Jinni vaar vi asi roye haan onna diyan yaadan ne ravaya ey
Ohna nu tan pta vi ni k ik pagal ne onna nu pagala wangu chaya ey
Mukh te hasse te dil ch dard lyi firde aa
Edda da kise naal na hove jo asi handaya ey
Jinni vaar vi asi roye haan onna diyan yaadan ne ravaya ey
Ohna nu tan pta vi ni k ik pagal ne onna nu pagala wangu chaya ey
Mukh te hasse te dil ch dard lyi firde aa
Edda da kise naal na hove jo asi handaya ey
ਚਿਹਰੇ ਤੇ ਹਾਸਾ ਦਿਲ ‘ਚ ਕਿਹਨੂੰ ਕੀ ਪਤਾ ਕੀ ਏ
ਗਮ ਏ ਦਰਦ ਏ ਖੂਸ਼ੀ ਏ ਕੀ ਪਤਾ ਕੀ ਏ……
ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਤਾਂ ਪਿੰਜਰੇ ਦੇ ਵਿੱਚ ਕੇਦ ਪੰਛੀ ਵੀ ਖੂਸ ਏ
ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਕੀ ਪਤਾ ਉਹਦੇ ਦਿਲ ‘ਚ ਕੀ ਏ……
ਅੰਦਰੋਂ ਖਾਮੋਸ਼ ਬੋਲ ਬੁੱਲ੍ਹਾਂ ‘ਤੇ
ਮੈਂ ਰੂਹੋ ਖਾਮੋਸ਼ ਰਹਿੰਦਾ ਹਾਂ ਤੇ ਏਹ ਜ਼ੁਬਾਨ ਤੇ ਕੀ ਏ……
ਸਾਹ ਚੱਲ ਰਹੇ ਨੇ ਰੁਕੀਂ ਹੋਈ ਏ ਧੜਕਣ ਮੇਰੀ
ਮੈਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਖ਼ਾਕ ਹਾਂ ਤੇ ਏਹ ਸਿਵਿਆਂ ਚ ਕੀ ਏ…….
ਪਿੱਠ ਪਿੱਛੋਂ ਵਾਰ ਕਰਨ ਵਾਲੇਆਂ ਦਾ ਨਾਂ ਯਾਰ
ਰੱਬ ਨਾਲ ਯਾਰੀ ਲਾਓ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਕੀ ਪਤਾ ਯਾਰੀ ਕੀ ਏ……
ਸਭਨਾਂ ਨੂੰ ਮੋਹ ਲੋਡ਼ ਦਾ ਹਰ ਇੱਕ ਤੋਂ
ਮਲੰਗ ਤੋਂ ਕੀ ਪੁੱਛਿਐ ਲੋੜ ਕੀ ਏ……
ਮੈਂ ਦਿਵਾਨਾ ਕਲਮ ਸ਼ਬਦਾਂ ਦਾ
ਮੈਨੂੰ ਕੀ ਪਤਾ ਮਹਿਬੂਬ ਨਾਲ ਮਹੁੱਬਤ ਕੀ ਏ…..
बीरबल की सूझबूझ और हाजिर जवाबी से बादशाह अकबर बहुत रहते थे। बीरबल किसी भी समस्या का हल चुटकियों में निकाल देते थे। एक दिन बीरबल की चतुराई से खुश होकर बादशाह अकबर ने उन्हें इनाम देने की घोषणा कर दी।
काफी समय बीत गया और बादशाह इस घोषणा के बारे में भूल गए। उधर बीरबल इनाम के इंतजार में कब से बैठे थे। बीरबल इस उलझन में थे कि वो बादशाह अकबर को इनाम की बात कैसे याद दिलाएं।
एक शाम बादशाह अकबर यमुना नदी के किनारे सैर का आनंद उठा रहे थे कि उन्हें वहां एक ऊंट घूमता हुआ दिखाई दिया। ऊंट की गर्दन देख राजा ने बीरबल से पूछा, “बीरबल, क्या तुम जानते हो कि ऊंट की गर्दन मुड़ी हुई क्यों होती है?”
बादशाह अकबर का सवाल सुनते ही बीरबल को उन्हें इनाम की बात याद दिलाने का मौका मिल गया। बीरबल से झट से उत्तर दिया, “महाराज, दरअसल यह ऊंट किसी से किया हुआ अपना वादा भूल गया था, तब से इसकी गर्दन ऐसी ही है। बीरबल ने आगे कहा, “लोगों का यह मानना है कि जो भी व्यक्ति अपना किया हुआ वादा भूल जाता है, उसकी गर्दन इसी तरह मुड़ जाती है।”
बीरबल की बात सुनकर बादशाह हैरान हो गए और उन्हें बीरबल से किया हुआ अपना वादा याद आ गया। उन्होंने बीरबल से जल्दी महल चलने को कहा। महल पहुंचते ही बादशाह अकबर ने बीरबल को इनाम दिया और उससे पूछा, “मेरी गर्दन ऊंट की तरह तो नहीं हो जाएगी न?” बीरबल ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “नहीं महाराज।” यह सुनकर बादशाह और बीरबल दोनों ठहाके लगाकर हंस दिए।
इस तरह बीरबल ने बादशाह अकबर को नाराज किए बगैर उन्हें अपना किया हुआ वादा याद दिलाया और अपना इनाम लिया।