हो विष्णु तुम धरा के,
हल सुदर्शन तुम्हारा !!
बिना शेष-शैया के ही,
होता दर्शन तुम्हारा !!
पत्थर को पूजने वाले,
क्या समझेंगे मोल तेरा !!
माँ भारती के ज्येष्ठ सुत,
तुमको नमन हमारा !!!
तरुण चौधरी
हो विष्णु तुम धरा के,
हल सुदर्शन तुम्हारा !!
बिना शेष-शैया के ही,
होता दर्शन तुम्हारा !!
पत्थर को पूजने वाले,
क्या समझेंगे मोल तेरा !!
माँ भारती के ज्येष्ठ सुत,
तुमको नमन हमारा !!!
तरुण चौधरी
माता पिता का इस जगत में है सबसे ऊँचा दर्जा।
इसके लालन पालन को संतान चूका ना सके कर्जा।।
कर्ज इनके प्रेम का जीवन को खूब सँवारे।
बस चले तो बच्चों के लिए आसमां से तोड़ ले तारे।
तारों सा चमकीला बने उनके बच्चों का जीवन।
मानों इसलिए ही धरती पर माता पिता का हुआ जनम।।
बच्चों के जन्म से ही करते उनके लिए जीवन भर संघर्ष।
अपने बच्चों की खुशियों को ही समझे जीवन का उत्कर्ष।।
उत्कर्ष होता उनका जो संतान बने अच्छी इंसान।
पग पग मार्गदर्शन ऐसा जो देना सके भगवान।
भगवान समान माता पिता फिर भी क्यों खोते मान।
बुढ़ापे में अपने ही पुत्रों से झेलते अपमान।।
अपमान करे संतान का तो फट पड़ता कलेजा।
क्या इस दिन के लिए ही संतान को प्रेम से सहेजा।।
सहेजा संवारा क्या इसलिए कि बुढ़ापे में ना दे साथ।
संतान पे लुटाके धन आज बुढ़ापे में फैलाये हाथ।।
हाथ क्यों ना आते आगे आज माता पिता के लिए।
क्या झूठे दिखावे और चमक दमक ने तुम्हारे हाथ सीले।।
छोड़ो इस माया को सच्चे रिश्तों की करो कदर।
दुनिया में तुम्हारे लिए जीये सदा तुम्हारे फादर मदर।।