महर-ओ- वफ़ा की शमआ जलाते तो बात थी
इंसानियत का पास निभाते तो बात थी
जम्हूरियत की शान बढ़ाते तो बात थी
फ़िरक़ा परस्तियों को मिटाते तो बात थी
जिससे कि दूर होतीं कुदूरत की ज़ुल्मतें
ऐसा कोई चराग़ जलाते तो बात थी
जम्हूरियत का जश्न मुबारक तो है मगर
जम्हूरियत की जान बचाते तो बात थी
ज़रदार से यह हाथ मिलाना बजा मगर
नादार को गले से लगाते तो बात थी
बर्बाद होने का तो कोई ग़म नहीं मगर
अपना बनाके मुझको मिटाते तो बात थी
हिंदुस्तान की क़सम ऐ रेख़्ता हूँ ख़ुश
पर मुंसिफ़ी की बात बताते तो बात थी
ਉਹਨੇ ਇਹਨੇ ਦੁੱਖ ਦਿੱਤੇ ਅਸੀਂ ਚੁੱਪ ਕਰਕੇ ਸਹਿ ਗਏ
ਉਹਨੇ ਇਹਨਾ ਕੁਝ ਬੋਲਿਆ
ਅਸੀ ਕੁਝ ਨਾ ਕਹਿਣ ਜੋਗੇ ਰਹਿ ਗਏ
ਉਹਨੇ ਜ਼ਖਮ ਹੀ ਇੰਨੇ ਗਹਿਰੇ ਦਿੱਤੇ
ਤਾਹਿਓ ਅੱਜ ਅਸੀ ਮਾੜੇ ਰਾਹ ਪੈ ਗਏ