Me manta hu k yaad tujhe bhi meri beshak aati hogi,
magar mere jitni nahi
मैं मानत हूँ कि याद तुझे भी मेरी बेशक आती होगी,
मगर मेरे जितनी नहीं।
-विक्रम
Me manta hu k yaad tujhe bhi meri beshak aati hogi,
magar mere jitni nahi
मैं मानत हूँ कि याद तुझे भी मेरी बेशक आती होगी,
मगर मेरे जितनी नहीं।
-विक्रम
इस जीवन से जुड़ा एक सवाल है हमारा~
क्या हमें फिर से कभी मिलेगा ये दोबारा?
समंदर में तैरती कश्ती को मिल जाता है किनारा~
क्या हम भी पा सकेंगे अपनी लक्ष्य का किनारा?
जिस तरह पत्तों का शाखा है जीवन भर का सहारा~
क्या उसी तरह मेरा भी होगा इस जहां में कोई प्यारा?
हम एक छोटी सी उदासी से पा लेते हैं डर का अंधियारा~
गरीब कैसे सैकड़ों गालियां खा कर भी कर लेतें है गुजारा ?
जिस तरह आसमान मे रह जाते सूरज और चांद-तारा ~
क्या उस तरह रह पाएगा हमारी दोस्ती का सहारा ?
जैसे हमेशा चलती रहती है नदियों का धारा~
क्या हम भी चल सकेंगे अपनी राह की धारा ?