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Poetry

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Zindagi

उल्टे सीधे सपने पाले बैठे हैं

सब पानी में काँटा डाले बैठे हैं

इक बीमार वसीयत करने वाला है

रिश्ते नाते जीभ निकाल बैठे हैं

बस्ती का मामूल पे आना मुश्किल है

चौराहे पर वर्दी वाले बैठे हैं

धागे पर लटकी है इज़्ज़त लोगों की

सब अपनी दस्तार सँभाले बैठे हैं

साहब-ज़ादा पिछली रात से ग़ायब है

घर के अंदर रिश्ते वाले बैठे हैं

आज शिकारी की झोली भर जाएगी

आज परिंदे गर्दन डाले बैठे हैं

Mere dost || hindi poetry on dost

मैं ना जानू दोस्त तेरे दूर हो जाने के बाद,
यह जिंदगी कैसे जंग बन गई है।

मैं ना जानू दोस्त तेरे जाने के बाद,
यह गांव की गलियां कैसे सुनी हो गई है।

मैंने जानू दोस्त तेरे जाने के बाद,
वो खेल का मैदान अब सुना लगता है।

मैं ना जानू दोस्त तेरे जाने के बाद,
कैसे फूल जैसी जिंदगी पत्थर बन गई है।

खुद को मनाने की कोशिश करता हूं बहुत,
लेकिन क्या करूं दिल है कि मानता ही नहीं।

मैं ना जानू दोस्त तेरी दूर हो जाने के बाद,
मेरे चेहरे की हंसी कहां गुम हो गई।

मैं ना जानू दोस्त तेरे जाने के बाद,
बाजारों की रौनक भी फीकी लगती है।

तू कब आएगा मेरे भाई मेरे दोस्त,
तेरे को हर दिन गले लगाने का मन करता है।

Dosti || hindi kavita || poetry on dosti

दोस्ती
प्यार का मीठा दरिया है
पुकारता है हमें

आओ, मुझमें नहाओ
डूबकी लगाओ
प्यार का सौंधा पानी
हाथों में भर कर ले जाओ

आओ
जी भर कर गोता लगाओ
मौज-मस्ती की शंख-सीपियाँ
जेबों में भर कर ले जाओ

दोस्ती का दरिया
गहरा है, फैला है
इसमें नहीं तैरती
धोखे की छोटी नौका
कोशिश की तो
बचने का नहीं मिलेगा मौका

Hindi kavita || बहती नदी – सी || hindi poetry

थी मै,शांत चित्त बहती नदी – सी
तलहटी में था कुछ जमा हुआ
कुछ बर्फ – सा ,कुछ पत्थर – सा।
शायद कुछ मरा हुआ..
कुछ अधमरा सा।
छोड़ दिया था मैंने
हर आशा व निराशा।
होंठो में मुस्कान लिए
जीवन के जंग में उलझी
कभी सुलगी,कभी सुलझी..
बस बहना सीख लिया था मैंने।
जो लगी थी चोट कभी
जो टूटा था हृदय कभी
उन दरारों को सबसे छुपा लिया था
कर्तव्यों की आड़ में।
फिर एक दिन..
हवा के झोंके के संग
ना जाने कहीं से आया
एक मनभावन चंचल तितली
था वो जरा प्यासा सा
मनमोहक प्यारा सा।
खुशबूओं और पुष्पों
की दुनिया छोड़
सारी असमानताओं और
बंधनों को तोड़
सहमी – बहती नदी को
खुलकर बहना सीखा गया,
अपने प्रेम की गरमी से
बर्फ क्या पत्थर भी पिघला गया।
पाकर विश्वास कोमल भावों से जोड़े नाते का
सारी दबी अपेक्षाएं हो गई फिर जीवंत
लेकिन क्या पता था –
होगा इसका भी एक दिन अंत !
तितली को आयी अपनों की याद
मुड़ चला बगिया की ओर
सह ना सकी ये देख नदी
ये बिछड़न ये एकाकीपन
रोयी , गिड़गिड़ाई ..की मिन्नतें
दर्द दुबारा ये सह न पाऊंगी
सिसक सिसक कर उसे बतलाई।
नहीं सुनना था उसे,
नहीं सुन पाया वो।
नहीं रुकना था उसे,
नहीं रुक पाया वो।
तेज उफान आया नदी में,
क्रोध और अवसाद
छाया मन में,
फिर छला था
नेह जता कर किसी ने।
आवाज देती..लहरें,
उठती और गिरती
किनारों से टकराती,
हो गई घायल।
बीत गए असंख्य क्षण
उसकी वापसी की आस में
लेकिन सामने था, तो सिर्फ शून्य।
हो गई नदी फिर से मौन..
छा गई निरवता।
लेकिन अबकी बार,
नहीं जमा कुछ तलहटी में
कुछ बर्फ सा,
कुछ पत्थर सा।
बस रह गया भीतर
रक्तिम हृदय..
और लाल रक्त।
जो रिस रिस कर
घुलता जा रहा है
मिलता जा रहा है
अपने ही बेरंग पानी में…।।

Badhte raho || मंज़िल की ओर…|| hindi poetry

सफर जारी है मंज़िल को पाने की।
जंग से लड़ना ही रीत है जहां की।।
बैठे रहने से कुछ भी नसीब नहीं ।
नसीब के भरोसे अकर्मण्यों ने ज़िन्दगी जियी।।

कर पूजन कर्म का तू।
मन में रख कर हौंसला । ।
हौंसला यदि हो बुलन्द।
तय होगा हर फासला।।
ज़िन्दगी समय से है , समय ही ज़िन्दगी ।
यूं न जाने दो समय को , नहीं मिलेगी कोई ख़ुशी।।
कर हर काम समय पर , ज़िन्दगी तुम्हे आसमान पर ला देगी ।
सफलता की सीढिया कदमों पर झुका देगी।।
लड़ो ज़िन्दगी की हर एक जंग से ।
न हारो वक़्त रूपी तुरंग से।।
पल पल अनमोल है ज़िन्दगी की ।
केवल परिश्रम हो तो मिलेगी हर ख़ुशी।।
मंज़िल को पाना आसान नहीं ।
पर मंज़िल को ही छोड़ देना हल नहीं । ।
पार कर राहों के कांटो को ।
बढ़ते रहो मंज़िल की ओर।।

Desh kavita || tiranga || republic day || तीन रंगों में रंगा हुआ || independence day

तीन रंगों में रंगा हुआ
सारे जग से न्यारा है,
सुनो तिरंगा हमें हमारा
प्राणों से भी प्यारा है।

बतलाता है रंग केसरी
वीरों ने बलिदान दिया
अंग्रेजों को मार भगाया
स्वतंत्र हिंदुस्तान किया,
इनकी भुजाओं के बल से
दुश्मन हमसे हारा है
सुनो तिरंगा हमें हमारा
प्राणों से भी प्यारा है।

श्वेत रंग संदेशा देता
अमन चैन फ़ैलाने का
प्रेम भावना बसे हृदय में
ऐसा वतन बनाने का
सुख-दुःख में एक दूजे का
बनना हमे सहारा है
सुनो तिरंगा हमें हमारा
प्राणों से भी प्यारा है।

हरा रंग हरियाली का जो
उन्नति पथ दिखलाता है
चीर धरा का सीना हलधर
सारी फसल उगाता है,
सारे जगत को देता अन्न
पशुओं को देता चारा है
सुनो तिरंगा हमें हमारा
प्राणों से भी प्यारा है।

बढ़ते रहें कहीं रुके नहीं
चक्र ज्ञान यह देता है
साथ समय के चले निरंतर
बनता वही प्रणेता है
बिना परिश्रम कहाँ किसीका
चमका कभी सितारा है
सुनो तिरंगा हमें हमारा
प्राणों से भी प्यारा है।

हमारा तिरंगा || deshbhakti || hindi poetry on nation

हमारा तिरंगा

देश का प्रतीक है यह,
हर हिंदुस्तानी के नज़दीक है यह।
हर डर भुला देता है,
एक जोश जगा देता है।

सूरज सा ‘नारंगी’ तेज है इसमें,
शांति का ‘सफेद’ संदेश है इसमें।
इसमे खुशिओं की ‘हरियाली’ है,
यह चक्रवर्ती ‘चक्रधारी’ है।

वो फसलों सा लहराता है,
वो हर ऊंचाई से ऊपर जाता है।
एक बच्चे सा भोला है यह,
वक़्त पड़ने पर दहकता शोला है यह।

मित्रों का मीत है यह,
हर बुराई पर जीत है यह।
जीने का अंदाज़ है यह,
अपनी माटी का एहसास है यह।

इसकी अलग ही शान है,
यह हमारा तिरंगा महान है।।

Tiranga hamari shaan || independence day || ये तिरंगा ये हमारी शान है

ये तिरंगा ये तिरंगा ये हमारी शान है
विश्वभर में भारती की अमिट पहचान है
ये तिरंगा हाथ में ले पग निरंतर ही बढ़े
ये तिरंगा हाथ में ले दुश्मनों से हम लड़े
ये तिरंगा विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र है
ये तिरंगा वीरता का गूंजता इक मंत्र है
ये तिरंगा वन्दना है भारती का मान है
ये तिरंगा विश्व जन को सत्य का संदेश है

ये तिरंगा कह रहा है अमर भारत देश है
ये तिरंगा इस धरा पर शान्ति का संधान है
इसके रंगो में बुना बलिदानियों का नाम हैं
ये बनारस की सुबह है ये अवध की शाम है
ये कभी मन्दिर कभी ये गुरुओं का द्वार लगे
चर्च का गुम्बंद कभी मस्जिद की मीनार लगे

ये तिरंगा धर्म की हर राह का सम्मान है
ये तिरंगा बाइबिल है भागवत का श्लोक है
ये तिरंगा आयत ए कुरआन का आलोक है
ये तिरंगा वेद की पावन ऋचा का ज्ञान है
ये तिरंगा स्वर्ग से सुंदर धरा कश्मीर है

ये तिरंगा झूमता कन्याकुमारी नीर है
ये तिरंगा माँ के होठों की मधुर मुस्कान है
ये तिरंगा देव नदियों का त्रिवेणी रूप है
ये तिरंगा सूर्य की पहली किरण की धुप है
ये तिरंगा भव्य हिमगिरी का अमर वरदान है
शीत की ठंडी हवा ये ग्रीष्म का अंगार है
सावनी मौसम में मेघों का छलकता प्यार है
झंझावतों में लहराए गुणों की खान है

ये तिरंगा लता की इक कुठुकती आवाज है
ये रविशंकर के हाथों में थिरकता ताज है
टैगोर के जनगीत जन गण मन का ये गुणगान है

ये तिरंगा गांधी जी की शान्ति वाली खोज है
ये तिरंगा नेताजी के दिल से निकला ओज है
ये विवेकानंद जी का जगजयी अभियान है
रंग होली के है इसमें ईद जैसा प्यार है

चमक क्रिसमस की लिए यह दीप सा त्यौहार है
ये तिरंगा कह रहा ये संस्कृति महान है
ये तिरंगा अंडमानी काला पानी जेल है
ये तिरंगा शांति और क्रांति का अनुपम मेल है
वीर सावरकर का ये इक साधना संगान है