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Poetry

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MAUT DI LEKHAT || Maut di shayari

lavaan ne meriya maut nal
zindagi nal koi lenn denn nhi
jionda ha apna hi assol’aa ta
juuth’aa lok vich ral ja eeh mnu manzoor nhi – ਹੰਕਾਰੀ

Khoon garam hai || hindi shayari motivate

खून गरम है,
तो कोशिश करो की सही जगह आंच लगे...
ना फेकना इस कीचड़ में पत्थर,
कहीं ऐसा ना हो,
तुम्हारे दामन में ही दाग लगे...
रूह से कैसी दिल्लगी,
जिस्म तन्हा कर जाएगी इक दिन...
बस ईमान ऐसा रखना दोस्त मेरे,
के तेरी कब्र देखकर,
हर किसी के सीने में आग लगे...

हटा ली आईने से धूल ए ग़ालिब || hindi shayari

हटा ली आइने से धूल ए ग़ालिब,
अब दामन मैला सा लगता है,
रूह तो नापाक थी ही,
अब आंगन भी मैला सा लगता है,
देखना ज़रूर के परिंदे भी छोड़ जायेंगे
बसेरा अपना उस दर से,
जिस दर पर मोहब्बत का मेला भी,
मैला सा लगता है...

वो मुसाफिर || hindi best shayari latest

जाते जाते एक उम्दा तालीम दे गया,
वो मुसाफिर,
खुदकी तलाश में घर से निकल गया,
वो मुसाफिर,
सोचा साथ जाऊं मैं भी,
पर जाऊंगा कहां,
जा चुका होगा मीलों दूर,
उसे पाऊंगा कहां,
इसी सोच में रात हुई,
नींद का झोंका आ गया,
सुबह आंखे खुली तो सोचा,
क्या वो मौका आज आ गया ?
के चला जाऊं सबसे इतना दूर के कुछ ना हो,
गहरी नींद में बेड़ियां मिले पर सचमुच ना हो,
सच हो तो बस आसमां में परिंदो सी उड़ान हो,
चाहूंगा हर सितमगर का बड़ा सा मकान हो,
वहां आवाज़ देकर झोली फैलाएगा वो मुसाफिर,
तुम्हे देख भीगी पलकें उठाएगा वो मुसाफिर,
मोहब्बत से एक रोटी खिलाकर देखना तुम,
शोहरत से दामन भर जाएगा वो मुसाफिर...

Rakh sako toh ek nishani hu me || Hindi shayari

रख सकों तो एक निशानी हूँ मैं
खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं
रोक ना पाए जिसको ये सारी दुनिया
वो एक बूंद आँख का पानी हूँ मैं...
सबको प्यार देने की आदत है हमें
अपनी अलग पहचान बनाने की आदत है हमें
कितना भी गहरा जख़्म दे कोई
उतना ही ज्यादा मुस्कुरानें की आदत है हमें..
इस अजनबी दुनिया में अकेला ख़्वाब हूँ मैं
सवालों से खफा छोटा सा जवाब हूँ मैं
जो समझ ना सके मुझे उनके लिए कौन
जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूँ मैं..
आँख से देखोगे तो खुश पाओगे
दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूँ मैं
अगर रख सकों तो एक निशानी हूं मैं
खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं...

Ek ladhki se bahut pyaar || hindi shayari thoughts

एक लड़की से मैं बहुत प्यार करता हु ।

ऐसे मिलो तो बड़ी सख्त बनती है
पर दिल से बड़ी बच्ची है
दिन भर उलझी रहती है वो बात तक नहीं करती
पर जब वो बात कर अपने इश्क में और पागल कर देती है
फिर बोले जो जो वो मैं भी वो वो करता हु
एक लड़की से मैं भी बहुत प्यार करता हु ।

दिल की बाते अपनी बताती नही है
मोहब्बत अपनी जताती नही है
अपने ख्वाबों से है प्यार उसे
पर मेरी जगह किसी को बिठाती नही है
वो जब जब मुस्कुराती है
एक सुरूर सा छा जाता है
उस जैसा होगा कहां कोई

मैं उसकी हर बात से प्यार करता हूं
एक लड़की से मैं भी प्यार करता हूं।

Hindi poetry || zindagi

चल रहा महाभारत का रण, जल रहा धरित्री का सुहाग,
फट कुरुक्षेत्र में खेल रही, नर के भीतर की कुटिल आग।
वाजियों-गजों की लोथों में, गिर रहे मनुज के छिन्न अंग,
बह रहा चतुष्पद और द्विपद का रुधिर मिश्र हो एक संग।

गत्वर, गैरेय,सुघर भूधर से, लिए रक्त-रंजित शरीर,
थे जूझ रहे कौंतेय-कर्ण, क्षण-क्षण करते गर्जन गंभीर।
दोनों रण-कुशल धनुर्धर नर, दोनों सम बल, दोनों समर्थ,
दोनों पर दोनों की अमोघ, थी विशिख वृष्टि हो रही व्यर्थ।

इतने में शर के लिए कर्ण ने, देखा ज्यों अपना निषंग,
तरकस में से फुंकार उठा, कोई प्रचंड विषधर भुजंग।
कहता कि कर्ण ! मैं अश्वसेन, विश्रुत भुजंगों का स्वामी हूँ,
जन्म से पार्थ का शत्रु परम, तेरा बहुविधि हितकामी हूँ।

बस एक बार कर कृपा धनुष पर, चढ़ शख्य तक जाने दे,
इस महाशत्रु को अभी तुरत, स्पंदन में मुझे सुलाने दे।
कर वमन गरल जीवन-भर का, संचित प्रतिशोध, उतारूँगा,
तू मुझे सहारा दे, बढ़कर, मैं अभी पार्थ को मारूँगा।

राधेय ज़रा हँसकर बोला, रे कुटिल ! बात क्या कहता है?
जय का समस्त साधन नर का, अपनी बाहों में रहता है।
उसपर भी साँपों से मिलकर मैं मनुज, मनुज से युद्ध करूँ?
जीवन-भर जो निष्ठा पाली, उससे आचरण विरुद्ध करूँ?
तेरी सहायता से जय तो, मैं अनायास पा जाऊँगा,
आनेवाली मानवता को, लेकिन क्या मुख दिखलाऊँगा?
संसार कहेगा, जीवन का, सब सुकृत कर्ण ने क्षार किया,
प्रतिभट के वध के लिए, सर्प का पापी ने साहाय्य लिया।

रे अश्वसेन ! तेरे अनेक वंशज हैं छिपे नरों में भी,
सीमित वन में ही नहीं, बहुत बसते पुरग्राम-घरों में भी।
ये नर-भुजंग मानवता का, पथ कठिन बहुत कर देते हैं,
प्रतिबल के वध के लिए नीच, साहाय्य सर्प का लेते हैं।
ऐसा न हो कि इन साँपों में, मेरा भी उज्ज्वल नाम चढ़े,
पाकर मेरा आदर्श और कुछ, नरता का यह पाप बढ़े।
अर्जुन है मेरा शत्रु, किन्तु वह सर्प नहीं, नर ही तो है,
संघर्ष, सनातन नहीं, शत्रुता, इस जीवन-भर ही तो है।

अगला जीवन किसलिए भला, तब हो द्वेषांध बिगाड़ूँ मैं,
साँपों की जाकर शरण, सर्प बन, क्यों मनुष्य को मारूँ मैं?
जा भाग, मनुज का सहज शत्रु, मित्रता न मेरी पा सकता,
मैं किसी हेतु भी यह कलंक, अपने पर नहीं लगा सकता

मंजिल अभी दूर है || hindi shayari || manzil shayari

मंज़िल अभी दूर है, मुसाफिर है बेचैन,
ठोकरें बहुत है राह में,बीत गए वो दिन रैन,
सोचा ना था यूं सौदा करूंगा,
बूंदों सी बारिश में प्यासा चलूंगा,
पसीने से तर है दामन मेरा
कैसे बायां करूं हाल ए दिल अपना के,
कैसे भीगते हैं मेरे नैन,
मंज़िल अभी दूर है, मुसाफिर है बेचैन,

शाम भी बीत गई, सूरज भी ढल गया,
रास्तों पर निकला तो वक्त भी बदल गया,
ठोकरें बहुत खाई अब थोड़ा संभाल गया,
किससे कहूं फिर भी भीगते हैं मेरे नैन,
मंज़िल अभी दूर है, मुसाफिर है बैचेन,

मेरा हिस्सा था जिनमें कुछ लम्हे चुरा लाया हूं,
हर कदम के साथ कुछ करीब आया हूं,
किनारों पर समेटकर कुछ लेहरें लाया हूं,
दो पल ही सही वापस आए वो दिन रैन,
मै ही हूं वो मुसाफिर, मै ही था बेचैन…