Kuchh apna andaaz hai kuchh mausam rangeen hai
tareef karu yaa chup rahu jurm dono hi sangeen hai
कुछ अपना अंदाज हैं कुछ मौसम रंगीन हैं,
तारीफ करूँ या चुप रहूँ जुर्म दोनो ही संगीन हैं ?
Kuchh apna andaaz hai kuchh mausam rangeen hai
tareef karu yaa chup rahu jurm dono hi sangeen hai
कुछ अपना अंदाज हैं कुछ मौसम रंगीन हैं,
तारीफ करूँ या चुप रहूँ जुर्म दोनो ही संगीन हैं ?

चलो किसी पुराने दौर की बात करते हैं,
कुछ अपनी सी और कुछ अपनों कि बात करते हैं…
बात उस वक्त की है जब मेरी मां मुझे दुलारा करती थी,
नज़रों से दुनिया की बचा कर मुझे संवारा करती थी,
गलती पर मेरी अकेले डांट कर पापा से छुपाया करती थी,
और पापा के मुझे डांटने पर पापा से बचाया करती थी…
मुझे कुछ होता तो वो भी कहाँ सोया करती थी,
देखा है मैंने,
वो रात भर बैठकर मेरे बाल संवारा करती थी,
घर से दूर आकर वो वक्त याद आता है,
दिन भर की थकान के बाद अब रात के खाने में, कहां मां के हाथ का स्वाद आता है,
मखमल की चादर भी अब नहीं रास आती है,
माँ की गोद में जब सिर हो उससे अच्छी नींद और कहाँ आती है…