vo bhee jinda hai,
main bhee jinda hoon,
qatl sirph ishq ka hua hai.….
वो भी जिन्दा है, मैं भी जिन्दा हूँ,
क़त्ल सिर्फ इश्क़ का हुआ है.….
vo bhee jinda hai,
main bhee jinda hoon,
qatl sirph ishq ka hua hai.….
वो भी जिन्दा है, मैं भी जिन्दा हूँ,
क़त्ल सिर्फ इश्क़ का हुआ है.….
महर-ओ- वफ़ा की शमआ जलाते तो बात थी
इंसानियत का पास निभाते तो बात थी
जम्हूरियत की शान बढ़ाते तो बात थी
फ़िरक़ा परस्तियों को मिटाते तो बात थी
जिससे कि दूर होतीं कुदूरत की ज़ुल्मतें
ऐसा कोई चराग़ जलाते तो बात थी
जम्हूरियत का जश्न मुबारक तो है मगर
जम्हूरियत की जान बचाते तो बात थी
ज़रदार से यह हाथ मिलाना बजा मगर
नादार को गले से लगाते तो बात थी
बर्बाद होने का तो कोई ग़म नहीं मगर
अपना बनाके मुझको मिटाते तो बात थी
हिंदुस्तान की क़सम ऐ रेख़्ता हूँ ख़ुश
पर मुंसिफ़ी की बात बताते तो बात थी