सौ ख्वाबों को मिला के एक ख्वाब देख रखा है ,
ज़िंदगी ने जाने फिर भी क्या हिसाब रखा है ,
तू मशरुफ़ है तेरी अहमत में,
और मैंने तेरे इंतज़ार को संभाल रखा है ।
माना दर्द की सौगात लाता है इश्क़ जाना ,
फिर भी मैंने अपनी मुलाकातों का गुलाब रखा है ,
तेरे साथ ही तो चल रहा है वजूद मेरा ,
तेरी यादों का मैंने एक तकियाँ भिगो रखा है ।
तेरा यू इंतज़ार करवाना ,मेरे दिल को खा जाता है ,
फिर भी तुझसे मिलने का अरमान सजा रखा है ,
कभी आओ खुल के सामने जो मेरे तुम तो दिखाऊ ,
टूटे दिल मे भी तेरे लिए एक महल सजा रखा है ।
………….अजय कुमार ।