥੇ ਟੇਕੇ ਸੀ
ਓਹਦੇ ਛੱਡ ਜਾਣ ਦਾ ਦੁਖ ਅਸੀਂ ਕਿਦਾਂ ਜਰਾਂਗੇ
ਮੈਨੂੰ ਲਗਦਾ ਅਸੀਂ ਇੰਜ਼ ਹੀ ਉਡੀਕ ਚ ਹੀ ਮਰਾਂਗੇ

ਬਹੁਤ ਰਾਜ਼ ਹੁੰਦੇ ਨੇ ਆਸ਼ਕ ਦੇ ਦਿਲ ਵਿੱਚ ਤੇ ਨਾਲੋਂ ਦੁਖ ਹਾੱਸਾ ਤਾਂ ਹੁੰਦਾ ਐਂ ਚੇਹਰੇ ਤੇ ਪਰ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਦਿਖਾਉਣ ਲਈ। ਮਨ ਵਿੱਚ ਏਹ ਖਿਆਲ ਰਹਿੰਦਾ ਕੀ ਓਹਦਾ ਵੀ ਏਹੀ ਹਾੱਲ ਹੋਣਾ ਪਰ ਕੀ ਸਮਝਾਈਏ ਜੇ ਓਹਨੂੰ ਐਨਾ ਪਿਆਰ ਹੁੰਦਾ ਤਾਂ ਕਦੇ ਛਡਕੇ ਜਾਂਦਾ।
ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਜਿਹਾਂ ਉਠ ਜਾਂਦਾ ਐਂ ਪਿਆਰ ਜਿਹੇ ਨਾਂ ਤੋਂ ਬੱਸ ਹਰ ਵੇਲੇ ਏਹ ਲਗਦਾ ਐ ਕਿ ਕਿੰਨੀ ਵੱਡੀ ਗਲਤੀ ਕਿਤੀ ਸੀ ਓਹਨੂੰ ਪਿਆਰ ਕਰਕੇ……..

             ਕਰਕੇ ਪਿਆਰ ਓਸਨੂੰ ਗਲਤੀ ਵੱਡੀ ਕਿਤੀ
ਪਤਾ ਓਹਦੋਂ ਲਗਦਾ ਦਰਦਾਂ ਦਾ ਜਦੋਂ ਗੱਲ ਹੁੰਦੀ ਆਪ ਬੀਤੀ
ਇਸ਼ਕ ਚ ਹਰ ਰਾਜ਼ ਲੁਕਾਉਣੇ ਪੈਂਦੇ ਨੇ
ਬਾਜ਼ੀ ਓਹ ਵੀ ਹਾਰਨੀ ਪੈਂਦੀ ਐਂ ਜੋਂ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਤੀ

             ਸੁਪਨੇ ਵਿੱਚ ਹੀ ਯਾਰ ਨੂੰ ਵੇਖਣਾ ਨਸੀਬ ਹੁੰਦਾ
ਸੁਪਨੇ ਵਿੱਚ ਹੀ ਬੱਸ ਗਲਾਂ ਹੈ ਹੁੰਦੀ
ਸਜਣ ਦੀ ਦਿਦ ਲਈ ਤੜਫ਼ਣਾ ਏਹ ਗੱਲ ਆਮ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ
ਪਤਾ ਓਹਦੋਂ ਲਗਦਾ ਜਦੋਂ ਗੱਲ ਹੁੰਦੀ ਆਪ ਬੀਤੀ
ਬਾਜ਼ੀ ਓਹ ਵੀ ਹਾਰਨੀ ਪੈਂਦੀ ਐਂ ਜੋਂ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਤੀ

  —ਗੁਰੂ ਗਾਬਾ

Gal ni karni || punjabi thoughts || chat

ਕੇਹਂਦੀ ਕਿਵੇ ਹੋ
ਮੈਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਪਹਿਲਾਂ ਤੂੰ ਦੱਸ
ਕੇਹਂਦੀ ਮੈਂ ਤਾਂ ਠੀਕ ਹਾਂ
ਮੈਂ ਕੇਹਾ ਬੱਸ

ਕੇਹਂਦੀ ਕੀ ਹੋਇਆ ਔਰ ਗਲ਼ ਨੀਂ ਕਰਨੀ
ਮੈਂ ਕਿਹਾ ਡਰ ਪਹਿਲਾਂ ਤੇਰੇ ਜਾਣ ਦਾ ਤੇ ਹੁਣ ਤੇਰੇ ਵਾਪਤ ਆਉਣ ਦਾ ਬਾਕੀ ਕੋਈ ਡਰ ਨੀ
ਕੇਹਂਦੀ ਮੈਂ ਏਣੀ ਵੀ ਬੁਰੀ ਵੀ ਨਹੀਂ ਹਾਂ
ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਤੁਸੀਂ ਦਸਦੇ ਹੋ
ਮੈਂ ਕਿਹਾ ਪਿਆਰ ਦੀ ਐਹ ਸਕਿਮਾ ਤੁਸੀਂ ਕਿਦਾਂ ਚਲਦੇ ਹੋ
ਕੇਹਂਦੀ ਤੁਸੀਂ ਤਾਂ ਪਹਿਲਾਂ ਵਰਗੇ ਹੀ ਹੋ ਆਜ ਵੀ ਨਹੀਂ ਬਦਲੇ
ਮੈਂ ਕਿਹਾ ਤੇਰੇ ਦੋਖੇ ਤੇ ਤੇਰੇ ਝੁਠੇ ਪਿਆਰ ਨੇ ਬਦਲ ਨੀ ਦਿੱਤਾ
ਕੇਹਂਦੀ ਅਛਾ ਮੇਰਾ ਝੁਠਾ ਸੀ ਤੁਹਾਡਾ ਕੇਹੜਾ ਸੱਚਾ ਸੀ
ਮੈਂ ਕਿਹਾ ਪਿਆਰ ਦੀ ਤੂੰ ਗਲ਼ ਨਾ ਕਰ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਵੇਖਿਆ ਵੀ ਨੀ ਤੇਰੇ ਸਿਵਾ
ਕੇਹਂਦੀ ਅਛਾ ਅਜ ਵੀ ਏਣਾ ਪਿਆਰ ਕਰਦੇ ਹੋ
ਮੈਂ ਕੇਹਾ ਪਿਆਰ ਤਾਂ ਮੈਂ ਅੱਜ ਵੀ ਤੇਰੇ ਨਾਲ ਓਹਣਾ ਹੀ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ਬੱਸ ਹੁਣ
ਭਰੋਸਾ ਨਹੀਂ ਰਿਹਾ ਤੇਰੇ ਤੇ
ਕੇਹਂਦੀ ਜੇ ਮੈਂ ਹੁਣ ਆਜਾ ਤੁਹਾਡੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਚ
ਤੁਹਾਨੂੰ ਕਿਦਾਂ ਲਗੁਗਾ
ਮੈਂ ਕਿਹਾ ਕਮਲੀ ਐਂ ਤੇਨੂੰ ਹੋਰ ਕੋਈ ਨੀ ਮਿਲਯਾ ਬਰਬਾਦ ਕਰਣ ਲਈ ਏਹ ਦੁਨੀਆਂ ਦੀ ਭੀੜ ਚ
ਕੇਹਂਦੀ
ਜੇ ਮੈਂ ਤੁਹਾਨੂੰ ਬਰਬਾਦ ਕਿਤਾ
ਮੈਂ ਵੀ ਤਾਂ ਰੋਈ ਸੀ
ਜੇ ਤੁਸੀਂ ਮੇਰੇ ਜਾਨ ਤੋਂ ਬਾਦ ਨੀ ਹਸੇ
ਮੈਂ ਕੇਹੜਾ ਰਾਤਾਂ ਨੂੰ ਸੋਈ ਸੀ
ਮੇਨੂੰ ਪਤਾ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਤੁਹਾਨੂੰ
ਝੁਠੀ ਸਚੀ ਗਲਾਂ ਦਜੀ ਹੋਣੀ
ਸਾਮਨੇ ਦੁਖ ਵੰਡਾਉਂਦੇ ਤੇ ਪਿਛੇ ਹਸੀਂ ਹੋਣੀ
ਮੈਂ ਕਿਹਾ ਚਲ ਬਸ ਹੁਣ ਬਾਦ ਚ ਗਲ਼ ਕਰਾਂਗੇ

—ਗੁਰੂ ਗਾਬਾ 🌷