Skip to content

mohobbat shayari

मैं हूँ मुहब्बत ❤️❤️ || hindi shayari

मैं हूँ मुहब्बत,और मेरे मिटने का सवाल ही नहीं❤️

मैं रेत पर लिखी हुई कहानी नहीं
जो लहरों से मिट जाऊँ

मैं बारिश नहीं
जो बरस के थम जाऊँ

मैं हवा नहीं
जो तुम्हारे पास से गुज़र जाऊँ

मैं चाँदनी नहीं
जो रात के बाद ढल जाऊँ

तुम तो वो परवाने हो,
जो जलता रहेगा पर उफ़ तक नहीं करेगा💔

मैं शमा नहीं हूँ
जो परवाने को जला दु

मैं वो रंग हूँ
जो तेरी रूह पर चढ़कर कभी न उतरे

मैं तो वो मुहब्बत हूँ
जो तेरी रग-रग में लहू बन कर गर्दिश करे

Mann ✍️❤️

Baaton hi baaton me || hindi shayari love

बातों ही बातों में उसकी

एक बात निकल जाती है

खबर नहीं कि कब उसकी

याद में रात निकल जाती है

मेरी मोहब्बत कहने से पहले

उसकी औकात निकल जाती है

Me haqeeqat likhu

मैं हकीकत लिखूं या फसाना लिखूं, 

उसको ना देखने का बहाना लिखूं,

बेतहाशा अगर है मोहब्बत उसे ,

नाम उसके मैं एक जिंदगानी लिखूं।

🙈❤️😘

Mohobat me nakaam || hindi shayari sad

सीने के बल चल कर आया था मैं 

फिर मोहब्बत में नाकाम हुआ

वफा तो दोनो तरफ से थी….

फिर हमारा ही क्यू बुरा अंजाम हुआ

कलम तू कैसे लिख लेता है मेरे दर्द को

सलमान….तेरा दर्द लिखकर ही तो मेरा नाम हुआ

ऐन मुमकिन है दिल की मरम्मत हो जाए

मगर वक्त से पहले ही बंद बाजार हुआ

हमसे दोस्ती _तुम्हे मायूस कर देगी

अब तो खुद में ही मैं खाक हुआ

देख इंतजार में है लोग तेरी दास्तान सुनने के लिए

जा कर कह दो लोगो से…….दर्द से उनका इंतकाल हुआ

Mohobat ka mareez || hindi love shayari

बिन मंजिल का मुसाफिर उसे दर ब_दर भटकना पड़ा

तपती सहराव में नंगे पांव चला ही चलना पड़ा

ता_उम्र उसने खुदा का शुक्र ही अदा किया उसने

मोहब्बत का मरीज__दुआ में मौत मांगा पड़ा

Raaton ki yeh ibadat || hindi love shayari

है कोई हकीकत या कोई हसरत है

आखिर किसके खातिर रातों की ये इबादत है

हकीम की हैरानगी पर लोग दुआ क्यू करने लगे

पीर कहते है ये आसार ऐ मोहब्बत है

Dolat ka fitoor nahi || shayari in hindi

सादा सी एक लड़की है,हूर नहीं है

जिस्म से दूर है, दिल से दूर नहीं है

कैसे तोलें, दौलत से मोहब्बत को

हमे चढ़ा दौलत का, फितूर नहीं है

teri mohobat me haar ke

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के

वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के

वीराँ है मैकदा ख़ुम-ओ-साग़र उदास है

तुम क्या गये के रूठ गये दिन बहार के

इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन

देखे हैं हमने हौसले परवर-दिगार के

दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया

तुझ से भी दिल फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के

भूले से मुस्कुरा तो दिये थे वो आज ‘फ़ैज़’

मत पूछ वलवले दिलए-ना-कर्दाकार के