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Shayari | Latest Shayari on Hindi, Punjabi and English

Just feel it

”Are gairo se ladkar kya jatana chahte hai aap ke gairo se ladkar kya jatana chahte hai aap?… Kya parayo se ladkar apna banna chahte hai aap?… Apna toh manege ham tab jab apno ke vesh me un parayo ka parda hatayege aap…”

Kami unki jindagi me

Rahi hongi kuch kami unaki jindagi me ,

Yuhi koi mauth ko gale nahi lagata.

-By Abhishek kshirsagar


Kahan gya aapnapan

Kisko yad karu

Kiski fariyad karu

Jo dil me hai wo sidha sidha bol deti hu to kya

Mujhe Bina soche samjhe hi judge karlonge kya …

Wo naraji ,wo bartav  kis se karonge rukha

Jab meri jindagi modeling aapne Rukh , tab rakh lena aapne pass ye bartav rukha

Jise har wakt yaad the itna

Usse hi aaisa bartav karonge kitna

Din se rat hone tak sab ke bare me soch ti hu

Kya lagta hai tum ko mujhe koi n lagta hai aapna

Ghussa karo par ghusse wala

Na tane Maro ki Tut jaye mere sabar ka tala

Alfaaz satya ke

Meri kalam ki shiyaahi khtm nhi hogi kabhi jab tak tumhara isqh hai mere saath
Meri kalam ki shiyaahi khtm nhi hogi kabhi jab tak tumhara isqh hai mere saath
Magar haaa
Jis din khatam ho gae ye kalam ki likhavat samjhna meri saanse ab nahi rahi mere saath…

Alfaaz satya ke

Aaj bahut din baad likh rahe the hum shayari

Ki

Aaj bahut din baad likh rahe the hum shayari

Do chaar shabdh hi likhe the humne ki yaad aa gae teri phir dekhte hi dekhte humne bhi bhar daali kitaab hi sari

स्त्री हूं मैं

        स्त्री हूं मैं……

स्त्री हूं मैं मेरा कहां सम्मान होता है

मेरे कपड़ों से मेरा चरित्र भाप लिया जाता है।

अगर जींस या वेस्टर्न ड्रेस पहन लूं मैं

तो मैं बिगड़ी हुई मान ली जाती हूं।

अगर मैं साड़ी भी पहनूं तो भी

उसमे भी खोट नजर आती है।

मेरी साड़ी में भी कमिया ही नजर आती है।

यहां तो एक औरत भी औरत का सम्मान नही करती

एक औरत को दूसरी औरत में भी खोट नजर आती है।

मेरे कपड़ों में कोई कमी नहीं कमी तुम्हारी नज़र में है

मैं कुछ भी पहन लूं तुम्हे कमी नजर आनी ही है।

Middle class childern

  • Poetry
  • by
  • मै मिडिल क्लास फैमिली से हूं………….मैं घर में सबसे छोटा हूं सबकी छोटी हुए कपड़ो से लेकर किताबे भी बड़े भाई बहन की ही आती है मैं छोटा हूं ना सारी चीजे सेकंड हैंड की आदत है। हमारे घर में कमाने वाले सिर्फ थे तनख्वाह से पहले से उस तनख्वाह का हिसाब लग जाता है किसके हिस्से क्या आएगा ये भी पता होता है।

दिवाली पर पापा को बोनस मिलता था तनख्वाह थोड़ी ज्यादा आती थी सबको मालूम था दिवाली पर भी नए कपड़े लेने के लिए पैसे गिनकर मिलते थे कोई अगर बीमार हो जाए तो वो नए कपड़े भी कैंसल हो जाते थे। बचपन से ही एडजस्ट करने की आदत लग जाती है ये आदत अच्छी हो होती है पर कभी कभी बुरी भी होती है। धीरे धीरे बड़े हुए तो पता था मम्मी पापा को कुछ बनकर दिखाना है ये ख्वाब साथ लेकर चला पर बाहर निकले घर से तो ये पता चला कि जो मेरा ख्वाब है वही सबका भी ख्वाब था सबको अपनी जिंदगी में मेरी तरह ही कुछ करना था। जैसे तैसे एक नौकरी लगी वो भी मेरी पसंद की नही थी पर पापा का हाथ बंटाने के लिए भी तो कुछ करना था अपने दिल को समझकर वो नौकरी कर ली मुझे नौकरी लगी ये सुनकर मम्मी पापा दोनो खुश हो जाए पापा की आखों से तो आंसू ही आ गए आंखो से निकलते आंसू भी उस दिन मुझसे बात कर रहे थे मानो वो ये कह रहे थे की अब मेरे कंधो का थोड़ा बोझ कम हुआ मेरे साथ कोई कमाने वाला आ गया। उस दिन से मैंने वो नौकरी ज्वाइन कर ली और उसकी भी आदत सी पड़ गई।