Kujh sikhna hi aa te
aakhan nu padhan da hunar sikh,
kyuki har gal dasn lai nahi hundi
ਕੁਝ ਸਿੱਖਣਾ ਹੀ ਆ ਤੇ,
ਅੱਖਾਂ ਨੂੰ ਪੜਨ ਦਾ ਹੁਨਰ ਸਿੱਖ,
ਕਿਉਂਕਿ ਹਰ ਗੱਲ ਦਸੰਨ ਲਈ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ |
Kujh sikhna hi aa te
aakhan nu padhan da hunar sikh,
kyuki har gal dasn lai nahi hundi
ਕੁਝ ਸਿੱਖਣਾ ਹੀ ਆ ਤੇ,
ਅੱਖਾਂ ਨੂੰ ਪੜਨ ਦਾ ਹੁਨਰ ਸਿੱਖ,
ਕਿਉਂਕਿ ਹਰ ਗੱਲ ਦਸੰਨ ਲਈ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ |
बीरबल की सूझबूझ और हाजिर जवाबी से बादशाह अकबर बहुत रहते थे। बीरबल किसी भी समस्या का हल चुटकियों में निकाल देते थे। एक दिन बीरबल की चतुराई से खुश होकर बादशाह अकबर ने उन्हें इनाम देने की घोषणा कर दी।
काफी समय बीत गया और बादशाह इस घोषणा के बारे में भूल गए। उधर बीरबल इनाम के इंतजार में कब से बैठे थे। बीरबल इस उलझन में थे कि वो बादशाह अकबर को इनाम की बात कैसे याद दिलाएं।
एक शाम बादशाह अकबर यमुना नदी के किनारे सैर का आनंद उठा रहे थे कि उन्हें वहां एक ऊंट घूमता हुआ दिखाई दिया। ऊंट की गर्दन देख राजा ने बीरबल से पूछा, “बीरबल, क्या तुम जानते हो कि ऊंट की गर्दन मुड़ी हुई क्यों होती है?”
बादशाह अकबर का सवाल सुनते ही बीरबल को उन्हें इनाम की बात याद दिलाने का मौका मिल गया। बीरबल से झट से उत्तर दिया, “महाराज, दरअसल यह ऊंट किसी से किया हुआ अपना वादा भूल गया था, तब से इसकी गर्दन ऐसी ही है। बीरबल ने आगे कहा, “लोगों का यह मानना है कि जो भी व्यक्ति अपना किया हुआ वादा भूल जाता है, उसकी गर्दन इसी तरह मुड़ जाती है।”
बीरबल की बात सुनकर बादशाह हैरान हो गए और उन्हें बीरबल से किया हुआ अपना वादा याद आ गया। उन्होंने बीरबल से जल्दी महल चलने को कहा। महल पहुंचते ही बादशाह अकबर ने बीरबल को इनाम दिया और उससे पूछा, “मेरी गर्दन ऊंट की तरह तो नहीं हो जाएगी न?” बीरबल ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “नहीं महाराज।” यह सुनकर बादशाह और बीरबल दोनों ठहाके लगाकर हंस दिए।
इस तरह बीरबल ने बादशाह अकबर को नाराज किए बगैर उन्हें अपना किया हुआ वादा याद दिलाया और अपना इनाम लिया।
Rishta kise gair naal howe jaa khoon da howe
nibhda ohi jehrra dil ton judheyaa howe
ਰਿਸ਼ਤਾ ਕਿਸੇ ਗੈਰ ਨਾਲ ਹੋਵੇ ਜਾਂ ਖੂਨ ਦਾ ਹੋਵੇ..
ਨਿਭਦਾ ਓਹੀ ਜਿਹੜਾ ਦਿਲ ਤੋਂ ਜੁੜਿਆ ਹੋਵੇ..