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Khel kismat da || punjabi shayari
ਖੇਲ ਕਿਸਮਤ ਦਾ
ਕਿਸਮਤ ਇਸ ਜਿੰਦ ਦੀ ਕਿਸ ਮੋੜ ਤੇ ਲੈ ਆਂਦੀ |
ਨਾਂ ਫੈਸਲਾ ਕੋਈ ਕਰ ਸਕੇ ਨਾ ਮੁੱਖ ਤੋਂ ਕੁੱਝ ਬੋਲਿਆ ਜਾਵੇ |
ਇਹ ਕਿਸਮਤ ਐਸੀ ਅਨੋਖੀ ਜੋ ਇਹ ਖੇਲ ਕਰਾਵੇ |
ਨਾਂ ਹਾਸਾ ਮੁੱਖ ਤੋਂ ਨਿਕਲੇ ਨਾਂ ਅਸ਼ਕ ਦੀ ਧਾਰਾ ਬਹਿ |
ਸਿਸਕ ਸਿਸਕ ਕੇ ਮੰਨ ਰੋਵੇ ਅੰਦਰੋਂ ਦਰਦ ਐੱਸਾ ਪਾਵੇ |
ਨਾਂ ਦਵਾ ਕੋਈ ਮਿਲ ਸਕੇ, ਨਾਂ ਕਿਸੇ ਵੈਦ ਕੋਲ ਜਾਇਆ ਜਾਵੇ |
ਲੱਗੀ ਇੱਕ ਅੱਗ ਅੰਦਰ ਜਿਸਦੀ ਲਾਟ ਐਸੀ ਦੁਰੰਦ੍ਰੁ ਹੋਵੇ
ਜੋ ਜਲਾ ਰਹੀ ਹੈ ਅੰਦਰੋਂ ਅੰਦਰ ਤੇ ਇਹਸਾਸ ਵੀ ਨਾ ਹੋਵੇ |
ਦੱਸ ਕਿਸ ਨਾਲ ਕਰੀਏ ਵਿਰਲਾਪ,
ਦੱਸ ਕਿਸ ਨਾਲ ਲੜੀਏ ਝੁਠੇ ਬੋਲਾਂ ਨਾਲ,
ਜੱਦ ਹੈ ਨਾਂ ਕੋਈ ਸੱਜਣ ਮਿੱਤਰ ਨਾਲ |
ਕਿਸ ਨਾਲ ਕਰੀਏ ਦੋਸਤੀ, ਕਿਸ ਨਾਲ ਕਰੀਏ ਬਾਤ |
ਨਾਂ ਕੋਈ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਸਮੱਝ ਰਿਹਾ, ਨਾਂ ਕਿਸੇ ਦੇ ਕੋਈ ਭਾਵਨਾ |
ਇਸ ਅਥਾਹ ਸਮੁੰਦ੍ਰ ਅੰਦਰ ਕੌਣ ਇੱਕ ਛੋਟੀ ਕਿਸਤੀ ਵੱਲ ਤੱਕ ਰਿਹਾ |
ਕਿਸਨੇ ਲਿੱਖਿਆ ਐਸਾ ਮੁਕੱਦਰ ਜ਼ਰਾ ਲੱਭ ਕੇ ਕੋਈ
ਮੈਨੂੰ ਦੱਸੇ |
ਫਿਰ ਪੂਛਾਂ ਉਸ ਤੋਂ ਇੱਕ ਬਾਰ ਮੈਂ ਨਿਮ੍ਰਤਾ ਵਿੱਚ ਭਿੱਜ ਕੇ,
ਕਿਉਂ ਜਿੰਦਗੀ ਨਹੀਂ ਹੈ ਅਸਾਨ,
ਮੇਰੇ ਵਰਗੇ ਇੱਕ ਆਮ ਇਨਸਾਨ ਦੀ |
ਨਾਂ ਉਡਾਣ ਸਪਨਿਆ ਦੀ ਉੱਚੀ ਹੁੰਦੀ,
ਨਾਂ ਅਸਮਾਨ ਦੀ ਛੋਹ ਹੈ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਪਾਂਦੀ |
ਲੰਘ ਰਹੀ ਹੈ ਜਿੰਦਗੀ ਇਸ ਭੱਜ ਦੌੜ ਵਿੱਚ,
ਸਬਰ ਦਾ ਸਮਾਂ ਲੰਬਾ ਬਥੇਰਾ ਇੰਤਜ਼ਾਰ ਕਿੰਨਾ ਕਰੀਏ,
ਪੱਲ ਪੱਲ ਮੁੱਕ ਰਹੀ ਇਹ ਜਾਨ ਹਰ ਰੋਜ਼, ਦੱਸ ਹੁਣ ਕੀ ਕਰੀਏ | ਦੱਸ ਹੁਣ ਕੀ ਕਰੀਏ ।
…ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ
Kaun thi woh || hindi poetry
ना जाने क्यूं हर रात याद वो, रात मुझे अब आती है..
सोने की कोशिश में होता हूं, एकदम बरसात जो जाती है..
ठंडी हवाओं से ठक-ठक करके, खिड़कियाँ भी खुल सी जाती हैं..
बंद करने को उठता हूं, बाहर बूंदें नजर आ जाती हैं..
दरवाजा खोल कर बाहर गया ही था के, अचानक बिजली चली जाती है..
होगया अंदर बाहर अंधेरा, सनसनी सी दौड़ फिर जाती है..
सोचा मौसम का लुत्फ़ उठालू, सर्दी भी बढ सी जाती है..
हाथों को मोडे, हाथों को रगड़ू, रोवाँ भी उठ सी जाती है..
सोच तभी बरसात में मेरी, उसी रात पर चली फिर जाती है..
भीगा हुआ सा भाग रहा था, हर बूंद ये याद दिलाती है..
कपड़े भी कम पहने थे उस दिन, सर्दी एहसास दिलाती है..
सड़क अँधेरी जहाँ कोई नहीं था, सोच के सोच डर जाती है..
पहुचू कैसे अब घर म जल्दी, हड़बड़ी याद आ जाती है..
फिसला भागते हुए अचानक, चीजें बिखर हाथ से जाती हैं..
ढूंढ़ना शुरू किया मैंने उठके, जो इधर-उधर हो जाती है..
चीज़ कौनसी कहां गिरी गई, अँधेरे में नज़र नहीं आती है..
ढूंढ ही रहा था तभी सामने, खड़ी नजर वो आती है..
क्यों हो इस सुनसान सड़क पर, कहां जाना है? पुछ वो जाती है..
गलती से गलत राह को है चुन लिया, हुआ बुरा कहे, दुख जाताती है..
मैं फ़िसल गया, सामान गिर गया, उस से नज़र मेरी हट जाती है..
मैं मदद करु कहकर वो मेरी, मदद में यूं लग जाती है..
जैसी जानती है, पहचानती है, बातें इस कदर बनाती है..
मुझे दिखा भी नहीं, उससे मिल गया सब, सामान वो मुझे थमाती है..
जा पाओगे या राह दिखाउ, उसकी ये बात ही दिल ले जाती है।
पुछा मैंने यहां क्यूं हो जानकर, जब गली सुनसान हो जाती है..
रहती हूँ यहाँ, मेरा घर है यहाँ, पता भी अपना बताती है..
चलो तुम्हें आगे तक छोड़ दूँ, मेरे साथ चलने लग जाती है..
कुछ अपनी बता, कुछ पुछकर मुझसे, मेरा हाल जानना चाहती है..
मुझे राह पर लाकर वो मेरी, इशारे से रास्ता दिखती है..
यहां से चले जाना तुम सीधे, कहकर पीछे मुड़ जाती है..
उसे रोक नाम मैंने पूछा था, बेख़ौफ़ वो मुझे बताती है..
मेरी मदद क्यूं कि जब ये पूछा, मेरी तरफ घूम वो जाती है..
उसे देखने में भीगी पलकें, कई बार झपक मेरी जाती हैं..
तभी सड़क से गुजरी कार की रोशनी, मुझे चेहरा उसका दिखती है..
ना देखा पहले कभी कोई ऐसा, इतनी सुंदर मुझे भी भाती है..
अप्सरा उतरी जैसी स्वर्ग से कोई, वो छवि ना दिल से जाती है..
धड़कन जैसे उसे देख रुक गई, रूह उसे पाना चाहती है..
मेरी जुबां पे जैसा लग गया ताला, कुछ भी बोल नहीं पति है..
उसके तन पर गिरी हर एक बूंद, मोती की याद दिलाती है..
उसकी भीगी जुल्फें तो और भी, मनमोहक उसे बनाती हैं..
उसने कहा ये के ना चाह कर भी, उसे मदद करनी पड़ जाती है..
उसके दिल ने आवाज दी थी, तभी मदद को मेरी आती है..
कुछ और कहु हमसे पहले, मेरी बात काट वो जाती है..
मुझसे अब और तुम कुछ ना पूछना, मेरी राह कहीं और जाती है..
मुमकिन है नहीं ये सोच तुम्हारी, उसे कैसे पता चल जाती है..
मुझे छू कर मेरी आँखों से, ओझल वो कहीं हो जाती है..
मैं नाम पुकारता रह गया बस, ना सामने फिर वो आती है..
ना जाने सोच में कौन थी वो, घर तक की राह कट जाती है..
उस रात के बाद, हर रात मुझे, हर रात याद वो आती है..
किसी को बता नहीं पाया अबतक, मेरी जुबां जरा कतराती है..
Kuch Log Sudhar Nahi Sakte
कुछ लोग सुधर नहीं सकते हैं
हर किसी के बारे में बुरा ही बकते है
इन्हे किसी दूसरे की तारीफ करना आता नहीं हैं
इन्हे अपने खून के अलावा(सग्गे रिश्ते ) और कोई भाता नहीं हैं
यह लोग खुदको भगवान समझते हैं
भगवन खुद इन्हे शैतान समझते हैं
यह लोग इनके सग्गे रिश्तों में भी आग लगा देते हैं
अच्छे खासे परिवार में दाग लगा देते हैं
इनकी सोच ज़मीन में और सिर आसमान में रहता हैं
इन्हे कदर घर के बेटे की नहीं बल्कि उसकी है जो विदेश में बैठा हैं
यह लोग किसी दुसरे को आगे बढ़ता देख नहीं पाएंगे
अगर कोई आगे बढ़ गया तो यह चैन से बैठ नहीं पाएंगे
दुसरो को बुरा खुदको अच्छा दिखाना ही इन्हे सिर्फ आता हैं
इन्हे अपने खून के अलावा और कोई नहीं भाता हैं
इनमे कोई कमी नहीं ऐसा इनको लगता है
गिने चुने लोगो के अलावा इन्हे हर कोई खटकता है
किसी के लिए कुछ अच्छा ये कर नहीं सकते हैं
इन्हे जो पसंद है उसे सिर पर चढ़ा सकते हैं
लेकिन इनके पैर दबाने वालो को यह पैर तक ही रखते हैं
कुछ लोग कभी सुधर नहीं सकते हैं ।