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Maana tumhe har baar dekhta hu || love shayari
माना तुम्हे हर बार देखता हूं,
हर बार पहली बार देखता हूं,
देखता हूं तुम्हे जब जुल्फें संवरती हो तुम,
उन जुल्फों को आइना बनके हर बार देखता हूं,
आंखो में रातें और सुर्खी में ग़ुलाब जैसे,
मेरे हाथ खाली जाम तुम्हारे होंठो में शराब जैसे,
जैसे हर बार तुम्हारा वो ख़्वाब देखता हूं,
तुम्हारे हाथों में मेरा दिया वो ग़ुलाब देखता हूं,
वक्त हो तो आना कभी इक हसरत बाकी है,
तुम्हे हर बार की तरह पहली बार देखना बाकी है...
हिम्मत भी है ताकत भी और हौसला भी…
हिम्मत भी है ताकत भी ओर हौसला भी
उनकी खुशी के लिए सब कुछ कर जाऊंगा
देखेगी दुनिया भी इस अंजान चेहरे को
जब बाहों में समेटकर में चांद लेकर आऊंगा
मेरी मां के चेहरे पर मुस्कुराहट होगी
और हाथो मेरे लिए में नूर होगा
हवाओं में भी खुशबू होगी और
पापा की नज़रों में गुरूर होगा
सुरूर होगा जब दुनिया अपनी सी लगेगी
जब दुनिया को मेरा भी शउर होगा
अपनी नज़रों में तालाब की आवाम भर लाऊंगा
हर शाम में लौट कर जब घर आऊंगा
हाथों में रोटी पकड़कर कहेगी, बेटा खा ले
मैं मुस्कुराकर दो निवाले उसे भी खिलाऊंगा
खैर, निकल पड़ा हूं अभी मंज़िल ढूंढने खुद ही
इंतेज़ार उस वक्त का है जब मै चांद समेट लाऊंगा...
रखना है तो दिल में रखना
रखना है तो दिल में रखना इस मोहब्बत भरे चेहरे को,
ये वो चेहरा है जो रास्ते पर कभी नजर नहीं आता,
नज़र आते है गुलदस्ते कई जब गलियों में गुजरता हूं,
मै उन गुलदस्तों के लिए रास्ते पर कभी नज़र नहीं आता,
नजरबंद कर लेता हूं रास्ते सारे, दोस्तों के इंतेज़ार में,
यारों के अलावा रास्तों पर मुझे कोई नज़र नहीं आता....