ईश्वर से कह दूं आज ,या तो मेरी सोच, मेरी फितरत बदल या फिर ऐसा कर मेरी किस्मत बदल। गर तेरा है यकीं तो मेरा भी जवाब सुन। मैं ख्वाब नहीं बदलूंगा तू हकीकत बदल।
ये एक बात समझने में रात हो गई है
मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है
मैं अब के साल परिंदों का दिन मनाऊँगा
मिरी क़रीब के जंगल से बात हो गई है
बिछड़ के तुझ से न ख़ुश रह सकूँगा सोचा था
तिरी जुदाई ही वज्ह-ए-नशात हो गई है
बदन में एक तरफ़ दिन तुलूअ’ मैं ने किया
बदन के दूसरे हिस्से में रात हो गई है
मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घर
ये क्या कि घर की उदासी भी साथ हो गई है
रहेगा याद मदीने से वापसी का सफ़र
मैं नज़्म लिखने लगा था कि ना’त हो गई है
Meri SOCH ho TUM………
Mere KHAAB ho TUM……..
Har PAHELI ho TUM……..
Aur har JWAAB bhi TUM……
Per fir bhi kyu NA mere PASS ho TUM.